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हज़ारों झुग्गी के बच्चों के हाथ से कूड़ा छीन थमा दी किताबें, गरीब बच्चों का मसीहा है यह वकील

मौजूदा समय में शिक्षा लोगों के जीवन का बहुत ही अहम हिस्सा बन चुकी है। इसके बिना कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं है। वैसे देखा जाए तो पहले और अब के समय में बहुत ज्यादा फर्क आ चुका है। पहले पढ़ाई को इतना ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था किंतु आज शिक्षा है तो आप हैं, वरना आपकी कोई वैल्यू नहीं है। लेकिन आज के समय में भी देखा गया है कि कई गरीब परिवार के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। गरीबी के चलते यह बच्चे छोटी सी उम्र में ही काम करने लगते हैं।

पढ़ाई लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अच्छी शिक्षा प्राप्त करना हर देश के नागरिक का अधिकार है। आजकल के समय में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। जहां कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोच कर जीते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी जिंदगी दूसरों के लिए खपा देते हैं। लुधियाना के हरिओम जिंदल भी एक ऐसा ही नाम है।

झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को पढ़ा रहे निशुल्क

हरिओम जिंदल का जन्म 9 जून 1966 को पंजाब के लुधियाना जिला में हुआ था। इन्होंने अपने लाखों का कारोबार छोड़कर सालों से अपने शैक्षिक ज्ञान के जरिए झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ा रहे हैं। हरिओम जिंदल पेशे से वकील हैं, लेकिन इन्होंने गरीब बच्चों के हाथों से कूड़ा छीनकर उन्हें किताबे थमाई। इन किताबों के जरिए वह इन बच्चों के चेहरों पर मुस्कान ला रहे हैं। इनकी बस यही कोशिश है कि झुग्गियों के बच्चों की प्रतिभा संसाधनों के अभाव में दम ना तोड़े।

आसान नहीं था सफर

एक मीडिया से बातचीत के दौरान हरिओम ने अपने अब तक के सफर को शेयर किया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वह कैसे किताबों के जरिए बच्चों के चेहरे पर मुस्कान ला रहे हैं। दरअसल, हरिओम जिंदल का बचपन आम बच्चों की तरह नहीं रहा था। उनके पिताजी का नाम सुदर्शन जिंदल है, जो पेशे से एक कारोबारी थे। जैसे हर पिता अपने बच्चों को एक बेहतर जिंदगी देना चाहते हैं वैसे ही उनके पिता भी चाहते थे परंतु कारोबार में भारी नुकसान हुआ, जिसके चलते उन्हें अचानक ही फिरोजपुर शिफ्ट होना पड़ गया।

हरिओम की मेट्रिक स्तर की पढ़ाई गांव से ही संपन्न हुई है। किसी तरह उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और गांव से निकलकर ग्रेजुएशन की शिक्षा के लिए उन्होंने चंडीगढ़ के महाविधालय में एडमिशन लिया और यहीं से वह अपने जीवन में आगे बढ़ गए। हरिओम बताते हैं कि यह उनके लिए काफी कठिन वक्त था. परिवार का कारोबार तहस-नहस हो गया था। पिता आर्थिक संकट से जूझ रहे थे। ऐसे में उनके सामने बड़ा सवाल था कि वह परिवार की मदद कैसे करें?

हरिओम ने इसके लिए कई छोटी-मोटी नौकरियां शुरुआत में की। कम पैसों में ही उन्होंने जैसे तैसे अपना खर्च चलाया और आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय शिपिंग का कारोबार शुरू हुआ। धीरे-धीरे उनके परिवार की स्थिति में सुधार हुआ और सब कुछ पहले जैसा होने लग गया। लेकिन कुछ था जो हरिओम को काफी परेशान कर रहा था।

झुग्गी के बच्चों के हाथ से कूड़ा छीन थमाई किताबें

हरिओम के मन में एक बात चिंता का विषय बनी हुई थी कि उनके माता-पिता तो थे, दिक्कतें थीं, उनके मेरे पास पढ़ने के संसाधन थे। हरिओम कहते हैं कि मगर, उन बच्चों का क्या, जिनके पास मां-बाप नहीं हैं। वह बच्चे कैसे पढ़ाई करते होंगे, जिनके पास संसाधन नहीं हैं। यही वजह रही कि उन्होंने कारोबार छोड़कर 44 साल की उम्र में वकालत की पढ़ाई शुरू की ताकि वह झुग्गियों के बच्चों को पढ़ा सकें और उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक करा सकें।

हरिओम कहते हैं कि “अब मैं झुग्गियों के बच्चों के लिए छह स्कूल चला पा रहा हूं, जिसमें सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से ज्यादातर वह बच्चे हैं, जो झुग्गियों में कूड़ा बीनते थे, इन्होंने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था।” हरिओम झुग्गी के बच्चों के लिए बेहद नेक कार्य कर रहे हैं। परंतु उनके पढ़ाने का तरीका उससे ज्यादा खास है।

ए फॉर एप्पल नहीं एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ाते हैं हरिओम

हरिओम जिंदल बच्चों को किताबी ज्ञान नहीं दे रहे हैं, बल्कि उन्हें जागरूक भी करा रहे हैं। इसलिए उनका बच्चों को पढ़ाने का तरीका भी अलग ही है। वह बच्चों को ए फॉर एप्पल नहीं एडमिनिस्ट्रेशन, बी फॉर ब्वॉय नहीं ब्यूरोक्रेसी पढ़ाते हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अल्फाबेट्स की एक खास किताब (Empowerment through Knowledge) तैयार की है।

हरिओम बताते हैं कि इस तरह पढ़ाने के दो बड़े फायदे हैं। पहला बच्चे शिक्षित होते हैं, दूसरा वे समाज के प्रति जागरूक होते हैं। वह बच्चों को यह समझते हैं कि एडमिनिस्ट्रेशन क्या होता है, कॉन्स्टिट्यूशन क्या है। हरिओम जिंदल बच्चों को कंप्यूटर चलाना भी सिखा रहे हैं। इसके लिए कंप्यूटर सेंटर बनाया गया है। जहां बच्चे फ्री में कंप्यूटर चलाना सीखते हैं। उनका काम अब जमीन पर दिखाई देने लगा है। उनके पढ़ाए बच्चे फार्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। कई बच्चे अलग-अलग मंचों पर अपनी प्रतिभा के लिए सम्मानित किए जा चुके हैं।

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