धार्मिक

अगर पांचाली द्रौपदी नहीं करती ये 5 गलतियां तो नहीं होता महाभारत

महाभारत की कथा में एक तरफ जहां एक से बढ़कर एक पुरूष जिसमें भीष्म पीतामह, गुरू द्रोण, युधिष्ठिर, दुर्योधन, कर्ण, भीम, अर्जुन, श्रीकृष्ण आदि हैं तो वहीं दूसरी तरफ महाभारत में महिलाओं के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता है। इस कथा में गांधारी, कुंती से लेकर द्रोपदी तक कई ऐसी महिलाएं हैं, जिनके बिना महाभारत की कहानी पूरी नहीं होती है। इनमें द्रौपदी का किरदार सबसे अहम माना जाता है। कहा जाता है कि द्रौपदी का पूरा जीवन संघर्ष से भरा रहा है, इसलिए उनके चरित्र और जीवन को पूरा पूरा जान पाना बहुत कठिन है।

मान्यता है कि द्रौपदी को सिर्फ कृष्ण ही समझ सकते थे, इसका एक कारण तो ये था कि दोनों मित्र थे। खैर, आज हम आपको द्रौपदी के उन पांच गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी वजह से पूरे भारत वर्ष का इतिहास ही बदल गया और ये गलतियां महाभारत युद्ध का कारण बनीं।

स्वयंवर से कर्ण का निष्काषन और अपमान

कहा जाता है कि द्रौपदी, कर्ण को चाहती थी और स्वयंवर में द्रौपदी ने कर्ण को  चुनने का मन भी बना लिया था। मगर जैसे ही पता चला हि कर्ण सूतपुत्र है, तो द्रौपदी ने अपना इरादा बदल लिया। लिहाजा कर्ण को स्वयंवर में भाग लेने नहीं दिया गया और उसे अपमानित किया गया। अगर द्रौपदी ऐसा नहीं करती तो शायद इतिहास का रूख कुछ और ही होता। हालांकि एक कहानी ये भी है कि राजा द्रुपद अपनी बेटी द्रौपदी का विवाह ऐसे शख्स से कराना चाहते थे, जो द्रोणाचार्य का वध कर सके और गुरू द्रोण का वध सिर्फ अर्जुन ही कर सकते थे।

पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार करना


द्रौपदी स्वयंवर में अकेले अर्जुन ने द्रौपदी को जीता था, मगर द्रौपदी पांचो पांडवों की पत्नी बनीं। अगर वो ये शर्त स्वीकार नहीं करती तो शायद इतिहास कुछ और ही होता। द्रौपदी ने कुंती और ऋषि व्यास के कहने पर ही पांचो पांडवों से विवाह करना स्वीकार किया था। लिहाजा अगर द्रौपदी पांचो पांडवों की पत्नी न होती तो उसे अपमान का सामना करना नहीं पड़ता और महाभारत का युद्ध न होता।

दुर्योधन का अपमान पड़ा महंगा

इंद्रप्रस्थ में जब युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ तो उस समय दुर्योधन भी वहां पहुंचा था और यहीं पर द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहा था। ये बात दुर्योधन के दिल में लग गई और उसने अपमान का बदला लेने की ठान ली। इसके बाद द्यूतक्रीड़ा में दुर्योधन ने शकुनी के साथ मिलकर पांडवो को फंसाया और इंद्रप्रस्थ समेत द्रौपदी को दांव पर लगाने को मजबूर कर दिया। जुए के इस खेल ने ही महाभारत की पूरी भूमिका लिख दी थी।

पांडवों को युद्ध के लिए प्रेरित करना

द्रौपदी वस्त्रहरण के बाद द्रौपदी ने पांडवों से कहा कि अगर दुर्योधन और उनके भाईयों से तुम बदला नहीं ले सकते हो तो तुम पांचो को धिक्कार है। द्रौपदी ने भीम से कहा कि जब तक तुम मेरे केश के लिए दुशासन के छाती का खून नहीं लाओगे, तब तक ये केश खुले रहेंगे। इसके बाद भीम ने कसम खाई कि मैं दुर्योधन की जांघ को गदा से तोड़ूंगा और दुशासन की छाती का रक्तपान करूंगा। वहीं कर्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय ये कहा था कि जो स्त्री पांच पतियों के साथ रह सकती है, उसका क्या सम्मान। ये बात द्रोपदी के दिल में लग गई और वो अर्जुन को इस बात के लिए  हमेशा उकसाती रही कि उसे कर्ण का वध करना है।

जयद्रथ की बुरी नजर

द्यूतक्रीड़ा इसी में अपना राज काज सब कुछ गंवाने के बाद पांडवों को 13 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला। इसी दौरान दुर्योधन के जीजा जयद्रथ की द्रौपदी पर बुरी नजर पड़ गई और उसने द्रौपदी का हरण करने की भी कोशिश की, मगर अर्जुन ने द्रौपदी को बचा लिया। पांडव तो वहीं जयद्रथ का वध कर देते, मगर द्रौपदी ने ऐसा करने से रोक दिया और ये उसकी बड़ी गलती साबित हुई। द्रौपदी ने वध करने बजाए उसका अपमान करने का निर्णय लिया और जयद्रथ का बाल मुंडवा दिया और पूरी जनता के सामने अपमान किया। इसके  बाद जयद्रथ अपमान की घूंट पी पीकर जीता रहा और महाभारत के युद्ध में उसने अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वध करके इसका बदला लिया।

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