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हिंदू राष्ट्र बनने का रास्ता साफ था पर नेहरू नहीं हुआ तैयार, आ गई थी इस्तीफा देने तक की नौबत

अक्सर हिंदू राष्ट्र को लेकर देश में एक अलग ही बहस देखने को मिलती रहती है। यह कोई नया मसला नहीं है। जब भारत आजाद हुआ था, तो उसके बाद से ही इसके सुर उठने लगे थे। आजादी के लिए हमने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। उस समय के दौरान धर्म के आधार पर ही भारत का बंटवारा किया गया था। पाकिस्तान इस्लामिक मुल्क बना था।

वहीं दूसरी तरफ भारत ने धर्मनिरपेक्षता का रास्ता अपनाया था। उस समय के दौरान देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बने थे। बेशक, वह कांग्रेसी सुप्रीमो थे, परंतु उन्हें भी कई मसलों पर असहमति का सामना करना पड़ा था। हिंदू राष्ट्र का कुछ ऐसा ही एक मसला था।

कांग्रेस के अंदर ही ऐसे तमाम नेता रहे थे, जो यह चाहते थे कि हिंदू राष्ट्र बने। लेकिन इसके विपरीत पाकिस्तान की राह पर भारत चले, यह जवाहरलाल नेहरू नहीं चाहते थे। पाकिस्तान और हिंदू शरणार्थियों पर उनकी पॉलिसी से कांग्रेस के हिंदूवादी नेता नाराज थे।

इन नेताओं के विरोध का नेहरू को ऐसा सामना करना पड़ रहा था कि इस्तीफा देने तक की नौबत आ गई थी। उन्होंने इस्तीफा देने तक का संकेत दे दिया था। तब उन्होंने जब तक उनके हाथों में कमान है भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बन सकता, यह साफ कर दिया था।

आपको बता दें कि सोशलिस्ट डेमोक्रेसी के प्रबल पैरोकार नेहरू थे। जब देश में हिंदू राष्ट्र के स्वर उठ रहे थे, तो उन्होंने कहा था “धार्मिक राज्‍य का विचार ही अपने में घिसा-पिटा है। यह मूर्खतापूर्ण भी है। नए जमाने में लोगों का अपना धर्म हो सकता है, लेकिन धार्मिक राज्‍य नहीं।”

मुस्लिम लीग की चोट को नेहरू नहीं भूले थे

नेहरू ने तब माना था कि मुस्लिम लीग ने भारत को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपाई करना काफी मुश्किल है। उन्होंने कहा था कि अगर मुस्लिम लीग नहीं होती, तो भारत को कहीं पहले आजादी मिल जाती। लीग के नेतृत्व में बड़ी तादाद में मुस्लिमों ने वतन के साथ गद्दारी की। वहीं जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया, ऐसे गैर मुस्लिम भी थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई कुंद की। उनके लिए क्या सजा दी जाएगी।

जब देश में हिंदू राष्ट्र के समर्थन में सुर उठ रहे थे तो इसी बीच नेहरू ने यह कहा था कि सोशलिस्ट डेमोक्रेसी के लिए कांग्रेस ने हमेशा काम किया है। उन्होंने कहा था कि इसमें सभी को बराबर का अवसर दिया गया है। वह किसी एक वर्ग के प्रभुत्व का विरोध करेगी। जिस खुशहाल और समृद्ध भारत की वह कल्पना करते हैं, उसमें सामाजिक सौहार्द जरूरी है। उन्होंने कहा था कि अगर उन आदर्शों पर नहीं चला गया तो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बजाय उनके सामने और कोई मार्ग नहीं बच जाएगा।

नेहरू पर बन गया था जबरदस्त दबाव

उस समय के दौरान नेहरू पर हिंदुत्व के मसले पर जबरदस्त दबाव बन गया था। जब हिंदू विचारक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था, यह वही वक्त था। वह देश के पहले उद्योग मंत्री थे। इसके बाद वह अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक बने थे। उन्होंने इस्तीफा नाराज हो कर दिया था। ईस्ट पाकिस्तान में छूट गए हिंदुओं को सुरक्षा को लेकर उनकी ज्यादा नाराजगी थी। खासतौर पर नेहरू-लियाकत दिल्ली समझौते को लेकर उनका विरोध था।

आपको बता दें कि नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने इस पर हस्ताक्षर 8 अप्रैल 1950 को किया था। यह ईस्ट पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल के बीच लोगों के पलायन को लेकर था। तब अपनी अपनी तरफ से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की रक्षा की बात दोनों सरकारों के द्वारा कही गई थी। आपको बता दें कि मुखर्जी के साथ नियोजी ने उसी दिन इस्तीफा दिया था जिस दिन खान को दिल्ली आना था। दोनों की ओर से यह दलील रखी गई थी कि माइनॉरिटी राइट्स को लेकर पाकिस्तान के भरोसे को नहीं माना जा सकता है। वह एक इस्लामी मुल्क बन चुका है।

नेहरू ने माइग्रेंट के मुद्दे पर कमजोर रुख अख्तियार किया है, ऐसा उन्हें लगता था। वह हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर सैन्य समाधान की हद तक चले गए थे। यह ईस्ट पाकिस्तान में हिंदू राष्ट्र बन सकता है, वह ऐसा मान रहे थे। वहीं पाकिस्तान पर भरोसा करने के बजाय पूरी आबादी को अदला-बदली होनी चाहिए, ऐसा मुखर्जी का मानना था। ईस्ट पाकिस्तान में हिंदू पूरी तरह से सुरक्षा खो चुके हैं, उन्हें इसी का डर था।

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