मां-बाप को पालकी में बैठाकर हरिद्वार पहुंचा बेटा,अपना दर्द छिपाने के लिए आंखों पर बांध दी पट्टी

माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। माता-पिता हर समय अपने बच्चों को बेहतर बनाने के लिए खुद को झोंक देते हैं। माता-पिता भगवान की ओर से सबसे कीमती उपहार है। हमारे जीवन में माता-पिता का स्थान सर्वोपरि माना गया है। माता-पिता पूजनीय होते हैं, जो हमें भगवान से बढ़कर सुख सुविधाएं प्रदान करते हैं। लेकिन कलयुग की बात करें तो आज के जमाने में अक्सर देखा गया है कि बच्चे अपने बूढ़े माता-पिता को बेसहारा छोड़ देते हैं।
आप सभी लोगों ने श्रवण कुमार की कहानी तो सुनी ही होगी। किस प्रकार से उन्होंने अपने अंधे माता-पिता को कंधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा करवाई थी। उन्होंने बहंगी बनाकर उसमें एक तरफ अपनी माता और दूसरी तरफ अपने पिता को बैठाया था और तीर्थ यात्रा करवाई थी। लेकिन में कलयुग में श्रवण कुमार जैसा बेटा किसी नसीब वालों को ही मिलता है। इसी बीच एक बेटा श्रवण कुमार बनकर अपने माता-पिता को अपने कंधों पर बैठाकर कावड़ यात्रा करता हुआ नजर आया। इसे देखकर लोग युवक को श्रवण कुमार बता रहे हैं।
9 दिनों में यात्रा पैदल पुरी की
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो इस युवक का नाम विकास गहलोत है, जो गाजियाबाद के केमरीपुर के रहने वाले हैं। विकास अपने कंधे पर कावड़ में एक और अपनी माता, तो दूसरी तरफ अपने पिता को बैठाकर गंगाजल लेने हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने इस यात्रा को पैदल ही चलकर 9 दिनों में पूरी की। इसका वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो रही हैं।
अपना दर्द छुपाने के लिए माता-पिता की आंखों पर बांध दी पट्टी
विकास ने यह बताया कि उनकी आंखों पर पट्टी इसलिए बांधी ताकि माता-पिता उनकी तकलीफ ना देख सकें। विकास का कहना है कि माता-पिता किसी तरह से भावुक ना हो सकें। माता-पिता के भावुक होने पर वह यात्रा पूरी नहीं कर पाएगा। बीच-बीच में इस दौरान कुछ लोग विकास को रास्ते में सहारा भी दे रहे थे।
कड़ी धूप और बारिश में सैकड़ों किलोमीटर का पैदल सफर, विकास की हिम्मत और मातृ-पितृ भक्ति की हर कोई तारीफ कर रहा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि पिता के साथ 20 लीटर गंगाजल का कैन भी है। विकास गहलोत का कहना है कि उनके माता-पिता ने कांवड़ यात्रा की इच्छा जताई थी।
हालांकि, उनके माता-पिता की उम्र इस बात के लिए तैयार नहीं थी कि वह पैदल जा सकें, जिसके बाद विकास में मन बनाकर दृढ़ निश्चय किया और उन्होंने अपने माता-पिता को यात्रा करवाने का संकल्प लिया।
आपको बता दें कि विकास के कंधों पर पालकी बांस की जगह लोहे के मजबूत चादर की बनी हुई है। विकास के कंधे पर पालकी में उसके माता-पिता को बैठा देखकर हर कोई हैरान हो गया था। वहीं विकास के माता-पिता भी अपने बेटे के इस नेक काम पर काफी खुश थे। विकास ने हरिद्वार पहुंचकर हरकी पौड़ी से गंगाजल भरा, इसके बाद वह वापस घर को चले आए।
आपको बता दें कि कांवड़ मेला यात्रा धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास, भक्ति संग आध्यात्मिक शक्ति के मिलन का पर्व है। कावड़ मेला यात्रा को लेकर भक्तों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। भारी संख्या में लोग कावड़ लेकर पहुंच रहे हैं। श्रावण मास में दो सप्ताह तक चलने वाली यात्रा में भक्त धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कांवड़ में गंगाजल भरकर अपने गंतव्य तक जाते हैं।