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असम में मदरसों को किया गया बंद, हेमंत बिस्वा बोले – धार्मिक शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी नहीं

हाल ही में असम सरकार ने धर्मनिरपेक्ष भारत की मिसाल कायम करते हुए राज्य की सभी धार्मिक शास्त्र पढ़ाने वाली संस्थाओं को बंद करने का फैसला लिया है। इसके अंतर्गत असम में सभी सरकारी मदरसे और संस्कृत स्कूल बंद कर दिए जाएंगे। वित्त और शिक्षा मंत्री हेमंता बिस्वा ने इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा है कि, सभी राज्य सरकार द्वारा संचालित मदरसों और संस्कृत स्कूलों को सरकारी स्कूल में बदल दिया जाएगा और कुछ मामलों में टीचर्स को सरकारी स्कूल में शिफ्ट करके मदरसा बंद किया जाएगा।

मंत्री हेमंता बिस्वा का कहना है कि उन्होंने मदरसों और संस्कृत स्कूलों को बंद कर दिया है क्योंकि धार्मिक शिक्षा देना सरकार का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि छात्रों के भविष्य का ध्यान रखा जाएगा। इन मदरसों से अतिरिक्त धार्मिक विषयों के साथ-साथ अरबी को हटाकर सामान्य स्कूलों में बदल दिया जाएगा। उनके मुताबिक सभी राज्य शासित मदरसा और संस्कृत स्कूलों को बंद कर देना एक धर्मनिरपेक्ष फैसला है। इसमें किसी भी धर्म के लोगों को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

148 शिक्षकों को सरकारी स्कूल में भेजा जाएगा

शिक्षा मंत्री ने बताया है कि मदरसे में काम कर रहे करीबन 148 शिक्षकों का सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में ट्रांसफर करने की संभावना है। बता दें कि मदरसा एक ऐसा शिक्षण संस्थान होता है जहां कुरान और इस्लामिक कानूनों की पढ़ाई कराई जाती है। इसके साथ-साथ मदरसों में व्याकरण, गणित और इसी जैसे सब्जेक्ट भी पढ़ाए जाते हैं। सरकार के मुताबिक बच्चों को सरकार टेक्निकल शिक्षा देने का प्रयास कर रही है।

इसलिए स्कूलों में धर्मों के पाठ पढ़ाना बंद कर दिए जाएंगे। बता दे कि असम में करीब एक हजार मदरसे हैं। जिसमें सरकार का 1 साल में करीब 260 करोड़ रुपये का खर्च आता है।

कांग्रेस कर सकती है विरोध प्रदर्शन

वित्त और शिक्षा मंत्री हेमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि कांग्रेस विरोध प्रदर्शन करेगी क्योंकि यह उनके उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है। कांग्रेस ने धार्मिक पढ़ाई में सरकारी धन खर्च किया है। उन्होंने आगे बताया कि संस्कृत स्कूल भी बंद कर दिए गए हैं। यह केवल मदरसे की बात नहीं है। उनके मुताबिक सरकारी पैसों पर सिर्फ कुरान को नहीं पढ़ाया जा सकता है, अगर ऐसा होता है तो बाइबिल और गीता को भी पढ़ाना चाहिए। बता दें कि पिछले देना लोगों ने स्कूलों में गीता और बाइबिल पढ़ाने की मांग की थी। कुछ स्कूलों का यह भी कहना था कि वह इसके लिए सरकार का कोई पैसा नहीं लेंगे।

हालांकि अब हम सरकार में धार्मिक शिक्षा न देने का फैसला लिया है। उनके मुताबिक अब सरकार अपना पैसा बच्चों की टेक्निकल शिक्षा में लगाकर देश की प्रगति में योगदान करेगी। हालांकि असम सरकार को इस फैसले के बाद कई विरोधी पार्टियों का सामना करना पड़ रहा है‌। लेकिन बीजेपी का कहना है कि किसी एक धर्म से वोट नहीं मांगती है। वह भारतीय नागरिकों से ही वोट मांगती है और उनके लिए ही काम कर रही हैं।

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