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Ram Navami: भगवान श्रीराम से सीखे लाइफ मैनेजमेंट, उनकी ये 5 बातें बदल देगी लाइफ

‘जय श्रीराम’ दोस्तों। कल यानि 10 अप्रैल, रविवार को श्रीराम नवमी (Ram Navami 2022) आ रही है। ऐसे में हर राम भक्त इस पवन पर्व को मनाने के लिए बड़ा उत्साहित है। रामनवमी के दिन ही भगवान विष्णु ने श्रीराम का अवतार लिया था। वे अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे। यही वजह है कि इस दिन भव्य जश्न मनाया जाता है।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम एक बहुत ही सुलझे हुए थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐसे काम किए जिसने लोगों को प्रेरणा दी। ऐसे में आज हम आपको भगवान श्रीराम के लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों की जानकारी दे रहे हैं। यदि आप इन टिप्स को अपने जीवन में लागू करेंगे तो आपकी लाइफ बहुत ही अच्छी हो जाएगी।

माता-पिता की आज्ञा का पालन

आज का युवा अपने माता-पिता की बातें तक नहीं सुनता है। लेकिन भगवान श्रीराम अपने माता-पिता की हर आज्ञा का पालन करते थे। यहां तक कि पिता के एक वचन की खातिर उन्होंने 14 वर्षों का वनवास तक स्वीकार कर लिया था। राजा दशरथ ने तो बेटे से ये तक बोल दिया था कि तुम मुझे बलपूर्वक बंदी बनाकर राजा बन जाओ। लेकिन श्रीराम ऐसा नहीं कर सकते थे। उन्होंने पिता के वचन का मान रखते हुए वनवास जाना सही समझा।

जीवनभर एक ही पत्नी से रहे वफादार

आजकल के पुरुष शादी के बाद भी दूसरी महिलाओं पर नजर डालते हैं। लेकिन भगवान श्रीराम ने तो उस समय एक पत्नी व्रत का पालन किया जब त्रेतायुग में बहुपत्नी का प्रचलन था। उनके पिता दशरथ की खुद तीन-तीन बीवियां थी। लेकिन श्रीराम ने सिर्फ देवी सीता को ही हमेशा अपनी अर्धांगिनी माना। यहां तक कि जब माता सीता पाताल लोक चली गई, और फिर श्रीराम ने एक अनुष्ठान करा तो बीवी के रूप में सोने से बनी देवी सीता की प्रतिमा को पास रखा।

भाइयों से असीम स्नेह

आज के समय में भाई-भाई का नहीं होता है। पैसा और संपत्ति उन्हें अलग कर देती है। लेकिन भगवान राम ने अपने सभी भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न को अपने दिल के करीब रखा। लक्ष्मण तो हमेशा हर सुख-दुख में उनके साथ रहे। वहीं भरत और शत्रुघ्न को भी राम ने सही मार्गदर्शन दिया।

जाति भेद में नहीं किया यकीन

आज के समय में भी कई लोग जात-पात, छूत-छुआ-छूत जैसी चीजें मानते हैं। लेकिन भगवान श्रीराम ने कभी इन चीजों को बढ़ावा नहीं दिया। बल्कि उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाकर एक सामाजिक मिसाल पेश की। उन्होंने आमजन को संदेश दिया कि सच्ची श्रृद्धा ज्यादा मायने रखती है। इससे कोई भी ईश्वर का प्रिय हो सकता है।

दोस्ती पर आंच न आने देना

श्रीराम मित्रता को भी काफी महत्व देते थे। इसी मित्रता के चलते उन्होंने सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया था। वहीं मित्र विभीषण को भी लंका जीतने के बाद सारा राज्यभार सौंप दिया था। श्रीराम का मानना है कि जब भी मित्र पर विपत्ति आती है तो उसकी मदद करना चाहिए। मित्र बनाने में जाति को भी नहीं देखना चाहिए।

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