कानपुर में मुर्दे की गुहार, मैं जिंदा हूँ साहब, मुझे चुनाव लड़ना है, बेहद चौकाने वाला है मामला
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान कई ऐसे किस्से निकलकर सामने आ रहे हैं, जिन्हें सुनकर हम भी चौंक जाते हैं। कहीं ब्यूटी क्वीन तो कहीं उम्र की अंतिम दहलीज पर भी चुनाव के मैदान में उतरे प्रत्याशियों को हर किसी ने देखा। लेकिन उत्तर प्रदेश में एक ऐसा भी शख्स सामने आया है, जो कागजों पर तो मुर्दा है लेकिन विधानसभा चुनाव लड़ रहा है।
दरअसल, वाराणसी के रहने वाले संतोष मूरत सिंह 20 वर्षों से कागजों पर मृत बताए जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बनारस में छितौनी के रहने वाले संतोष मूरत सिंह राजस्व अभिलेखों के मुताबिक उनकी मौत 2003 में मुंबई में ट्रेन बम धमाकों में हो चुकी है। संतोष का कहना है कि उनके नाते-रिश्तेदारों ने फर्जी तरीके से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर उनकी 18 बीघा जमीन अपने नाम कराने के बाद किसी और को बेच दी।
संतोष खुद को जिंदा साबित करने के लिए जद्दोजहद कर रहें हैं। पिछले 20 साल से गले में मैं जिंदा हूं की तख्ती डाल कर चल रहे हैं। संतोष के जीवन पर ओटीटी प्लेटफार्म पर ‘कागज’ मूवी भी रिलीज हो चुकी है। खुद को जिंदा साबित साबित करने के लिए संतोष मूरत सिंह जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने पर भी बैठ चुके हैं, लेकिन उनकी कहीं सुनवाई नहीं है।
खुद को जिंदा साबित करने के लिए संतोष 17 साल से किसी न किसी तरीके से चुनाव लड़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इसमें भी कामयाबी नहीं मिली। संतोष ने बताया कि 2012 में राष्ट्रपति चुनाव, 2014 और 2019 में वाराणसी सीट से लोकसभा चुनाव में नामांकन किया। इन चुनावों में उनका पर्चा खारिज तो हुआ पर वे राजस्व अभिलेखों में अब तक जिंदा घोषित नहीं हो सके। 2017 में उन्होंने वाराणसी की शिवपुर विधानसभा सीट से चुनाव भी लड़ा पर हार गए।
खुद को जिंदा साबित करने के लिए वे राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की जन्मभूमि कानपुर से चुनाव लड़ने आए हैं। ऐसे में अब यूपी विधानसभा चुनाव के लिए महाराजपुर विधानसभा सीट से नामांकन कराया था, लेकिन उनका नामांकन निरस्त कर दिया गया है। उनका कहना है कि, मेरे साथ बीस वर्षों से अन्याय हो रहा है। सत्ता में जो लोग बैठे हैं, मुर्दे से डरते हैं। इसलिए पुलिस को आगे करते हैं।
संतोष मूरत सिंह की लड़ाई में वो अब अकेले नहीं हैं, बल्कि कई युवा अब उनका साथ देने के लिए आग आए हैं। वाराणसी के रहने जितेंद्र बताते हैं कि जब से उन्हें संतोष के बारे में पता चला है तो अब वो उनके संघर्ष में उनके साथ हैं। संतोष दो दशक से सरकारी कागज में मृत हैं और इनकी जमीन पर पाटीदार ने कब्जा कर रखा है। इनके जज्बे को देखते हुए हम आगे आकर इनकी मदद कर रहें हैं। इनके क्षेत्र में जाकर चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार भी करेंगे।