अजब ग़जब

लाश को सूर्यास्त पर ही क्यों जलाया जाता है? जानिए इसका रहस्य!

इंसान की जिंदगी का सबसे बड़ा सच है “मृत्यु”. जो इंसान जन्म लेता है, उसकी मौत एक ना एक दिन होनी ही है. कुछ लोग छोटी उम्र में ही गुजर जाते हैं, जबकि कुछ लोग अपने बुढापे को जीने के बाद दम तोड़ देते हैं. हालांकि, साइंस ने अब काफी उन्नति कर ली है. मगर आज भी साइंस इस बात से अनजान है कि मरने के बाद इंसान कहा जाता है और क्या करता है. हर धर्म की मृत्यु को लेक्र अपनी अलग अलग रस्में एवं रीति रिवाज़ है. एक हिंदी कहावत के अनुसार “जीना झूठ है और मरना सत्य है”. ऐसे में हम मनुष्य साड़ी जिंदगी माया के भोग विलास में खोए रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि यह मोह माया हमारे किसी काम की नहीं है और एक दिन सब कुछ छोड़ कर हमने मर जाना है. यहाँ तक कि मरने के बाद हम अपना शरीर भी अपने साथ नही ले जा सकते. केवल हमारी आत्मा ही मरती है, इसलिए मरने के बाद शरीर को नष्ट कर दिया जाता है.

मरने को लेकर हर देश में अलग अलग परम्पराएं हैं. जहाँ हिन्दू और सिख धर्म में मृत व्यक्ति के शरीर को जला दिया जाता है, वही दूसरी और मुस्लिम और ईसाई धर्म में मृत व्यक्ति को कबर में डाल कर ज़मीन में दफना दिया जाता है.

मरने के बाद लाश के साथ क्या होता है?

हिंदू धर्म के शास्त्रों की मानें तो इंसान के जन्म से लेकर उसकी मृत्यु तक 16 संस्कार माने जाते हैं जिसमें से पहला संस्कार उसके जन्म का और 16वा यानी अंतिम संस्कार उसकी मौत के लिए माना जाता है जिसको लोग पूरे विधि-विधान से संपन्न करते हैं. इस संस्कार में लोग व्यक्ति की मौत के बाद कई प्रकार की रस्में निभाते हैं. मरने के बाद व्यक्ति को नहला कर नए कपड़े पहनाए जाते हैं और भी बहुत सी रस्में की जाती है. इसके बाद लाश को श्मशान घाट ले जाकर उसको जला दिया जाता है. लाश को जलाने का काम मरे हुए इंसान का बेटा, पति या पिता ही कर सकता है.

आखिर क्यों सूर्यास्त से पहले जलाने का रिवाज है?

हिंदू धर्म के गरुण पुराण में लिखा है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसे सूर्यास्त के बाद जलाया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो मरने वाले इंसान की आत्मा को कभी शांति नहीं मिलती. भले ही वह अंतिम संस्कार कितनी भी विधि-विधान से क्यों ना किया गया हो, मृतक की आत्मा को कभी भी मुक्ति नहीं मिल पाती.

ऐसी मान्यता है कि सूर्यास्त से पहले अगर किसी व्यक्ति को जला दिया जाए तो वह परलोक में जाकर भी बहुत सारे कष्ट भोगता है और यदि उसका पुनर्जन्म हो जाए तो उसका कोई ना कोई अंग खराब होता है या फिर वह मानसिक रुप से कमजोर पैदा होता है. इसी कारण हिंदू धर्म में सूर्यास्त के बाद ही लाश को जलाना सही माना जाता है.

क्यों होता है मटके में छेद?

हिंदू धर्म में मटकी में छेड़ वाली रस्म काफी प्रचलित है. इसमें जब इंसान को जलाने के लिए लकड़ियों के ऊपर रखा जाता है तो जलाने वाले के हाथ में मटकी दी जाती है जिसमें छेद होता है. इस मटकी में पानी भरा रहता है जो धीरे-धीरे मटकी से बाहर निकलता रहता है. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मनुष्य का शरीर भी एक मटकी के समान ही है जिसमें जीवन का पानी भरा हुआ है जो धीरे-धीरे खत्म होता जाता है.

जब मटकी में से पानी खत्म हो जाता है तो उस मटकी को फोड़ दिया जाता है. इस मिट्टी के फोड़ते ही इंसान के शरीर को भी जला दिया जाता है. मटकी फोड़ने का एक कारण यह भी माना जाता है कि ऐसा करने से आत्मा को शरीर का मोह त्यागना पड़ता है.

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