जब साधारण दिखने वाले लोग हुए अपमानित, फिर लिया ऐसा बदला कि दुनिया ने ठोका सलाम, पढ़ें 5 कहानियां
आप सभी लोगों ने अंग्रेजी की यह कहावत तो जरूर सुनी होगी, “डोंट जज ए बुक बाई इट्स कवर…।” हमारे देश में यह कहावत कई बार सच साबित हो चुकी है क्योंकि हमारे यहां पर लोगों को उनके पहनावे से जज करने का अनोखा चलन है। अक्सर लोग कपड़े पहनने के ढंग से सामने वाले को जज कर लेते हैं। चाहे वह इंसान कितना भी मालामाल क्यों ना हो। लोग उसको कंगाल ही समझते हैं।
लोग अक्सर सामने वाले के पहनावे और उसके रूप रंग को देखकर उसकी हैसियत का अंदाजा लगा लेते हैं। लोग सच जाने बिना ही साधारण कपड़े पहने और साधारण दिखने वालों का अपमान कर देते हैं परंतु ऐसे कई मौके भी आए हैं, जब साधारण दिखने वालों को जब अपमानित करके भगा दिया गया तब उन्होंने कुछ ऐसा किया की दुनिया हैरत में पड़ गई।
आज हम इस लेख के माध्यम से कुछ ऐसी ही कहानी लेकर आए हैं, जहां पर जब अपमान हुआ तो कोई कुछ ही घंटों में लाखों रुपए लेकर आ गया तो किसी ने कार कंपनी खड़ी करके अपनी बेइज्जती का बदला लिया।
किसान को देख सेल्समैन ने की बेइज्जती, कुछ ही देर में ले आया लाखों रुपए
हाल ही में कर्नाटक के तुमकुर से एक मामला सामने आया था। जब किसान केंपेगौड़ा आरएल कर्नाटक के एक शोरूम में अपने दोस्त के साथ गाड़ी खरीदने के लिए पहुंचे हुए थे लेकिन जब वह शोरूम गए तो उनकी हालत देखकर कार शोरूम के सेल्समैन ने उनका मजाक उड़ाया और ताना मारा।
इतना ही नहीं बल्कि सेल्समैन ने उन्हें गरीब समझकर भगा दिया था परंतु सबसे हैरत वाली बात यह थी कि वह किसान महज 30 मिनट के अंदर ही 10 लाख रुपए नगद लेकर महिंद्रा शोरूम पहुंच गया। आखिरकार सेल्समैन को उनसे माफी मांगनी पड़ी।
जब किसान लाखों रुपए लेकर पहुंचा तो देखकर सेल्समैन भी हैरत में पड़ गया था। उसने अगले 4 दिन के अंदर गाड़ी डिलीवरी करने का वादा भी किया था परंतु छुट्टियां पड़ने की वजह से वादा पूरा ना हो सका और किसान को समय पर गाड़ी नहीं मिल पाई थी। ऐसी स्थिति में किसान ने पुलिस में भी शिकायत दर्ज कर दी थी। जब यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो उसके बाद महिंद्रा एंड महिंद्रा के अध्यक्ष आनंद महिंद्रा ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी और किसान को गाड़ी मिल गई।
रतन टाटा ने Ford से लिया अपमान का बदला
भारत में रतन टाटा का नाम उद्योग जगत में बड़े ही आदर और सम्मान के साथ जाना जाता है। दरअसल साल 1998 की बात है, जब रतन टाटा ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के फेल होने पर टाटा ग्रुप के अन्य मेंबर्स ने सलाह मानकर डेट्रॉयट पहुंचे थे। जब वह यहां पर पहुंचे तो टॉप ऑफिसर्स के साथ बैठक चली। इस दौरान टॉप ऑफिसर्स की बैठक में फोर्ड के द्वारा रतन टाटा को यह कहते हुए अपमानित कर दिया गया कि वह रतन टाटा की कार डिवीजन खरीद कर उनके ऊपर एहसान कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह कहा कि जब उन्हें कार डिजाइन करनी नहीं आती तो कार डिवीजन को शुरू नहीं करना चाहिए था।
बस क्या था फोर्ड की इस बात से रतन टाटा को काफी ठेस पहुंची और वह बैठक से बाहर आ गए। इसके साथ ही उन्होंने अपने कार डिवीजन को नहीं बेचने का निर्णय लिया। इसके बाद रतन टाटा ने अपनी कमियों को सुधारा। उन्होंने अपने कार सेगमेंट को बेचने का विचार बदल दिया था और अपना पूरा ध्यान अपने कार बिजनेस में लगाया। मेहनत करते रहे और आखिर में उनकी मेहनत रंग लाई।
रतन टाटा ने अपनी मेहनत के दम पर टाटा मोटर्स को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। जहां टाटा की टाटा मोटर्स कामयाब हो रही थी तो वहीं 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान फोर्ड कंपनी दिवालिया की स्थिति में आ गई। ऐसे में रतन टाटा ने बाजी पलट दी।
फोर्ड कंपनी दिवालिया होने की कगार पर थी और उसे अपने जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) डिवीजन के लिए एक अच्छे खरीदार की तलाश थी। रतन टाटा ने इसे सही अवसर के रूप में देखा और प्रतिष्ठित ब्रांड को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया। इस पर फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा को धन्यवाद देते हुए कहा “आप जेएलआर को खरीद कर हम पर बड़ा एहसान कर रहे हैं।”
जमशेदजी टाटा का बदला “ताज होटल”
होटल ताज जिसमें रहना खाना हर किसी का सपना होता है। दुनिया भर में ताज होटल की खूबसूरती के चर्चे हैं लेकिन दुनिया भर के यात्रियों के बीच अपनी खास पहचान बनाने वाला यह ताज होटल ब्रांड एक अपमान का बदला लेने के लिए बनाया गया था। साल 1903 में टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के द्वारा ताज का पहला होटल बनवाया गया था।
दरअसल, यह बात उस वक्त की है जब जमशेदजी टाटा ब्रिटेन गए हुए थे। उनको यहां पर उनके एक विदेशी दोस्त ने एक होटल में मिलने के लिए बुलाया। टाटा ग्रुप की वेबसाइट के मुताबिक जब जमशेदजी अपने दोस्त के साथ उस होटल में गए तो मैनेजर ने उनको अंदर जाने से मना कर दिया था। मैनेजर ने यह कहा था कि हम भारतीयों को अंदर आने की इजाजत नहीं देते। जब यह बात जमशेदजी टाटा ने सुनी तो उन्होंने सिर्फ खुद का ही नहीं बल्कि पूरे भारत का अपमान महसूस किया।
फिर क्या था उन्होंने यह ठान लिया कि वह एक ऐसे होटल का निर्माण करेंगे जहां भारत ही नहीं बल्कि विदेशी भी आकर रह पाएंगे। उन्होंने ब्रिटेन से मुंबई आने के बाद मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया के सामने पहले ताज होटल का निर्माण कार्य शुरू कर दिया। यह होटल समुद्र के बिल्कुल सामने बना हुआ है। अब जब भी उस देश के लोग भारत आते हैं तो ज्यादातर इसी ताज में ही रुकते हैं। वर्तमान में ताज पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र है।
किसान के बेटे ने फरारी से अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए बना डाली थी लम्बोर्गिनी
एक किसान के बेटे फारुशियो लेम्बोर्गिनी ने वर्ल्ड वॉर 2 में भाग लेने के बाद एक ट्रैक्टर मैन्युफैक्चरिंग की कंपनी की शुरुआत की थी। हमेशा से ही उन्हें स्पोर्ट्स कारों और रेसिंग में बहुत ज्यादा दिलचस्पी रही थी। साल 1958 की बात है, जब उन्होंने टू सीटर कूपे फरारी 250 जीटी खरीदी थी। फारुशियो को इस कार में कुछ खामियां नजर आईं, जिसके बाद उन्होंने इन खामियों को कंपनी को बताने के बारे में सोचा, जिससे वह अपनी गाड़ियों में सुधार कर सके। जिसके बाद उन्होंने ऐसा किया भी।
लेकिन फेरारी 1960 के दशक में सबसे शानदार स्पोर्ट्स कार बनाने वाली चंद कंपनियों में से एक थी और उसका बड़ा नाम था। बस क्या था उसे इसी नाम पर काफी घमंड हो गया था। घमंड में चूर उन्होंने युवा ट्रैक्टर मैकेनिक फारुशियो की बात को नजरअंदाज कर दिया। इतना ही नहीं बल्कि उनकी बेइज्जती भी की।
उनका अपमान करते हुए कहा कि “दिक्कत गाड़ी में नहीं, उसे चलाने वाले ड्राइवर में है। गाड़ियों में ध्यान देने से अच्छा है तुम अपने ट्रैक्टर बिजनेस पर ध्यान दो। बस क्या था फारुशियो को फरारी की यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई थी। उनकी इस बात से उनके मन को बहुत ज्यादा ठेस पहुंची और उनके दिमाग में इसी ठेस ने एक नई सोच को पैदा कर दिया।
उन्होंने ऐसी गाड़ियां तैयार करने के बारे में सोचा जो फेरारी को टक्कर दे सके। इसके तुरंत बाद ही नए कार्य के डिजाइन पर उन्होंने काम करना शुरू कर दिया। 4 महीने तक वह लगातार मेहनत करते रहे जिसके बाद उन्होंने अक्टूबर 1963 में हुए टूरिन मोटर शो में अपनी लेम्बोर्गिनी 350 जीटी उतार दी। कार के दीवानों उनकी इस नई कार ने खूब आकर्षित किया। टूरिन मोटर शो में मिली कामयाबी के बाद फारुशियो लेम्बोर्गिनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1964 की शुरुआत होते ही लम्बोर्गिनी की कारों की बिक्री शुरू हो गई। ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही लम्बोर्गिनी की बिक्री शुरू हुई तो लोगों के बीच इसे खरीदने की होड़ लग गई।
महाराजा जयसिंह ने रोल्स रॉयस कार से कचरा उठवाकर लिया था अपने अपमान का बदला
जयपुर के महाराजा जयसिंह एक बार लंदन गए हुए थे। वह लंदन में टहलते हुए मशहूर और नामी कार कंपनी रोल्स रॉयस शोरूम पहुंचे। उस समय वह साधारण वेशभूषा में थे। जब उन्होंने सेल्समैन से कार के रेट पूछे तो अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें कंगाल भारत का सामान्य नागरिक समझकर बेइज्जत किया और उन्हें गेट आउट कह दिया।
महाराजा ने इस घटना के बाद खुद को बहुत अपमानित महसूस किया। बस उसी समय उन्होंने यह निर्णय ले लिया कि वह सात रोल्स रॉयल कार खरीदेंगे। जब वह भारत वापस लौटे तो उन्होंने कारें खरीद भी ली। जब यह करें जहाज से भारत पहुंची तो राजा जयसिंह ने इन कारों को अपनी नगरपालिका को सौंप दिया और उन्हें आदेश दिया कि इन कारों से कचरा ढोया जाए। इस प्रकार से राजा जयसिंह ने लंदन के शोरूम में हुए अपने अपमान का बदला लिया।
यह खबर पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई और रोल्स रॉयस की इज्जत तार-तार होने लगी। इसके बाद कंपनी ने तुरंत महाराजा के महल में टेलीग्राम के माध्यम से एक माफीनामा भेजा। इसके साथ ही कंपनी ने उन्हें 07 रोल्स रॉयल कार मुफ्त में देने का ऑफर भी दिया था। कंपनी के द्वारा ऐसा कहा गया था कि जो कुछ हुआ है वैसा दोबारा कभी नहीं होगा। इसके बाद जब राजा को लगा कि कंपनी को अपनी गलती का एहसास हो गया है तो उन्होंने रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बंद कर दिया।