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शिवाजी महाराज से भी ज़्यादा बहादुर थे उन के पुत्र संभाजी, आखिरी सांस तक की थी हिन्दू धर्म की रक्षा

शिवाजी महाराज की बहादुरी की कहानी हर किसी ने सुन रखी है। जिस तरह से शिवाजी ने मुगलों से मुकाबला किया वो उनकी वीरता को दर्शता है। शिवाजी की तरह ही इनके ज्येष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज भी एक महान योद्धा हुआ करते थे। लेकिन दुख की बात है कि काफी कम लोगों को ही छत्रपति संभाजी महाराज के बारे में अधिक जानकारी है। आज हम अपने लेख के माध्यम से आपको छत्रपति संभाजी महाराज के बारे में बताते जा रहे हैं। ताकि आपको भारत के इस महान योद्धा के शौर्य के बारे में पता चल सके।

संभाजी महाराज का जन्म 14 मई, सन् 1657 ई में महाराष्ट्र स्थित पुरन्दर के किले में हुआ था। इनके पिता का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज और माता का नाम सईबाई था। जबकि संभा जी की पत्नी का नाम येसूबाई था। इनके जन्म के कुछ समय बाद ही इनकी माता सईबाई का निधन हो गया था। जिसके बाद इनका लालन-पालन इनकी दादी द्वारा किया गया।

नौ वर्ष की आयु में, संभाजी को राजा जय सिंह I के साथ रहने के लिए भेजा दिया गया था। जहां पर वो एक राजनीतिक बंधक के रूप में पुरंदर की संधि का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए गए थे। पुरंदर की संधि पर शिवाजी ने 11 जून 1665 को मुगलों के साथ हस्ताक्षर किए थे। संधि के परिणामस्वरूप, संभाजी को मुगल मंसबदार बनाया गया था।

रिश्तों में आई दूरी

कहा जाता है कि संभाजी की सौतेली मां अपने बेटे राजाराम को राजा बनाना चाहती थीं। इसलिए वो संभाजी को पसंद नहीं करती थी। सौतेली मां के कारण ही शिवाजी और संभाजी के बीच दूरी आने लग गई थी। वहीं संभाजी के गलत व्यवहार के कारण शिवाजी ने 1678 में उन्हें पन्हाला किले में कैद कर दिया था। लेकिन संभाजी वहां से अपनी पत्नी के साथ भाग निकले और मुगलों से जा मिले। मुगलों के साथ ये करीब एक साल तक रहे। हालांकि मुगलों का असली चेहरा देखकर संभी जी घर लौट आए।शिवाजी ने संभाजी को अपनी निगरानी में रख लिया और फिर से कैद कर लिया।

छोटे बेटे को बनाया राजा

3 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई। जिस समय शिवाजी महाराज की मौत हुई, संभाजी पन्हाला में कैद थे। ऐेस में शिवाजी महाराज के दूसरे बेटे राजाराम को सिंहासन पर बैठा दिया गया। जब संभाजी को ये खबर मिली तो उन्होंने कैद से निकलने की योजना बनाई और कैद से निकलकर 18 जून 1680 को रायगढ़ के किले पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद  उन्होंने राजाराम, उनकी बीवी जानकी और उनकी मां सोयराबाई को गिरफ्तार किया गया और 20 जुलाई 1680 को संभाजी ने सिंहासन अपने नाम कर लिया।

संभाजी ने अपना खुद का मंत्रिमंडल बनाया। इन्होंने कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया। जो कि मथुरा के रहने वाले थे। शिवाजी के सहयोगी कवि कलश को पसंद नहीं करते थे और उन्हें ये पद देने के कारण संभा जी के खिलाफ हो गए। उनके खिलाफ आंतरिक विद्रोह का बिगुल फूंक दिया गया। इसी बीच संभाजी राजे ने मुगलों से युद्ध करने का फैसला किया और बुरहानपुर शहर पर हमला किया। जिसके बाद मुगलों और इनके बीच दुश्मनी गहरी हो गई।

औरंगज़ेब के चौथे बेटे अकबर ने अपने पिता से बग़ावत कर ली और जब ये बात संभाजी राजे को पता चली तो उन्होंने अकबर को अपना दोस्त बना लिया। 1687 में मराठा और मुगलों से भयंकर लड़ाई हुई। जिसमें मराठों की जीत हुई। लेकिन इसके कारण संभाजी की सेना काफी कमजोर हो गई। दूसरी तरफ उनके राज्य के लोग उनके खिलाफ साजिश रचने लगे।

कर लिया कैद

फ़रवरी 1689 में जब संभाजी एक बैठक के लिए संगमेश्वर पहुंचे, तो मुगल सरदार मुक़र्रब ख़ान ने हमला कर उन्हें व उनके सलाहकार कवि कलश को पकड़ लिया और बहादुरगढ़ ले गए। जहां पर औरंगज़ेब ने संभाजी के सामने एक प्रस्ताव रखा और सारे किले उन्हें सौंप कर इस्लाम कबूल करने को कहा। संभाजी राजे ने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया। प्रस्ताव मना करने के कारण औरंगज़ेब ने सारी हदें पार करते हुए संभाजी राजे और कवि कलश को जोकरों वाली पोशाक पहना कर पूरे शहरभर में धूमाया।

फिर से औरंगज़ेब ने इन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा। लेकिन फिर से इन्होंने इंकार कर दिया। जिसके बाद इन दोनों की ज़ुबान कटवा दी गई और आंखें निकाल ली गई। अपना बंदी बनाकर उन्हें गंभीर मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गईं । 11 मार्च 1689 को उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए।

लोगों के अनुसार इनके टुकड़ों को तुलापुर की नदी में फेंक दिया गया। जहां से इनके टुकड़ों को बाद में निकाला गया और अंतिम संस्कार किया गया। वहीं कुछ लोगों का माना है कि उनके शरीर के अंगों को मुग़लों ने कुत्तों को खिलाया था।

संभाजी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

  • इन्होंने बचपन में ही काफी ज्ञान हासिल कर लिया था और ये अपने पिता शिवाजी के जैसे वीर योद्धा हुआ करते थे। अपने पिता की तरह ही इन्होंने अपना पूरा जीवन अपने राज्य को समर्पित कर दिया था।
  • 13 वर्ष की आयु तक इन्होंने 13 भाषाएँ, पूर्व संस्कृत, मुगलों की भाषा, दक्षिण भारतीय भाषाएँ, पुर्तगाली आदि का ज्ञान हासिल कर लिया। इसी उम्र में इन्होंने कई शास्त्र भी लिखे थे।
  • संभाजी और शिवाजी 12 मई 1666 को आगरा में मुगल बादशाह औरंगज़ेब के सामने पेश हुए थे और औरंगज़ेब ने इन दोनों को कैद कर लिया था। हालांकि 22 जुलाई 1666 को ये वहां से भाग निकले।
  • जब वो औरंगजेब के कारावास से भागे थे तो उस समय उनकी मुलाकात ब्राह्मण कवि कलश से हुई, जो आगे चलकर उनके सलाहकार बने।
  • कहा जाता है कि मरने से पहले औरंगज़ेब ने संभाजी राजे से कहा था, “अगर मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता। तो सारा हिंदुस्तान कब का मुग़ल सल्तनत में समा चुका होता।
  • सांभा जी महाराज के लिए एक प्रसिद्ध कहावत है जो कि इस प्रकार है “देश धर्म पर मिटने वाला , शेर शिवा चाव था, महा पराक्रम तेज प्रतापी एक ही संभु राजा था।

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