धार्मिक

देवी के इस मंदिर में पूजा के लिए आता है भालूओं का परिवार और आरती के बाद वापस चला जाता है जंगल

नवरात्रि (Navratri) का पावन पर्व चल रहा है और इस वक्त पूरा माहौल भक्तिमय हो चुका है। देश के हर देवी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लग रही हैं जो पूरी श्रद्धा से मां की आराधना में लगे हुए हैं। लेकिन क्या आपको पता हैं कि मां का एक ऐसा मंदिर भी है जहां इंसानों के साथ भालूओं का परिवार भी माता के दर्शन करने आता है। जी हां, यहां हम आपको मां के इसी अनोखे मंदिर (Bear temple in Chhattisgarh) के बारे में बता रहे हैं।

150 साल पुराना चंडी देवी का ये मंदिर है बेहद खास

दरअसल, ये मंदिर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh Chandi Devi temple) के महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव  में स्थित हैं जहां मां दुर्गा की पूजा के लिए भालूओं का पूरा झुंड आता है। बता दें कि तकरीबन 150 साल पुराने में चंडी देवी की पूजा की जाती है।

मंदिर की प्राचीनता और सालों से चली आ रही मान्यताओं के चलते यहां नवरात्र में देवी दर्शन के लिए दूर-दराज इलाकों से भारी संख्या में भक्त आते हैं। लेकिन वहीं इस मंदिर की विशेषता ये भी है कि यहां सिर्फ मानव ही नहीं जानवर भी देवी के भक्त हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर में देवी के दर्शन के लिए जंगलों से भालुओं का पूरा झुंड आता है और बिना किसी नुकसान पहुंचाए दर्शन के बाद वो वापस जंगल में चला जाता है।

देवी परिक्रमा और आरती के बाद प्रसाद भी लेते हैं भालू

जी हां, यहां के स्थानीय लोगों की मानें तो इस मंदिर (Chhattisgarh Chandi Devi temple) में आने वाले भालू आमतौर पर आरती के वक्त ही आते हैं और वो आने के साथ ही देवी की मूर्ति की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद ये भालू माता की प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। वैसे कई बार तो खुद मंदिर के पुजारी ही अपने हाथों से इन भालूओं को प्रसाद खिलाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि मंदिर में आने के बाद भालूओं का व्यवहार बेहद जाता है, मानों उन्हें किसी तरह की ट्रेनिंग दी गई हो। ये भालू इंसानों की तरह की माता की पूजा-अर्चना करते हैं और फिर प्रसाद लेकर चुपचाप जंगल में लौट जाते हैं।

गांव के लोग इन भालूओं को जामवंत का वंशज मानते हैं

वहीं घूंचापाली गांव जहां ये मंदिर स्थित है, वहां के लोगों का मानना है कि मंदिर (Bear temple in Chhattisgarh) में आने वाले भालू जामवंत के वंशज हैं। चूंकि जामवंत भी देवी के भक्त रहें हैं, ऐसे में अब उनके परिवार के भालू भी यहां देवी दर्शन के लिए आते हैं। वहीं इसके अलावा ये देवी मंदिर कभी तंत्र साधना के लिए जाना जाता था। दरअसल, आजादी से पहले यहां तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक रहा करते थे। पर आजादी के कुछ सालों बाद 1950 से 1951 के बीच इस मंदिर को आम जनता के लिए खोल दिया गया। जिसके बाद से गांव समेत पूरे क्षेत्र के लोग यहां देवी की आराधना करते हैं।

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