आखिर क्यों गणपति जी को प्रिय हैं मोदक? जानिए इसकी रोचक कहानी

भगवान गणेश जी एक ऐसे देवता हैं जो सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माने जाते हैं। पुराणों में गणपति जी के देवताओं में प्रथम पूज्य होने की अनेक कथाओं का उल्लेख किया गया है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी की पहले पूजा की जाए तो इससे काम में सफलता मिलती है और सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं विघ्नहर्ता गणेश जी को मोदक बहुत पसंद हैं। भगवान गणेश जी का सबसे पसंदीदा मिष्ठान्न मोदक है, इसी वजह से उन्हें इसका भोग जरूर लगाया जाता है। वहीं पद्मपुराण के सृष्टि खंड के अनुसार गणेश जी के प्रथम पूज्य होने की एक कथा भी बताई गई है, जो व्यास जी ने संजय से कही है।
आज हम आपको इस लेख के माध्यम से भगवान गणेश जी को मोदक इतना प्रिय क्यों है और भगवान गणेश जी के प्रथम पूज्य होने की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
माता पार्वती ने दिव्य मोदक बनाया
अगर हम इस कथा के मुताबिक देखें तो पूर्वकाल में माता पार्वती जी ने घोर तपस्या करके भगवान शिव जी को पति के रूप में प्राप्त किया। इसके बाद उनके संयोग से स्कन्द और गणेश नामक दो पुत्रों का जन्म हुआ। जब उन दोनों को देखा तो देवताओं की पार्वती जी पर बड़ी श्रद्धा हुई और उन्होंने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक पार्वती जी के हाथ में देकर उसकी महिमा का बखान किया।
यह दिव्य मोदक बहुत आकर्षक था और उसकी सुगंध से पूरा वातावरण सुगंधित हो गया। तब दोनों बालक उस दिव्य मोदक को माता से खाने के लिए मांगने लग गए। तब माता पार्वती जी ने विस्मित होकर पुत्रों से कहा- “मैं पहले इसके गुणों का वर्णन करती हूं, तुम दोनों सावधान होकर सुनो।”
माता पार्वती जी बोलीं- “इस मोदक के सूंघने मात्र से अमरत्व प्राप्त होता है। जो इसे सूंघता और खाता है, वह संपूर्ण शास्त्रों का मर्म,ज्ञ सब तन्त्रों में प्रवीण, लेखक, चित्रकार विद्वान, ज्ञान-विज्ञान के तत्व को जानने वाला और सरल हो जाता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं।”
माता-पिता की परिक्रमा गणेश जी ने की
माता पार्वती जी ने अपने पुत्रों से आगे यह कहा कि “तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आएगा, उसी को मैं यह मोदक दूंगी। तुम्हारे पिता की भी यही सम्मति है। जब दोनों ने अपनी माता के मुख से यह बात सुनी तो परम चतुर स्कन्द मयूर पर आरूढ़ होकर तुरंत ही त्रिलोकी के तीर्थों की यात्रा करने के लिए चल पड़े। उन्होंने क्षण भर में सब तीर्थों का स्नान कर लिया।
वहीं भगवान गणेश जी स्कन्द से भी आगे बढ़कर बुद्धिमान निकले। उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा की और बड़ी खुशी के साथ पिताजी के सम्मुख खड़े हो गए। क्योंकि भगवान गणेश जी यह बात भली-भांति जानते थे कि माता-पिता की परिक्रमा से संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है और इससे बड़ा धर्माचरण दूसरा कोई नहीं है।
गणेश जी पर प्रसन्न हो गए शिव-पार्वती
जब स्कन्द संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करने के पश्चात वापस लौटे तो वह बोले- मां मुझे मोदक दीजिए। तब माता पार्वती जी ने उनसे कहा कि “समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान, देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के संपूर्ण व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन आदि सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते।”
माता पार्वती जी ने कहा कि गणेश ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने माता-पिता का पूजन और प्रदक्षिणा की है। उन्होंने कहा कि गणेश का यह गुण सैकड़ों गुणों से भी बढ़कर है इसलिए इस दिव्य मोदक का वास्तविक अधिकारी माता पार्वती ने गणेश को बताया और उन्होंने कहा कि वह देवताओं के द्वारा बनाया गया यह दिव्य मोदक गणेश को ही अर्पण करेंगी। माता पार्वती बोलीं कि “माता-पिता की भक्ति की वजह से ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले गणेश की पूजा होगी।”
गणपति जी को बेहद प्रिय हैं मोदक
वहीं भगवान शिव जी ने कहा “इस गणेश के ही अग्रपूजन से संपूर्ण देवता प्रसन्न होंगे।” भगवान गणेश जी ने भी बहुत ही प्रेम से उस दिव्य मोदक को खाया। तभी से भगवान गणेश जी को मोदक बेहद पसंद है इसलिए किसी भी शुभ कार्य या पूजा-पाठ में सर्वप्रथम भगवान गणेश जी कि पहले पूजा होती है और उन्हें मोदक का भोग जरूर लगाया जाता है। तभी से मोदक का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई।