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शख्स ने शुरू किया इंसानियत का ढाबा, पेट भर खाओ, जितना मन हो उतने पैसे दो, नहीं है तो मत दो…

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं लोगों के जीवन में कई प्रकार की घटनाएं घटित होती हैं परंतु कई बार ऐसा होता है कि लोगों के साथ ऐसी घटनाएं घट जाती हैं, जो उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख देती हैं। आज हम आपको तमिलनाडु के शेखर पुवरासन (Sekar Poovarasan) की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिसने उनकी जिंदगी के देखने का नजरिया ही बदल दिया।

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, शेखर, जिनकी उम्र 22 वर्ष की है वह एक दिन उदास होकर पुड्डूचेरी समुद्र तट पर रेत पर बैठे हुए थे। शेखर को बहुत सी चिंताओं ने घेरे हुआ था। उनको अपने जीवन की समस्याओं का कोई भी समाधान नहीं मिल रहा था। शेखर ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियर में डिप्लोमा किया हुआ है।

लेकिन शेखर को नौकरी नहीं मिल पा रही थी। शेखर ने नौकरी पाने की हर मुमकिन कोशिश की परंतु कोरोना महामारी ने नौकरी के सारे रास्ते बंद कर दिए थे। वहीं इसी दौरान शेखर को अपने बीमार पिता के इलाज की भी चिंता सता रही थी।

एक बुजुर्ग की दृष्टि ने शेखर का बदल दिया जीवन

शेखर को इन सभी चिंताओं के बीच भूख भी लगी थी लेकिन उनकी जेब में सिर्फ ₹10 ही पड़े हुए थे। शेखर अपनी भूख मिटाना चाहते थे, जिसके लिए वह एक चाय की दुकान पर पहुंचे। वहां पर उन्होंने एक बुजुर्ग को दयनीय हालत में देखा। शेखर ने बुजुर्ग से पूछा- आपने कुछ खाया है? बुजुर्ग ने जवाब में कहा कि उसे बहुत भूख लगी है।

शेखर ने बुजुर्गों को चाय पिलाई। बुजुर्ग की आंखों में धन्यवाद का भाव था लेकिन वह जिस तरह से एकटक शेखर को देख रहे थे, उसने शेखर को प्रभावित कर दिया।

फिर शुरू किया इंसानियत का ढाबा

जब शेखर घर लौटे तो उनको उसे पूरी तरह से बदल दिया था। अब उसका मन पहले से अधिक भारी हो गया था। शेखर ने घर पहुंच कर अपनी मां से कहा कि अगर किसी भी इंसान को खाने के लिए गिड़गिड़ाना या भीख मांगना पड़े तो यह बेहद शर्मनाक बात है। शेखर ने अपनी मां एस कुप्पम्मा से उनकी बचत के पैसे मांगे और फूड स्टॉल लगाया। शेखर ने तिंडीवनम पुड्डूचेरी हाईवे (Tindivanam Puducherry Highway) पर थेन्कोदीपक्कम (Thenkodipakkam) पर मानधनेयम (Manidhaneyam) यानी इंसानियत नामक ढाबा खोला। शेखर यहां लोगों को खाने में पोंगल, इडली, सांभर, चटनी देते हैं।

इच्छानुसार पैसे दीजिए, चलिए इंसानियत की सेवा करें

सबसे अहम बात यह है कि इस दौरान वह किसी से भी खाने के लिए पैसे नहीं मांगते हैं। उनके स्टॉल के पास एक पैसों का बक्सा भी रखा हुआ है जिस पर लिखा हुआ है “इच्छानुसार पैसे दीजिए, चलिए इंसानियत की सेवा करें।” नाश्ते के लिए कई ऑफिस जाने वाले लोग, छात्र इस स्टॉल पर आते हैं। शेखर और उसकी मां सुबह 5:00 बजे उठकर खाना बनाते हैं और 7:30 बजे यह स्टॉल हाईवे पर लग जाता है।

शेखर के स्टॉल पर उन्हें भी खाना खिलाया जाता है जिनके पास पैसे नहीं होते हैं। स्टॉल चलाने के लिए रोजाना ₹1000 तक खर्च हो जाते हैं लेकिन कमाई ₹500 की ही होती है। इसके बावजूद भी वह अपनी मां के साथ स्टॉल लगाते हैं ताकि खाना खाने के लिए किसी को गिड़गिड़ाना या भीख न मांगना पड़े। शेखर आज भी भूखे लोगों के लिए खाना बना रहे हैं और उनको खिला रहे हैं।

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