धार्मिक

छठ के दौरान 4 दिनों तक की जाती है भगवान सूर्य की पूजा, पढ़ें-छठ व्रत से जुड़ी ये पौराणिक कथा

छठ पर्व की शुरुआत आज से हो गई है और धूमधाम से इस पर्व को मनाया जा रहा है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का ये सबसे प्रसिद्ध त्योहार है जो कि चार दिनों तक चलता है और आज इस पर्व का पहला दिन हैं। पहले दिन नहाय-खाय होता है। दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन छठ पूजा होती है और चौथे दिन सुबह सूर्य को अर्घ्य दी जाता है। इस साल ये पर्व 18 नवंबर से शुरू हुआ है। 18 नवंबर को नहाय-खाय है, 19 को खरना, 20 को छठ पूजा और 21 की सुबह सूर्य को अर्घ्य दी जाएगी।

क्यों मनाया जाता है ये पर्व

छठ पूजा सूर्य और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने वाला पर्व है। इस पर्व के दौरान सूर्य देव का पूजन किया जाता है। पुराणों में पंचदेवों का जिक्र किया गया है। जो कि ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य है। पुराणों के अनुसार शुभ कार्य की शुरुआत सूर्य देव की पूजा से करनी चाहिए। मान्यता है कि पुराने समय में सीता, कुंती और द्रोपदी ने भी ये व्रत किया था।

ग्रंथों के अनुसार छठ माता सूर्य देव की बहन हैं। जो लोग छठ का व्रत रखते हैं व छठ माता के भाई यानी सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी हर कामना को छठ मां पूरा कर देती है। ये भी मान्यता है कि जो महिलाएं ये व्रत रखती हैं, उनकी संतान व पति की आयु लंबी होती है।

इस तरह से मनाया जाता है ये पर्व

छठ पर्व चार दिनों का होता है और इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है, जिसे नहाय-खाय कहते हैं। इसके बाद घर में शुद्ध भोजन बनाया जाता है। घर की महिलाएं इस पर्व के दौरान व्रत रखती हैं, जो कि 36 घंटों का होता है। ये व्रत निर्जला होता है और व्रत के दौरान बिना खाए और पीए रहना होता है।

इस व्रत की शुरुआत पंचमी तिथि पर खरना करने के बाद होती है। खरना के दौरान तन और मन का शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद व्रत रखा जाता है। छठ तिथि की सुबह छठ माता का भोग बनाया जाता है और शाम को डूबते सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद सप्तमी की सुबह सूर्य को अर्घ्य दी जाती है और उसके बाद ये व्रत खत्म किया जाता हैं।

छठ व्रत की कथा

छठ व्रत रखने से एक कथा भी जुड़ी हुई है जो कि सतयुग की है। कथा के अनुसार शर्याति नामक एक राजा हुआ करता था। इस राजा की कई पत्नियां थीं। लेकिन संतान एक ही थी। राजा ने अपनी बेटी का नाम सुकन्या रखा था। एक दिन राजा अपनी बेटी सुकन्या के साथ जंगल में शिकार करने जाते हैं। जंगल में इन्हें च्यवन नाम के ऋषि तपस्या करते हुए मिलते हैं।

च्यवन ऋषि काफी लंबे समय से ये तपस्या कर रहे होते हैं, जिसके कारण उनके शरीर के आसपास दीमकों ने घर बना लिया होता है। वहीं जंगल में खेलते हुए सुकन्या दीमक की बांबी में सूखी घास के कुछ तिनके डालने लग जाती है। इस जगह पर ऋषि की आंख होती थीं और तिनके के कारण इनकी आंखें फूट जाती हैं। ऋषि को काफी दर्द होता है और उनकी तपस्या टूट जाती है।

राजा तुरंत ऋषि से माफी मांगते हैं और अपनी बेटी को ऋषि को सौंप देते हैं। इसके बाद सुकन्या ऋषि च्यवन की सेवा करने लग जाती है। वहीं ऋषि की आंखे उन्हें वापस मिल सके, इसके लिए सुकन्या पूरे विधि-विधान और सच्चे मन से छठ का व्रत करती हैं। व्रत के कारण च्यवन मुनि की आंखें ठीक हो जाती है। तभी से ये पर्व प्रसिद्ध हो गया और हर साल छठ पर्व मनाया जाने लगा।

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