अजब ग़जब

6 हफ्ते में जन्मी बच्ची, वजन 400 ग्राम, बचाने के लिए डॉक्टर्स ने बनाया कृत्रिम गर्भाशय, फिर..

एक सामान्य बच्चे का जन्म मां के गर्भ में 37-40 सप्ताह रहने के बाद होता है। तब उसका वजन 2,500 ग्राम के आसपास होता है। लेकिन क्या होगा जब कोई बच्चा सिर्फ 24 सप्ताह यानि 6 हफ्ते में ही पैदा हो जाए। और उसका वजन सिर्फ 400 ग्राम हो। यानि दूध के एक छोटे पाउच से भी कम। यकीनन ऐसे बच्चे के जिंदा बचने के चांस बहुत कम होते हैं। लेकिन पुणे के डॉक्टरों ने इस तरह की एक बच्ची को बचाकर नया रिकॉर्ड कायम कर दिया।

6 हफ्ते में हुआ बच्ची का जन्म, वजन 400 ग्राम

दरअसल पुणे के पिंपरी चिंचवड के वाकड में बीते साल 21 मई को एक बच्ची महज 6 महीने में ही पैदा हो गई थी। उसका वजन 400 ग्राम था। ऐसे बच्चों के बचने की दर सिर्फ 0.5% होती है। लेकिन डॉक्टरों ने हार नहीं मानी। उन्होंने इस बच्ची के लिए अस्पताल में कृत्रिम गर्भाशय बनाया। इतने छोटे बच्चे सिर्फ मां के गर्भाशय जैसे वातावरण में ही जीवित रह सकते हैं। इसलिए अस्पताल में बच्ची को ऐसे ही कृतिम वातावरण में रखा गया।

डॉक्टरों ने 23 अगस्त को बच्ची को छुट्टी दे दी थी। वर्तमान में यह बच्ची 4.5 किलो की हो गई है। इसका नाम शिवन्या रखा गया है। बच्ची के पिता ने कहा कि वह सामान्य बच्चों की तरह सेहतमंद है। खाना भी ठीक से खा रही है। बता दें कि शिवन्या भारत में जन्मी सबसे कम उम्र, सबसे हल्की और छोटी बच्ची है। यह पहली बार है जब भारत में इतने छोटे नवजात शिशु को नया जीवनदान दिया गया।

कृत्रिम गर्भाशय बनाकर डॉक्टरों ने बचाई जान

डॉक्टर्स बताते हैं कि यदि हम गर्भावस्था की अवधि और जन्म के वजन को जोड़ें तो शिवन्या सबसे छोटी बच्ची है। इसके पहले इंडिया में इतने अपरिपक्व शिशु के जिंदा रहने का कोई मामला नहीं देखा गया है। पुणे नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ सचिन शाह बताते हैं कि बच्ची का असमय पैदा होना गर्भवती महिला की जन्मजात असामान्यता का नतीजा है। यह कंडीशन डबल यूटेरस (बाइकोर्नुएट) कहलाती है। इसमें एक महिला के गर्भ में दो अलग-अलग पाउच होते हैं। इनमें एक पाउच दूसरे से छोटा होता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे (माइक्रो प्रीमाइस) का जन्म 750 ग्राम से कम होता है। वह बहुत नाजुक होते हैं। इनकी देखभाल के लिए मां के गर्भ जैसे वातावरण चाहिए होता है। साथ ही कई सावधानियाँ भी बरतनी पड़ती है। अब यह बच्ची तो और भी कम वजन 400 ग्राम की थी। ऐसे में डॉक्टरों के लिए इसकी जान बचाना बड़ा चुनौती भरा काम था।

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