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कभी करते थे वकालत, फिर उगाने लगे खीरा–ककड़ी, अब हर साल कमाते हैं करोड़ों, जाने कैसे

आजकल के युवा खेती-बाड़ी छोड़ शहर जाकर नौकरी करने का सपना देखते हैं। इस चक्कर में कई लोग अपने खेत की जमीन बेच देते हैं। लेकिन आपको खेती को भी कम नहीं समझना चाहिए। इससे आप लाखों नहीं बल्कि करोड़ों तक की कमाई कर सकते हैं। अब जोधपुर में कभी वकालत करने वाले रविन्द्र सिंह चूंडावत को ही देख लीजिए। वह अपनी अच्छी खासी वकालत छोड़कर उदयपुर आ गए और खीरा ककड़ी की खेती करते लगे।

वकालत छोड़ शुरू की खेती, कमाता है करोड़ों

रविन्द्र ने करीब चार साल पहले अपनी दो से ढाई बीघा जमीन पर एक पॉली हाउस का निर्माण कर खीरा-ककड़ी की खेती शुरू की थी। पहले साल ही उनकी 40 लाख की कमाई होगी। फिर दो साल बाद उन्होंने एक और पॉली हाउस बनवा लिया। ऐसे में उनके पास पांच बीघा जमीन पर दो पॉली हाउस हो गए। इससे इनकी इस साल की कमाई एक करोड़ रूपए का आंकड़ा भी पार कर गई।

अब रविन्द्र बाकी किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारे किसान भाई दो-ढाई बीघा जमीन से भी सालाना लाखों की कमाई कर सकते हैं। अपनी जर्नी को लेकर रविंद्र बताते हैं कि जोधपुर में वकालत करने के दौरान उनका कुछ अलग करने का मन किया। इस बीच उन्हें पता चला कि उदयपुर में खीरा ककड़ी के दाम सबसे अधिक मिलते हैं। बस फिर क्या था उन्होंने इसी की खेती करने का मन बना लिया। इसके लिए उन्होंने पॉली हाउस तकनीक का इस्तेमाल किया।

इस तकनीक से लेते हैं अधिकतम लाभ

रविन्द्र बताते हैं कि पॉली हाउस दो से ढाई बीघा का होता है। इसमें आप खीरा-ककड़ी के दस से बारह हजार पौधे लगा सकते हैं। बीज लगने से पकने तक में चार महीने का समय लगता है। इस तरह आप साल में तीन फसलें ले सकते हैं। अब दो से ढाई बीघा के एक पॉली हाउस से 4 माह के अंदर 50 से 60 टन माल निकलता है। खीरा-ककड़ी 20 से 40 रुपए प्रति किलो थोक के भाव में बेची जाती है। इस तरह एक साल में एक पॉली हाउस से आप लगभग 50 लाख की कमाई कर सकते हैं।

रविन्द्र खीरा-ककड़ी की खेती में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करते हैं। इससे पानी कम लगता है। वह पहले कुएं से बड़ी हौदी में पानी भरते हैं। फिर बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से पाइप के माध्यम से फसलों को पानी देते हैं। यदि पानी की किल्लत हो या मोटर-मशीन खराब हो जाए तो इस हौदी से चार महीने तक पानी की सिंचाई की जा सकती है। फिर पॉली हाउस पानी की आवश्यकता भी कमी होती है। रविंद्र बारिश के पानी को भी इस हौदी में सहेज कर रखते हैं जो 4 महीने तक चल जाता है।

सरकार भी करती है मदद

दो से ढाई बीघा पॉली हाउस को बनाने में 35 लाख रुपए की लागत आती है। हालांकि सरकार लघु सीमांत किसान को 70 फीसदी राशि देती है। रविन्द्र इस खेती का भरपूर लाभ भी के रहे हैं। कुछ सालों की खेती में ही उन्होंने उदयपुर में आलीशान फ्लैट और दो लग्जरी कारें ले ली हैं।

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