ब्रज में धूमधाम से खेली गई छड़ीमार होली, बरसो से निभाई जा रही इस प्रथा के पीछे ये है कारण
ब्रज की होली: श्री कृष्णा की भक्ति में रंग और गुलाल से सतरंगी हुआ आसमान, खेली गई छड़ीमार होली

होली के त्योहार की शुरुआत हो चुकी है। लोगों पर इसका खुमार चढ़ता जा रहा है। एक तरफ मथुरा के गोकुल में छड़ीमार होली खेली गई। वहीं, दूसरी तरफ वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर भस्म होली का आयोजन हुआ। इस दौरान दोनों ही जगह मौजूद लोगों का अलग जोश दिखा।
ब्रज में होली की धूम चारों ओर है। हर कोई रंगों की मस्ती में मस्त है। भगवान के साथ होली खेलकर अपने को धन्य मान रहा है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना, नंदगांव में लट्ठमार होली होती है, लेकिन गोकुल में छड़ीमार होली का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है। इसी भाव से भगवान बाल कृष्ण की नगरी गोकुल में होली खेली गई।
यहाँ की होली की विशेषता ये थी की यहाँ पर लाठियों की जगह छड़ी से होली खेली जाती है। मान्यता के अनुसार कान्हा को चोट ना लगे इसी वजह से गोकुल में छड़ी मार होली की परंपरा कृष्ण कालीन युग से चली आ रही है। जो छड़ी तैयार की जाती है, उस पर गोटेदार कपड़ा लपेटा जाता है। इससे भगवान श्रीकृष्ण-बलराम को चोट नहीं लगती है।
ब्रज की होली देखने लोग देश-विदेश से लोग आते हैं। होली के कुछ दिन पहले से ही मथुरा में अलग-अलग प्रकार की होली का जश्न शुरू हो जाता है। कोरोना महामारी के चलते पिछले दो साल से यह उत्साव थोड़ा फीका पड़ गया था। लेकिन इस साल लोगों में एक बार फिर जोश देखने को मिला। ब्रज में होली की तैयारियां जोरों-शोरों से की गई।
ब्रज में होली मनाने की वजह भी ख़ास है। दरअसल, भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था लेकिन उनका बचपन गोकुल में गुजरा। यही भाव आज तक गोकल वासियों के अन्दर है। यही कारण है की यहाँ की होली आज भी पूरे ब्रज से अलग है। भक्ति भाव से भक्त सबसे पहले बाल गोपाल को फूलों से सजी पालकी में बैठाकर नन्द भवन से मुरलीधर घाट ले जाते हैं। जहाँ भगवान बगीचे में बैठकर भक्तों के साथ होली खेलते हैं।
जिस समय बाल गोपाल का डोला नन्द भवन से निकलकर मुरलीधर घाट तक पहुँचता है उस दौरान चल रहे भक्त होली के गीतों पर नाचते हैं, गाते हैं और भगवान के डोले पर पुष्प बरसा करते हैं। सैकंडों वर्षों से चली आ रही इस होली की सबसे खास बात ये है की जब भगवान बगीचे में बैठकर भक्तों के साथ होली खेलते हैं उस दौरान हुरियारिन भगवान के साथ छड़ी से होली खेलती हैं।
ब्रज में सभी जगह होली लाठियों से खेली जाती है, लेकिन गोकुल में भगवान का बाल स्वरुप होने के कारण होली छड़ी से खेली जाती हैं जिसका आनंद न केवल गोकुल वाले बल्कि देश के कई इलाकों से हजारों भक्त भी लेते हैं।
बता दें कि गोकुल में होली द्वादशी से शुरू हो कर धुल होली तक चलती है। ब्रज के खास होली महोत्सव की शुरुआत इस साल 10 मार्च से हो गई जिसमें सबसे पहले 10 मार्च को लड्डू होली का आयोजन हुआ। मथुरा में लड्डू होली के अलावा फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगवाली होली और छड़ीमार होली का खूब जश्न मनाया गया।