खुद को जिंदा साबित करने के लिए सालों से लड़ता रहा बुजुर्ग, गवाही देने आया उसी दिन तोड़ा दम

हरियाणा के रोहतक में कुछ दिन पहले एक मामला काफी चर्चा में रहा था जब एक 102 साल के बुजुर्ग को मृत दिखाकर उनकी पेंशन बंद कर दी गई थी। इसके बाद बुजुर्ग कई दिनों तक विभाग के चक्कर काटते रहे लेकिन कोई हल नहीं निकला, किसी ने उनकी एक नहीं सुनी। इसके बाद 102 साल के बुजुर्ग दुलीचंद ने खुद की बारात निकलवाई। इस बारात में उन्होंने बड़े-बड़े पोस्टर लगवाए थे जिसमें लिखा हुआ था कि ‘थारा फूफा जिंदा है..।’ बता दे इससे जुड़े वीडियो भी काफी वायरल हुए थे और यह मामला काफी दिलचस्पी भी रहा था। इस पर कई लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की थी।
इसी बीच एक और मामला सामने आया है लेकिन यह थोड़ा सा अलग है। इसमें करीब 6 साल पहले ही एक बुजुर्ग को कागजों में मार दिया गया जबकि वह जिंदा थे। कई दिनों से खुद को जिंदा साबित करने वह भी विभागों के चक्कर काट रहे थे, लेकिन जैसे ही जिंदा होने की गवाही देने आए तो उनकी मौत हो गई। आइए जानते हैं इस पूरे मामले के बारे में…
खुद को जिंदा साबित करने लिए लड़ता रहा बुजुर्ग
दरअसल, यह मामला उत्तरप्रदेश के धनघटा तहसील क्षेत्र के कोड़वा गांव का है जहां पर 90 वर्षीय फेरई पुत्र बालकिशुन की साल 2016 में मौत हो गई थी। तहसील कर्मियों ने फेरई की जगह उनके छोटे भाई खेलई का नाम कागजों में लिख दिया। यानी कि खेलई जिंदा होते हुए भी कागज में मर चुके थे। वही खेलई की संपत्ति फेरई की पत्नी और उनकी तीनों बेटों के नाम से कर दी गई।
जब खेलई को यह बात मालूम हुई तो वह लगातार विभाग के चक्कर काटते रहे। इतना ही नहीं बल्कि अधिकारियों के सामने प्रस्तुत होकर उन्होंने अपनी बात भी रखी, लेकिन कोई उनकी बात पर यकीन नहीं कर रहा था। खेलई साल 2016 से उनके बड़े भाई फेरई की मृत्यु के बाद वह लगातार खुद को जिंदा बताने में जुटे हुए थे।
बयान से पहले ही मौत
उन्होंने एसडीएम और तहसीलदार के पास एक प्रार्थना पत्र दिया और खुद को जिंदा होने का सबूत देते रहे। वहीं अधिकारियों के बीच इस मामले को लेकर हलचल पैदा हो गई। इसके बाद गांव में चकबंदी की प्रक्रिया शुरू हुई और बीते बुधवार को खेलई तहसील में बयान देने के लिए बुलाया गया, लेकिन उनकी जगह उनके बेटे हीरालाल पहुंचे। जिन्होंने बताया कि उनके पिता की तबीयत खराब हो गई और न्यायालय के पास ही करीब 11:00 बजे वह इस दुनिया को अलविदा कह गए।
बुजुर्ग के बेटे हीरालाल ने कहा कि, “उनकी मां पहले ही निधन हो गए था। वह पिता जी को लेकर मंगलवार को भी यहां पर बयान दर्ज कराने के लिए आए थे। पिता अपनी संपत्ति को पाने के लिए छह साल से तहसील का चक्कर काटते रहे लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला। सदमे के चलते उनकी मृत्यु हो गयी।”
इस मामले में एक अधिकारी ने बयान दिया कि, “खेलई को बुधवार को बयान देने के लिए बुलाया गया था। बयान लेने के बाद उनकी संपत्ति को उनके नाम से करने की तैयारी की गयी थी, लेकिन उनका निधन हो गया। मंगलवार को भी वह आए थे, लेकिन बयान दर्ज नहीं हो पाया था।”