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खो दी आंखों की रोशनी,लेकिन मेहनत से खुद लिखी किस्मत, प्रांजल पाटिल बनीं पहली नेत्रहीन महिला IAS

अगर किसी के इंसान के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो और उसके हौसले बुलंद हों, तो उसके आगे बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी घुटने टेक देती है। अक्सर इंसान अपने जीवन में कुछ करने का सपना देखता है परंतु सपने पूरे करने के लिए जीवन में कठिन मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है। जो व्यक्ति अपने सपने को पूरा करने के लिए लगातार मेहनत करता रहता है उसको अपनी मंजिल जरूर मिलती है।

आज हम आपको प्रांजल पाटिल की कामयाबी की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने महज 6 वर्ष की आयु में ही अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी परंतु उन्होंने कभी भी अपनी इस कमजोरी को अपने सपनों के आगे नहीं आने दिया। आंखों के अंधेरा जाने के बाद भी उन्होंने अपनी मेहनत लगन और मजबूत हौसले से सभी परिस्थितियों का सामना किया।

हाल ही में प्रांजल पाटिल ने देश की पहली दृष्टिबाधित आईएएस अधिकारी के रूप में तिरुवंतपुरम के सब कलेक्टर की जिम्मेदारी संभाली है ,इसी के साथ ही जो लोग अपनी किस्मत को दोष देने की बजाय अपनी जिंदगी बनाने में भरोसा रखते हैं, उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।

6 साल की उम्र में छीन गई आंखों की रोशनी

आपको बता दें कि प्रांजल पाटिल महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली हैं। जब प्रांजल पाटिल की आयु महज 6 वर्ष की थी तो वह अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों के साथ खेल रही थीं। उसी दौरान एक लड़के ने उनकी आंखों में पेंसिल चुभा दी थी। इस हादसे की वजह से प्रांजल पाटिल की एक आंख पूरी तरह से खराब हो गई थी। वहीं दूसरी आंख तो बस कहने के लिए ही सुरक्षित बची हुई थी। मगर जल्द ही उसकी रोशनी भी खत्म हो गई।

कम उम्र में ही प्रांजल पाटिल की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था परंतु उन्होंने अपने जीवन में कभी हार मानना नहीं सीखा। इस मुश्किल समय में उनके माता-पिता ने उनका पूरा सपोर्ट किया और उन्हें पढ़ने में रुचि दी थी। माता-पिता ने अपनी बेटी को मुंबई के दादर में नेत्रहीनों के लिए श्रीमती कमला मेहता स्कूल में भेजा था, जहां पर प्रांजल पाटिल ने एक लंबा समय व्यतीत किया।

तकनीक को बनाया अपना साथी

प्रांजल पाटिल ने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरी की। ऐसा बताया जाता है कि जब प्रांजल पाटिल ग्रेजुएशन कर रही थीं तो उसी दौरान उन्होंने आईएएस अधिकारी बनने की ठान ली थी जिसके लिए वह तैयारियों में भी जुट गई थीं। उन्होंने यूपीएससी से संबंधित जानकारियां जुटाने शुरू कर दी और फिर तैयारी करती रहीं।

ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद प्रांजल पाटिल दिल्ली आ गईं और फिर जेएनयू से उन्होंने MA किया। इसके बाद वह पूरी तरह से यूपीएससी की तैयारी में जुट गईं। उनके इस सफर में उन्होंने तकनीक को अपना साथी बनाया था। उन्होंने कई ऐसे सॉफ्टवेयर्स की सहायता ली थी जो खासतौर से नेत्रहीन लोगों के लिए बने हुए थे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए प्रांजल पाटिल ने कोई भी कोचिंग नहीं लेने का फैसला किया था। उन्होंने विशेष सॉफ्टवेयर की सहायता से अपनी परीक्षा की तैयारी की थी।

कठिन मेहनत और संघर्षों के बलबूते सपना किया साकार

प्रांजल पाटिल के हौसले बुलंद थे और उन्होंने कभी भी अपनी कमजोरी को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। वह खुद के दम पर लगातार कोशिश करती रहीं। प्रांजल पाटिल ने साल 2016 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें उन्हें ऑल इंडिया में 773वीं रैंक हासिल हुई थी परंतु दृष्टिबाधित होने की वजह से उन्हें रेलवे अकाउंटेंट्स सर्विस की नौकरी मिली थी।

हालांकि उन्होंने इसके बावजूद भी हार नहीं मानी। उसके बाद प्रांजल पाटिल ने साल 2017 में ऑल इंडिया में 124वीं रैंक हासिल कर इतिहास रच दिया। इस तरह प्रांजल पाटिल देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अफसर बनीं।

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