मीना कुमारी और रवींद्रनाथ टैगोर के बीच था ये खास रिश्ता, बहुत कम लोग जानते हैं

मीना कुमारी (Meena Kumari) बॉलीवुड की गुजरे जमाने की सबसे खूबसूरत अदाकाराओं में से एक रही हैं। उन्हें ट्रेजडी क्वीन के नाम से भी जाना जाता है। इसकी वजह ये है कि उनकी लाइफ में कई सारे दुख रहे। मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1933 को मुंबई के दादर में हुआ था। वह बेहद काम समय में ही दुनिया छोड़ गई थी। उनका निधन 31 मार्च 1972 को हुआ था। उनका असली नाम महजबीन था।
रवींद्रनाथ टैगोर से था मीना कुमारी का कनेक्शन
मीन कुमारी एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी। उनके मास्टर अली बख्श पारसी रंगमंच और संगीत के क्षेत्र में काम करते थे। वहीं माँ इकबाल बेगम एक अभिनेत्री और डान्सर थी। आपको जान हैरानी होगी कि मीना कुमारी का कोलकाता के फेमस टैगोर परिवार से संबंध था। वे नोबल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की रिश्तेदार थी।
दरअसल मीना कुमारी की दादी हेमसुंदरी टैगोर की शादी जदू नंदन टैगोर से हुई थी। नंदन टैगोर, दर्पण नारायण टैगोर के परपोते और रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) के चचेरे भाई थे। हेमसुंदरी ने पति की मौत के बाद मेरठ में बतौर नर्स काम करना शुरू कर दिया। यहां वे स्थानीय साहित्यिक कवि मुंशी प्यारे लाल शाकिर से मिली। दोनों में प्यार हुआ और वे शादी के बंधन में बंध गए।
गरीबी और अपमान के साए में बीता बचपन
शादी के बाद हेमसुंदरी ने अपने पति का ईसाई धर्म अपना लिया। इस शादी से उन्हें बेटी प्रभावती देवी हुई जिसमें गाना गाने का कमाल का हुनर था। प्रभावती देवी जब बड़ी हुई तो फिल्मों में गाने के लिए मुंबई आ गई। यहां उनकी मुलाकात हारमोनियम वादक और संगीत शिक्षक मास्टर अली बख्श से हुई। दोनों में पहले प्यार हुआ फिर उन्होंने शादी रचा ली। शादी के बाद उन्होंने अपना नाम प्रभावती देवी से इकबाल बानो कर लिया।
अब इकबाल बानो फिल्मों में अभिनय और डांस करने लगी। वहीं उनके पति अली संगीत वाद्ययंत्र बजाने लगे। इस शादी से दोनों की पहली संतान महजबीन (मीना कुमारी) हुई। हालांकि अली को बेटा चाहिए था इसलिए उन्होंने बेटी को अनाथालय छोड़ दिया। हालांकि बाद में दया दिखते हुए वापस घर ले आए। इसके बाद महजबीन उर्फ मीना कुमारी का पूरा बचपन गरीबी, अपमान, अस्वीकृति और अकेलेपन में बीता।
मीना कुमारी ने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कम उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था। उनका करियर 33 साल लंबा रहा। इसमें उन्होंने बैजू बावरा (1952), दाएरा (1953), साहिब बीबी और गुलाम (1962) और उनका हंस गीत, पाकीज़ा (1972) जैसी हिट फिल्में दी। उन्हें अपने फिल्मी करियर में चार फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। वहीं 1963 में साहिब बीबी और गुलाम के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।
शादी के बाद भी मिला धोखा
मीना की शादीशुदा लाइफ की बात करें तो उन्होंने निर्देशक और लेखक कमाल अमरोही से 1952 में चोरी छिपे शादी रचा ली थी। हैरत की बात ये थी कि जब अमरोही पहले से शादीशुदा और तीन बच्चों के बाप थे। मीना और अमरोही की मुलाकात अशोक कुमार ने करवाई थी। दरअसल शादी के पहले मीना एक कार एक्सीडेंट का शिकार हो गई थी। उनकी हालत काफी गंभीर थी। तब अमरोही उनसे मिलने जाया करते थे। उनके साथ वक्त बिताते थे। इसी दौरान दोनों में प्यार हो गया। हालांकि शादी के बाद अमरोही ने भी मीना का बहुत अपमान किया। उन्हें बहुत दुख दिए।
दिवंगत पत्रकार विनोद मेहता ने मीना कुमारी की जीवनी में बताया था कि वे दूसरे सितारों से काफी अलग थी। उन्हें कविताएं पढ़ना पसंद था। साहित्य से प्रेम था। वे बेहतरीन शायरा थी। वे एक उच्च जीवन जीने की लालसा रखती थी। हालांकि वह एक शराबी भी थी। उनके परिवार ने उनका बहुत शोषण किया। वहीं शादी के बाद अमरोही ने भी उन्हें धोखा दिया।