विशेष

भारतीय राजनीति की सबसे सफलतम बहू सोनिया गांधी को है इस चीज़ का मलाल, सालों से कर रही हैं इंतजार

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी आज अपना 74वां बर्थडे सेलिब्रेट कर रही हैं। सोनिया गांधी भारतीय राजनीति की सबसे कद्दावार नेताओं में से एक हैं, हालांकि आज उनकी पार्टी सबसे कमजोर नजर आती है। इसका कारण है कि उनका जनाधार लगातार सिमटता जा रहा है और संगठन भी पूरा बिखरा बिखरा नजर आता है।

बहरहाल, आज हम सोनिया गांधी के जन्मदिन के खास मौके पर इस आर्टिकल में आपको उनके पूरे सियासी करियर के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं, आखिर कैसा रहा है उनका राजनीतिक सफर…

20वीं सदी के अंतिम वर्षों से ही कांग्रेस का पतन शुरू हो गया था, मगर सोनिया गांधी ही थीं जिन्होंने कांग्रेस में दोबारा जान फूंकी और लगातार 10 सालों तक देश की सत्ता में कांग्रेस को काबिज रखा। हालांकि अब तो कांग्रेस की साख पर सवाल उठने लगे हैं, वर्तमान दौर कांग्रेस के लिए सबसे कठिन है।

जानिए कैसा रहा है सोनिया गांधी का सियासी सफर

सोनिया गांधी के हाथों में पिछले दो दशकों से कांग्रेस की बागडोर है। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में 19 वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कामकाज देखा। इसके बाद उनके बेटे राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला, मगर लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

राहुल के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी ही पिछले 1 सालों से अंतरिम अध्यक्ष के रूप में काम संभाल रही हैं। अपने पहले कार्यकाल में तो सोनिया ने कांग्रेस को जबरदस्त सफलता दिलाई थी, वहीं दूसरी पारी में वो नाइट वॉचमैन की भूमिका में नजर आ रही हैं।

बता दें कि सोनिया ने जब आज से 22 साल पहले कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था, तो उन दिनों पूरे देश में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी धूम मचा रही थी। वहीं थर्ड फ्रंट की सियासी राजनीति भी उफान पर थी।

पूरे देश के राजनीतिक समीकरणों में कांग्रेस का कहीं नामो निशान नहीं था, मगर सोनिया गांधी ने नेतृत्व संभाला और कांग्रेस को संजीवनी दी। इतना ही नहीं बल्कि सत्ता में पुनः कांग्रेस को काबिज कर दिया।

बता दें कि सोनिया गांधी ने साल 1998 से 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला। साल 2004 में सोनिया ने पार्टी के प्रचार का नेतृत्व किया और उनके करिश्माई प्रचार ने अटल बिहारी वाजपेयी के 6 साल की उपलब्धियों, शाइनिंग इंडिया और फील गुड का नारा धूमिल कर दिया।

कांग्रेस ने साल 2004 के लोकसभा चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की और पुनः सरकार बनाई। तब सोनिया ने खुद प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया और मनमोहन सिंह की ताजपोशी का फैसला किया। सोनिया गांधी के उस कदम को भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक माना जाता है।

कैसे शुरू हुआ राजनीतिक करियर

साल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई तो उनकी पत्नी सोनिया राजनीति में आने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थीं। इस बारे में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी लिखते हैं कि सोनिया राजनीति में धीरे धीरे सक्रिय हुईं।

सोनिया को पार्टी के कई नेता मनाने में लगे हुए थे, उन दिनों सोनिया को पूरी पार्टी ये समझाने में लगी थी कि उनके बिना  कांग्रेस खेमों में बंटती जाएगी और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी का विस्तार होता जाएगा।

सोनिया गांधी साल 1997 के कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार गईं, इसमें उन्होंने कोई पद नहीं लिया और एक कार्यकर्ता के तौर पर प्रचार में लग गईं, यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरूआत मानी जाती है।

इसके 1 साल बाद 1998 में सोनिया को सर्वसम्मति से पार्टी का अध्यक्ष पद दे दिया गया। हालांकि उन दिनों उन्हें राजनीतिक दांव पेंच के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था और ना ही वो अच्छे से हिंदी बोलती थीं। इसके बावजूद पार्टी में उनकी पकड़ जबरदस्त थी।

1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। माना जाता है कि वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार को कारगिल युद्ध और पोखरण परमाणु विस्फोट का राजनीतिक लाभ मिला।

2004 लोकसभा चुनाव में दिखा सोनिया का जादू

साल 2004 के लोकसभा चुनावों के लिए सोनिया गांधी ने बीजेपी के खिलाफ एक प्रभावी गठबंधन तैयार किया और बीजेपी को करारी मात दी। उन दिनों सोनिया की राजनीतिक सूझबूझ ने सभी को प्रभावित कर दिया था।

उन दिनों सोनिया गांधी कांग्रेस से मिलती जुलती विचारधारा वाले ऐसे तमाम दलों को साथ लाने में सफल हुईं, जिनकी खुद की राजनीति कांग्रेस के विरोध में खड़ी हुई थीं। हालांकि उन दिनों सोनिया का जादू ही था कि कांग्रेस सत्ता में फिर से काबिज हुई।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि साल 2004 में मनमोहन सिंह पीएम बने और सोनिया गांधी ने यूपीए प्रमुख के तौर पर सरकार चलाने के राजनीतिक पक्ष को देखा। उन दिनों सोनिया गांधी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थीं। लिहाजा उन्होंने सरकार के नीतिगत फैसले को भी प्रभावित किया।

मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, वन अधिकार, भोजन का अधिकार और उचित मुआवजे संबंधित कानून बनाए। इन सभी फैसलों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सूझबूझ की झलक देखने को मिली।

सोनिया गांधी ने जब कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला तो न सिर्फ केंद्र में बल्कि राज्यों में भी कांग्रेस का जनाधार खत्म हो चुका था। यूपी, बिहार से कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया था।

इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों से भी कांग्रेस सत्ता से बाहर थी। इन सभी राज्यों के मामले में भी सोनिया ने नेतृत्व किया और सांगठनिक स्तर पर काम करके कांग्रेस को सत्ता में वापस लौटाया।

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि सोनिया गांधी ने बतौर कांग्रेस अध्यक्ष कांग्रेस को न सिर्फ सत्ता के करीब लाया, बल्कि पार्टी को सांगठनिक मजबूती देने का भी काम किया।

सोनिया ने राज्यों में मजबूत नेतृत्व दिया। दिल्ली में शीला दीक्षित, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजस्थान में अशोक गहलोत और आंध्रप्रदेश में राजशेखर रेड्डी इसके बड़े उदाहरण हैं।

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में हुए असफल

महाराष्ट्र में कांग्रेस 15 सालों तक सत्ता में रही, मगर नेतृत्व जब जब नेतृत्व संकट आया तो सोनिया ने हर बार नए चेहरे को मौका दिया और संकट को टाला। इसमें विलास राव देशमुख, अशोक चह्वाण और पृथ्वीराज चह्वाण जैसे नेता सामने आए।

सोनिया ने खुद तो सांगठनिक स्तर पर बहुत जबरदस्त काम किया, मगर आज उनके सामने एक बड़ी संकट ये है कि वो अब किसके हाथों में सत्ता सौंपे। हालांकि उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी को अध्यक्ष पद जरूर दिया, मगर राहुल इसमें पूरी तरह से असफल रहे और लगातार चुनावी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष का पद छोड़ दिया।

सोनिया  के सामने नए अध्यक्ष चुनने की चुनौती

सोनिया गांधी अब अस्वस्थ हैं और पार्टी को ज्यादा समय नहीं दे पा रही हैं। हालांकि अपनी दूसरी पारी में भी सोनिया ने महाराष्ट्र और झारखंड में सहयोगियों के साथ मिलकर  सरकार जरूर बनाई, मगर अब सोनिया उस तरह से सक्रिय नहीं हैं, जैसे पार्टी उनसे अपेक्षा करती है।

अब कांग्रेस को ये समझने की जरूरत है कि उनका मुकाबला नरेंद्र मोदी और अमित शाह वाले मजबूत नेतृत्व की पार्टी बीजेपी से  है। ऐसे में कांग्रेस को कुछ नया करने की जरूरत है।

कांग्रेस को करीब से जानने वाले कुछ जानकारों का कहना है कि अब युवा पीढ़ी को कांग्रेस की बागडोर देनी चाहिए। साथ ही एक स्पष्ट विजन वाले नेता की तलाश करनी चाहिए। जो इन दिनों सोनिया और कांग्रेस पार्टी दोनों ही नहीं कर पा रहे हैं।

Related Articles

Back to top button