विशेष

चाणक्य नीति: ये 7 लोग कभी नहीं समझ सकते आपका दुख, आप भी जान लें इनके बारे में

आचार्य चाणक्य को एक लोकप्रिय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार के रूप में जाना जाता है. आचार्य चाणक्य पाटलीपुत्र के महान विद्वान थे. इतने बड़े साम्राज्य के मंत्री होने के बाद भी वह एक साधारण सी कुटिया में रहना पसंद करते थे. साथ ही वे बेहद ही सादा जीवन जीने में यकीन रखते थे.

चाणक्य ने अपने जीवन से मिले कुछ अनुभवों को एक किताब ‘चाणक्य नीति’ में जगह दी है. आचार्य चाणक्य की नीति ग्रंथ में मनुष्य के लिए कई नीतियों का उल्लेख है. यदि मनुष्य अपने जीवनकाल में इन नीतियों का अनुसरण करता है तो उसका जीवन सुखमय हो जाता है.

ये लोग कभी नहीं समझ सकते दुख

चाणक्य नीति में कुछ ऐसे लोगों का भी जिक्र किया गया है, जो दूसरों का दुख कभी नहीं समझ सकते और वे लोग हैं- राजा, यमराज, अग्नि, चोर, छोटा बच्चा, भिखारी और कर वसूल करने वाला. ऐसे में इन लोगों से अपना दुख समझने की उम्मीद रखना व्यर्थ है.

वे मनुष्य हैं पशु समान

चाणक्य का मानना है कि निम्न स्तर के प्राणियों में खाना, सोना, घबराना और गमन करना एक समान ही है और यदि वह किसी मायने में दूसरों से अलग है तो सिर्फ अपने विवेक, ज्ञान की बदौलत. इसलिए जो मनुष्य ज्ञान ग्रहण नहीं करना चाहते या फिर जिनमें ज्ञान की कमी है, वे पशु के समान हैं.

इन लोगों के लिए धरती ही स्वर्ग

चाणक्य के मुताबिक जिसकी पत्नी प्रेमभाव रखने वाली और सदाचारी हो, वह व्‍यक्ति इंद्र के राज्य में जाकर क्या सुख भोगेगा. इसके अलावा, जिसके पास संपत्ति की कमी नहीं, जिसके पास सदाचारी बेटा है और जिन्हें अपने पुत्रों से पौत्र नसीब हुए हैं, इन लोगों के लिए धरती ही स्वर्ग जैसी है.

वही संकटों को हरा सकता है

आचार्य चाणक्य की मानें तो जिसमें सभी जीवों के प्रति परोपकार की भावना होती है अर्थात जो सभी जीवों के प्रति दया की भावना रखता है, ऐसा मनुष्य सभी संकटों को हराने में सक्षम होता है और वह हर तरीके से संपन्न होता है.

भौरों का कुछ नहीं जाता

चाणक्‍य नीति के अनुसार एक मदमस्त हाथी कान हिलाकर अपने माथे से टपकने वाले रस को पीने वाले भौरों को जब उड़ा देता है तो उनका कुछ नहीं जाता. भौरे खुशी-खुशी कमल से भरे हुए तालाब की और चले जाते हैं. ऐसा करके हाथी खुद अपने माथे के श्रृंगार को कम कर लेता है.

सम्मान देने से मिलती है संतुष्टि

चाणक्‍य नीति के अनुसार हाथ की शोभा गहनों से नहीं बढ़ती बल्कि दान देने से बढ़ती है. निर्मलता चंदन का लेप लगाने से नहीं बल्कि जल से नहाने से आती है. ठीक उसी तरह एक व्यक्ति भोजन से नहीं बल्कि सम्मान देने से संतुष्ट होता है. खुद को सजाने से मुक्ति नहीं होती, बल्कि मुक्ति आध्यात्मिक ज्ञान को जगाने से होती है.

पढ़ें अपने बर्थडे पर फोन स्विच ऑफ कर लेते हैं धर्मेंद्र, इस दुख के कारण आज भी नहीं मनाते अपना जन्मदिन

Related Articles

Back to top button