बॉलीवुड

नेत्रहीन होते हुए भी रवींद्र जैन ने “रामायण” को कर दिया अमर, अमीर खान ने गाना माँगा था उधार

इस संसार में ऐसे बहुत से लोग रहते हैं, जो शारीरिक रूप से पूरी तरह से ठीक हैं। परंतु वह अपने जीवन में कुछ बेहतर नहीं कर पाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी इस दुनिया में मौजूद हैं, जो अपनी कमजोरियों को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाकर पूरी दुनिया में नाम कमाते हैं। उन्हीं में से एक शख्सियत हैं रवींद्र जैन, जिनके गुणों का बखान जितना किया जाए कम है।

रवींद्र जैन बचपन से ही नेत्रहीन थे परंतु उन्होंने बॉलीवुड इंडस्ट्री में अपना भरपूर योगदान दिया। संगीतकार रवींद्र जैन ही वह इंसान थे, जिन्होंने “रामायण” के लिए आइकॉनिक और आउटस्टैंडिंग म्यूजिक दिया था। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से इन शख्सियत रवींद्र जैन से जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहे हैं।

जन्म से ही नेत्रहीन थे रवींद्र जैन

28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे रवींद्र जैन जन्म से ही नेत्रहीन थे। वह सात भाई-बहनों में तीसरे नंबर के थे। उनके पिताजी का नाम इंद्रमणि जैन था, जो एक संस्कृत पंडित थे। पद्मश्री सम्मानित रवींद्र जैन ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के ब्लाइंड स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी। अकादमिक रूप से अध्ययन करने का कोई मौका प्राप्त ना होने की वजह से रवींद्र जैन ने बेहद छोटी उम्र में ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। वह शुरुआत में मंदिरों में भक्ति गीत गाते थे। उन्होंने जीएल जैन, जनार्दन शर्मा और नाथू राम जैसे दिग्गजों की शरण में रहकर संगीत का प्रशिक्षण लिया।

साल 1969 में चले आए थे मुंबई

जब रवींद्र जैन ने अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली, तो उसके बाद वह कोलकाता चले गए थे। उन्होंने वहां पर पांच रेडियो स्टेशनों में एक सिंगर के तौर पर ऑडिशन दिया था परंतु उन्हें रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। उस समय के दौरान रवींद्र जैन के गुरू राधे श्याम झुनझुनवाला एक फिल्म बना रहे थे, जिसमें उन्होंने रवींद्र जैन को संगीत देने के लिए कहा था और साल 1969 में उनको लेकर मुंबई आ गए थे।

इस फिल्म से म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में बॉलीवुड में किया डेब्यू

रवींद्र जैन ने एक म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में 14 जनवरी 1971 को फिल्म “लोरी” से डेब्यू किया था। इस गीत को मोहम्मद रफी ने गाया था। इसके बाद फिल्म लोरी के लिए रवींद्र जैन ने लता मंगेशकर और आशा भोंसले से भी गाने गवाए थे परंतु यह फिल्म दुर्भाग्यवश रिलीज ना हो सकी। इसके बाद फिल्म “कांच और हीरा (1972)” में रवींद्र जैन ने रफी साहब से “नजर आती नहीं मंजिल” गाना गवाया था परंतु इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर असफलता का सामना करना पड़ा।

रवींद्र जैन को बतौर म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में काम करने का मौका साल 1973 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “सौदागर” से मिला था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने किशोर कुमार से फिल्म “चोर मचाए शोर” में “घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं” गीत गवाया था। फिर उन्होंने श्याम तेरे कितने नाम, जब-जब तू मेरे सामने आए, अंखियों के झरोखे से, गीत गाता चल, दुल्हन वही जो पिया मन भाए जैसे गाने गाकर बॉलीवुड को मैलोडियस बना दिया।

जब मिली पिता के निधन की खबर

आपको बता दें कि रवींद्र जैन अपने काम को ही पूजा मानते थे। वह अपने काम की हमेशा पूजा करते थे। साल 1973 की बात है, जब वह फिल्म “सौदागर” पर काम कर रहे थे। इस दौरान जब वह अपने रिकॉर्डिंग स्टूडियो में थे, तो उन्हें अचानक से ही अपने पिताजी के निधन की खबर मिली थी। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपना काम पूरा होने तक स्टूडियो नहीं छोड़ा था। रवींद्र जैन के लिए काम हमेशा पूजा था।

केजे येसुदास का देखना चाहते थे चेहरा

जब रवींद्र जैन साउथ इंडियन सिंगर केजे येसुदास से मिले थे तब उनके करियर में जबरदस्त उछाल आया था। उन्होंने केजे येसुदास के टैलेंट का फायदा उठाया और दोनों ने 1970 और 1980 के दशक में एक के बाद एक हिट फिल्में दीं। उन्होंने केजे येसुदास को ‘भारत की आवाज’ के रूप में नामित किया था। रवींद्र जैन ने एक बार पब्लिकली यह भी कहा था कि अगर उन्हें कभी आंखों की रोशनी मिलती है, तो सबसे पहले वह जिसका चेहरा देखना चाहते थे, वह केजे येसुदास हैं।

रवींद्र जैन 80 के दशक में बहुत ज्यादा मशहूर थे। फिल्म “पति-पत्नी और वो” और “इंसाफ का तराजू” में म्यूजिक देने के लिए बीआर चोपड़ा ने उन्हें साइन किया था। इतना ही नहीं बल्कि जब लक्ष्मीकांत प्यारे लाल से अभिनेता राज कपूर का झगड़ा हो गया था, तो उन्होंने “राम तेरी गंगा मैली”, “प्रेम रोग” और “हिना” में म्यूजिक देने के लिए रवींद्र जैन को ही साइन किया था। “राम तेरी गंगा मैली” के संगीत के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार भी मिला था। उन्हें 2015 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

रवींद्र जैन ने रामानंद सागर की “रामायण” को कर दिया अमर

फिल्मों के अलावा रवींद्र जैन ने टीवी की दुनिया का मशहूर पौराणिक सीरियल “रामायण” का भी संगीत दिया था। साथ कई चौपाइयों को उन्होंने अपनी आवाज दी थी। बेशक रवींद्र जैन नहीं हैं, मगर महान हिंदू महाकाव्य पर आधारित रामानंद सागर का टेलीविजन धारावाहिक “रामायण” के लिए उनका संगीत आज भी लोग याद करते हैं।

बता दें कि रवींद्र जैन ने बंगाली और मलयालम सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में कई धार्मिक एल्बम भी तैयार किए थे, जो देश भर के मंदिरों में बजते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रवींद्र जैन को कभी भी काम की कमी नहीं हुई थी। उन्होंने कुरान का अरबी भाषा से सरल उर्दू जबान में अनुवाद किया और श्रीमद्ध भागवत गीता का भी सरल हिंदी अनुवाद किया।

जब अमीर खां ने उधार मांग लिया गाना…

जब मैं कलकत्ता में था तो उनके रियाज के वक्त उन्हीं के साथ बैठा करता था। फिल्म ‘कोतवाल साहबÓ का मेरा गीत ‘साथी रे, भूल न जाना मेरा प्यार’ खां साहब को खासा पसंद आता था। वे मुझसे कहते थे कि ये गीत तू मुझे दे दे। मैं इसे संगीत सभाओं में गाऊंगा।

8 अक्टूबर 2015 को हो गया था निधन

आपको बता दें कि रवींद्र जैन ने 8 अक्टूबर 2015 को हमेशा के लिए आंखें मूंद लीं। किडनी की बीमारी के चलते रवींद्र जैन का निधन हो गया था। अगर हम उनके परिवार की बात करें तो उनके परिवार में पत्नी दिव्या और बेटा आयुष्मान है।

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