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माँ ने बेच दिए अपने गहने, खुद 9 साल की उम्र में बेटे ने बेचे अख़बार, आज IFS अफसर है बालामुरुगन

हम हर दिन ऐसी ख़बरों के बारे में जानते हैं, कोई वीडियो देखते हैं या कोई लेख पढ़ते हैं जिसमें दुःख-तकलीफों से निकलते हुए एक व्यक्ति के ऊंचें मुकाम तक पहुंचने की कहानी होती है. ठीक ऐसी ही कहानी है चेन्नई के कीलकट्टलाई में जन्मे आईएफएस अफसर बालमुरुगन की.

आईएफएस अफसर बालमुरुगन को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है. उनकी पारिवारिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं थी कि वे आसानी से इस मंजिल तक पहुंच सकते थे. हालांकि चेन्नई के इस जांबाज में कुछ कर गुजरने का हौंसला था और इसी के चलते तमाम मुश्किलों और परेशानियों के बीच कोयले की खदान से आखिरकार एक हीरा निकल ही आया.

घर में आठ भाई-बहन, पिता की शराब पीने बुरी आदत, घर का गुजारा करने के लिए अखबार बेचने के काम के बीच बालमुरुगन ने सफलता के शिखर को छूआ. आइए आज आईएफएस अफसर बालमुरुगन के संघर्ष और उनकी कहानी के बारे में जानते हैं…

हाल ही में बालमुरुगन ने बताया है कि उन्हें पढ़ाई पूरी करने के लिए अख़बार भी बेचना पड़ता था. 9 साल की उम्र में ही वे अख़बार बेचने लगे थे और उन्हें अख़बार पढ़ने की आदत भी पड़ गई. वे आगे जाकर एक नामी कंपनी में नौकरी करने लगे थे. लेकिन भारतीय वन सेवा (IFS) में दाखिल होने के चलते उन्होंने अपनी नौकरी का भी त्याग कर दिया था. वे फिलहाल आज राजस्थान के डूंगरपुर वन प्रभाग में एक परिवीक्षाधीन अधिकारी के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.

बालमुरुगन अपनी ज़िंदगी के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि साल 1994 में उनके पिता घर छोड़कर चले गए थे. उनके मुताबिक, घर में हम कुल मिलाकर आठ भाई-बहन थे. पिता के चले जाने के बाद सभी बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी मां पर आ गई थी. ऐसे में मैंने अपनी मां का हाथ बटाया और मैं अख़बार बेचने लगा. मुरुगन कहते हैं कि जब मैंने अख़बार विक्रेता से तमिल न्यूजपेपर पढ़ने के लिए कहा तो इस पर उसने मुझे कहा कि महीने के 90 रु में सदस्य्ता ले लो. लेकिन मैं आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. इस स्थिति में उसने मुझे 300 रुपये की नौकरी दे दी.

आगे बात करते हुए मुरुगन ने बताया कि मैं इस नौकरी की मदद से ट्यूशन की फीस जुटा लिया करता था. उन्होंने बताया कि जब हमारी आर्थिक हालात काफी खराब थी, तो मेरे मामा ने भी हमारा सहयोग किया था और मां ने भी अपने गहने बेच दिए. इससे मिली राशि से हमने एक छोटा सा प्लाट खरीद लिया. इस पर फूस की छत बनाई गई और परिवार इसी के नीचे रहने लगा. कहा जाता है कि हर सफ़ल आदमी के बीच एक महिला का हाथ होता है और मुरुगन के लिए यह महिला थी उनकी मां. जिन्होंने अपने बच्चों के लिए आगे जाकर इस खरीदी हुई जमीन का भी कुछ हिस्सा बेच दिया.

मुरुगन बताते हैं कि अखबाआर पढ़ने की लत के चलते ही पढ़ाई की ओर उनकी रुचि बढ़ी और उन्हें कहीं न कहीं यूपीएससी की तैयारी में इसका फायदा मिला. बालमुरुगन की शिक्षा की बात की जाए तो मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी चेन्नई से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्यूनिकेशन ब्रांच से स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी.

स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के बाद बालमुरुगन अब बेहतर नौकरी की तलाश में थे और उनके ऊपर अब परिवार की जिम्मेदारी लेने का पूरा दारोमदार था. उन्हें एक बेहतर मौका मिला और कैंपस प्लेसमेंट के जरिए उन्होंने टीसीएस ज्वाइन कर लिया. यहां उन्हें लाखों रु का पैकेज ऑफर हुआ. अब उनके दुःख-तकलीफों वाले दिन दूर होने की तैयारी में थे.

मुरुगन कहते हैं कि नौकरी के दौरान ही एक आईएएस अफसर और प्रशासनिक कार्यों ने उन्हें उनकी ओर आकर्षित कर लिया था और वे अब इस नौकरी को छोड़ने का मन बना चुके थे. साथ ही उनके मन में इस तरह की नौकरी का ही सपना पलने लगा था. हालांकि यह निर्णय लेना उनके लिए बहुत कठिन था. क्योंकि तमाम मुश्किलों और परेशानियों के बीच वे इस नौकरी तक पहुंचे थे और उसे छोड़ना खतरे से खाली नहीं था. उनके मुताबिक़, एक तरफ इंजीनियरिंग का करियर था तो दूसरी तरफ यूपीएससी क्लीयर करने का सपना. ऐसे में मैंने अपने सपने को साकार करने का मन बनाया.

मुरुगन अब नौकरी छोड़ चुके थे और वे जुट गए थे अपने सपने को साकार करने में. लाखों रु की नौकरी छोड़ उन्होंने चेन्नई के शंकर IAS एकेडमी में दाखिला ले लिया. आगे जाकर उनका सपना पूरा हुआ. अपने संघर्ष से सीख लेते हुए वे कहते हैं कि जीवन के मूल्यों से मैंने यही सीखा है कि अगर कुछ पाने की चाहत है तो उसे पूरे मन से करो. भले ही आप भूखे सो जाएं लेकिन बिना पढ़े मत सोना. उनका यह भी कहना रहा कि हमें कुछ हासिल करने के लिए, अपने सपनों को जीने के लिए अपने कम्फर्ट जोन को त्याग देना पड़ता है. सफलता के लिए बलिदान आवश्यक होता है.

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