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25 नवंबर को है तुलसी विवाह, जानें मुहूर्त एवं संपूर्ण पूजन विधि

नवंबर महीने की शुरूआत से ही त्योहारों का सिलसिला जारी है। इस महीने हिंदू धर्म के कई बड़े त्योहार मसलन, करवा चौथ, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा और छठपूजा मनाए गए। इसी कड़ी में अब हिंदुओं के एक और प्रमुख पर्व तुलसी विवाह की तैयारियां जोरों से की जा रही है। ऐसे में आज हम इस आर्टिकल में तुलसी विवाह से संबंधित सभी महत्वपूर्ण बातें आपको बताने वाले हैं।

तुलसी विवाह को देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु शयन मुद्रा से उठते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। खैर, तुलसी विवाह हिंदुओं का एक बड़ा पर्व है। इस दिन माता तुलसी का विवाह, भगवान शालिग्राम से किया जाता है।

गौरतलब हो कि जो लोग तुलसी विवाह का अनुष्ठान करते हैं, उन्हें एक कन्यादान के बराबर की पुण्य की प्राप्ति होती है। तो आइये जानते हैं, इस साल कब है तुलसी विवाह, क्या है शुभ मुहूर्त और क्या है इसका धार्मिक महत्व…

कब है तुलसी विवाह?

तुलसी विवाह

बता दें कि तुलसी विवाह प्रति वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 25 नवंबर को शुरू होगी और 26 नवंबर को समाप्त होगी। वैसे तो तुलसी विवाह एकादशी तिथि को होती है, मगर कुछ जगहों पर द्वादशी तिथि को भी किया जाता है। ऐसे में 25 और 26 नवंबर दोनों दिन तुलसी विवाह किया जाएगा।

कब है तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त?

इस साल एकदाशी तिथि 25 नवंबर की सुबह 2 बजकर  42 मिनट से शुरू होगी और 26 नवंबर की सुबह 5 बजकर 10 मिनट में समाप्त होगी। वहीं द्वादशी तिथि 26 नवंबर की सुबह 5 बजकर 10 मिनट से शुरू होकर 27 नवंबर सुबह 7 बजकर 46 मिनट तक रहेगी।

तुलसी विवाह की पूजन विधि

सर्वप्रथम घर में तुलसी के पौधे के चारों तरफ एक मंडप बना लें। पूजा शुरू करने से पहले भगवान गणेश और शालिग्राम की मूर्ति स्थापित करें, साथ ही पूजा की सभी तैयारियां कर लें। इसके बाद प्रथम पूज्य श्रीगणेश की विधिवत पूजा करें और उसके बाद भगवान शालिग्राम की पूजा करें। गणेश और शालिग्राम के पूजा के पश्चात विवाह का पूजन प्रारंभ करें।

तुलसी विवाह

भगवान शालिग्राम की मूर्ति के सिंहासन को हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं और तत्पश्चात आरती करें। आरती के बाद गाए जाने वाले मंगलगीत के साथ ही विवाह पूर्ण हो जाता है। माता तुलसी को एक लाल चुनरी और श्रृंगार की सामाग्री चढ़ाना न भूलें।

तुलसी विवाह की कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक राक्षस कुल में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम वृंदा था। उस कन्या का कुल भले ही राक्षस था, मगर उसका मन हमेशा भगवान विष्णु की आराधना में लीन रहता था। वृंदा जब बड़ी हुई तो उसके माता पिता ने जलंधर नाम के एक राक्षस से उसका विवाह करा दिया। जलंधर समुद्र मंथन से पैदा हुआ था।

वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी, ऐसे में उसका पति जालंधर बेहद शक्तिशाली हो गया था। जलंधर जब भी युद्ध करने जाता था, वृंदा उसके लिए हवन पूजन करने लग जाती थी। लिहाजा उसे कोई हरा नहीं पाता था। एक बार तो उसने देवताओं पर हमला बोल दिया। ऐसे में सभी देवी देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और जालंधर के आतंक को खत्म करने का विचार करने लगे।

भगवान विष्णु ने किया छल

जालंधर के आतंक को देखते हुए भगवान विष्णु ने उसे छल से परास्त करने का विचार किया और उन्होंने खुद अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा के पतिव्रता धर्म को नष्ट कर दिया। इसके बाद जलंधर की शक्ति कम होती चली गई और वह युद्ध में मारा गया।

जब वृंदा को अपने भगवान के इस छल का पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को शिला यानी पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। भगवान को पत्थर होता देख देवी देवताओं में हाहाकार मच गया। इसके बाद भगवान की पत्नी यानी माता लक्ष्मी ने प्रार्थना की तो वृंदा ने श्राप वापस ले लिया और खुद जलंधर के साथ सती होकर भस्म हो गई।

मान्यता है कि जब वृंदा सती हुईं तो उनके शरीर के भस्म से एक पौधा बना, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया। साथ ही खुद के एक अवतार को पत्थर में समाहित कर लिया और कहा कि आज से बिना तुलसी के मैं कोई भी चीज ग्रहण नहीं करूंगा और इस पत्थर को शालिग्राम के नाम से हमेशा तुलसी के साथ ही पूजा जाएगा।

तभी से ही कार्तिक माह के एकादशी तिथि को माता तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ किया जाता है। ये वर्षों से चली आ रही परंपरा है, जो आज भी हमारे बीच जिंदा है।

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