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रोजाना ड्यूटी से पहले गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाता है ये जवान, लोग कर रहे हैं जमकर तारीफ

कोरोना वायरस की महामारी से लोगों का बुरा हाल हो चुका है। कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन लगने से लोगों का जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो चुका है। संकट की इस घड़ी में पुलिस अपनी ड्यूटी बेहतर तरीके से निभा रही है। पुलिस की ड्यूटी इतनी आसान नहीं है, 24 घंटे चौकन्ना रहना पड़ता है। पुलिसकर्मियों को हर स्थिति के लिए तैयार रहना पड़ता है। पुलिस वालों की छुट्टी कब होगी यह इनको खुद भी नहीं मालूम रहता है, परंतु इन सबके बावजूद भी पुलिसकर्मी जनता का भरोसा जीतने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। चुनौतियों के साथ-साथ समाज सेवा करने के लिए यह हमेशा तत्पर रहते हैं।

कोरोना वायरस की वजह से जिंदगी का हिसाब-किताब पूरी तरह से बिगड़ चुका है। पहले भी कमियां थीं, परंतु सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चल रहा था लेकिन अब काफी परिवर्तन आ चुका है। पहले स्कूल चलते थे तो बच्चे जैसे-तैसे पढ़ाई करते थे परंतु अब स्कूल कोरोना महामारी की वजह से बंद कर दिए गए हैं। मोबाइल और इंटरनेट के जरिए पढ़ाई कराई जा रही है। जिनके पास ना मोबाइल है, ना इंटरनेट है और ना ही बेहतर नेटवर्क है, उनका क्या होगा? आप लोगों ने ऐसी बहुत सी तस्वीरें देखीं या खबरें सुनी होंगी, जिनमें छात्र नेटवर्क के लिए पहाड़ी, टंकी और पेड़ों पर पढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जो गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच एक पुलिसकर्मी जिसका नाम Shanthappa Jademmnavar है ये गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ा रहा है। इसके इस काम की लोग खूब तारीफ कर रहे हैं।

30 बच्चों को पढ़ाते हैं अपनी क्लास में

हम आपको जिस मामले की जानकारी दे रहे हैं यह मामला बेंगलुरु का है। अन्नपूर्णेश्वरी नगर के थाने में तैनात सब-इंस्पेक्टर शांथप्‍पा प्रवासी मजदूरों के बच्चों को फ्री में पढ़ा रहे हैं। खबरों के अनुसार ऐसा बताया जा रहा है कि सब इंस्पेक्टर शांथप्‍पा की ड्यूटी 8:30 बजे पर शुरू होती है परंतु यह रोजाना सुबह 7:00 बजे से 8:00 बजे की क्लास लेते हैं। इनकी क्लास में लगभग 30 बच्चे वैदिक गणित, सामान्य ज्ञान और कुछ जिंदगी की बारीकियां सीखते हैं। यह पुलिसकर्मी क्लास खत्म होने के बाद बच्चों को होमवर्क भी देता है। जो बच्चा अच्छा कार्य करता है उसको इनाम के रूप में चॉकलेट या जमेट्री बॉक्स भी दी जाती है।

मोबाइल फोन और इंटरनेट की बच्चों के पास नहीं है सुविधा

शांथप्पा का ऐसा बताना है कि इन बच्चों के परिजन बहुत गरीब हैं, इनके पास ना तो स्मार्टफोन है, ना टीवी और ना ही कंप्यूटर है। इसका मतलब है कि इनके पास ऑनलाइन या डिस्टेंस लर्निंग का किसी भी प्रकार का साधन उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकार की विद्यागामा परियोजना जो शिक्षकों को छात्रों के घर पर भेजने के लिए थी, वह भी यहां पर विफल रही। इन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए मैंने यहां पर पढ़ाने का निर्णय लिया है।

बता दें कि सब-इंस्पेक्टर शांथप्पा भी एक प्रवासी मजदूर थे। पढ़ाई-लिखाई करने के बाद वह पुलिस में भर्ती हो गए। उसके बाद इस क्लास की शुरुआत करने के लिए उन्होंने अनुमति ली थी।

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