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इस मंदिर की देवी ने पाकिस्तानी सैनिकों चटाया था धूल, चमत्कार देख सैनिक बन गए पुजारी

भारत यूंही नहीं आस्था और चमत्कारों का देख कहा जाता है, यहां ना जाने कितने मंदिर मंदिर हैं जिनके चमत्कार और दैवीय कृपा से जग विस्मृत हुआ है और ऐसे ही एक मंदिर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं। वैसे तो देश में कई सारे ऐसे मंदिर हैं जहां दर्शन से लोगों के कष्ट दूर होते है, तो वहीं कुछ मंदिर मनचाही मुदार पूरी करने के लिए लोकप्रिय हैं, जबकि कुछ मदिर विवाह या संतान इच्छा की पूर्ति के लिए जाने जाते हैं पर आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं, वहां की देवी महिमा तो बेहद निराली है। इस मंदिर की देवी ना सिर्फ स्थानीय जनता की मन्नते पूरी करती हैं, बल्कि ये किसी सेनानी की तरह देश और सरहद की रक्षा भी करती हैं। जी हां, राजस्थान में ऐसा मंदिर है जहां कि देवी , पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए जानी जाती है। यही वजह है कि इस मंदिर में बीएसएफ के जवान विशेष रूप से पूजा-अर्चना करते हैं। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर और यहां विराजमान  देवी की महिमा के बारे में।

दरअसल हम बात कर रहे हैं राजस्थान के जैसलमैर से 120 किलोमीटर दूर स्थित माता घंटीयाली के मंदिर की ।जिसके बार में ये कहा जाता है कि  1965 में भारत पाकिस्तान की जंग में यहां की दैवी ने ऐसा चमत्कार दिखाया कि पाकिस्तानी सेना मंदिर के पास पहुंचते ही ढेर हो गई।  ऐसा बताया जाता है कि 1965 के युद्ध में जब पाक सेना यहां इस मंदिर के पास आए तो एक-दूसरे को ही दुश्मन समझकर लड़ पड़े, वहीं कुछ पाक सैनिक माता के चमत्कार से अंधे हो गए।

राजस्थान का ये मंदिर 1965 की जंग के बाद देश मे चर्चित हो गया था,वजह थी इसकी देवी की अनुकम्पा, जिससे पाक सैनिक इस क्षेत्र में स्वयं ही काल के मुंह में चले गए थे। बताया जाता है कि 1965 की जंग के दौरान जब पाकिस्तानी सेना इस मंदिर के समीप पहुंची तो वो अपनी ही सेना को भारतीय सैनिक समझ एक-दूसरे पर गोलियां दागने लगे। वहीं कुछ पाकिस्तानी सैनिक घंटीयाली माता के मंदिर में अंदर प्रवेश कर गए और जैसे ही माता की मूर्ति मूर्ति का श्रृंगार उतारने की कोशिश की वे दैवीय अनुकम्पा से अंधे हो गए। देवी घंटियाली के मंदिर के पास 5 किमी के दूरी पर माता तनोट का भी मंदिर है, माना जाता है कि इन दोनो देवीयों की अनुकम्पा से पाक सैनिको का इस युद्ध में मुंह की खानी पड़ी थी।

1965 की जंग में दोनों देवियों घंटीयाली और तनोट के आशीर्वाद से पाकिस्तानी सैनिको को धूल चटाने के बाद बीएसएफ ने इन दोनों मंदिरों का जिम्मा अपने हाथों में ले लिया।आज भी दोनों मंदिर में बीएसएफ का सिपाही ही पंडित होता है, अभी यह जिम्मेदारी बीएसएफ की 135वीं वाहिनी के पास है, जहां के मुख्य पुजारी भी बीएसएफ सिपाही ही हैं। इनका नाम है पंडित सुनील कुमार अवस्थी,  अवस्थी की मानें तो ये दोनों मंदिर करीब 1200 वर्ष पुराने हैं और काफी सिद्धीदायी माने जाते हैं। वहीं 1965 की जंग के बाद इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ चुकी है।

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