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सेना की सफलता पर जब इंदिरा ने फेर दिया था पानी ! भारत कागज पर हार गया था जीता हुआ युद्ध

16 दिसंबर की तारीख भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. आज ही के दिन पाकिस्तान की सेना के 95 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के आगे घुटने तक दिए थे. पूरी पाक सेना ने भारतीय सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने अपनी हार स्वीकार की थी.

भारत यूं तो पाक से 1971 का युद्ध जीत चुका था, हालांकि कागजों पर लड़ाई भारत के हक़ में नहीं रही, जिसका ख़ामियाजा देश आज 50 सालों के बाद भी भुगतते रहता है. पाकिस्तानी सेना की कमान नियाज़ी के हाथों में थी, बताया जाता है कि नियाजी और अरोड़ा बचपन के मित्र थे. हलांकि दोनों अपने-अपने देश के लिए युद्ध के मैदान में आमने-सामने थे.

जब पाकिस्तान के सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था, तो उस समय भारत के ले. जनरल अरोड़ा व पाक के सेनाधिकारी नियाज़ी के हस्ताक्षर ऐतिहासिक दस्तावेज पर हुए थे. समर्पण को लेकर नियाजी की ओर से लिखा गया था कि, ‘पाकिस्तान की पूर्वी कमान इस बात पर सहमत है कि समस्त पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाएं (जिनमें जल, थल, वायु व अर्द्ध सैनिक बल भी शामिल हैं) भारत एवं बांग्ला देश सेना के प्रमुख ले. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दे.. ले. जनरल अरोड़ा का फ़ैसला अंतिम होगा…समर्पण का अर्थ समर्पण ही है जिसकी और कोई व्याख्या नहीं की जा सकती.’

भारतीयों को उम्मीद थी कि पाक ने घुटने टेक दिए है तो अब पीओके भी भारत के हिस्से आ जाएगा. हलांकि यह आज तक संभव नहीं हो सका. इसके बाद पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने बड़ा दवा करते हुए कहा था कि जुल्फिकार अली भुट्टो ने बड़ी समझदारी के साथ इंदिरा गांधी से भारतीय सेना द्वारा कब्‍जाई सारी जमीन और पाक बंदी कैदियों को सही सलामत छुड़वा लिया है.

16 दिसम्बर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को धूल चटाकर अपने नाम ऐतिहासिक विजय दर्ज की थी. लेकिन 2 जुलाई 1972 को जब शिमला समझौता हुआ तो इसमें दोनों देशों ने इस बात पर सहमति दी कि दोनों देशों की ओर से जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. इस समझौते में ही दोनों देशों के बंदी बने सैनिकों को भी छोड़ने की बात कही गई थी. इस फैसले को लेकर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. भारतीयों का मानना था कि भारत के पास शर्तों पर कश्मीर समस्या सुलझाने का सुनहरा मौका था, हालांकि इंदिरा गांधी ने इस पर पानी फेर दिया.

इस समझौते के बाद भारत ने पूर्व पाक पीएम भुट्टो की बातों को मानते हुए उसके सारे बंदी सैनिकों को छोड़ दिया. जबकि पाक द्वारा भारत के सिर्फ 617 सैनिक रिहा किए गए. आलम यह है कि 54 युद्धबंदियों में से आज भी कई सैनिक पाक की जेल में बड़ी मुश्किलों और तकलीफ़ों में अपने दिन काट रहे हैं.

 

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