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कोरोना के खौफ के बीच 17 साल के लड़के को नई जिंदगी दे गया 2 साल का मासूम बच्चा

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं देश भर में कोरोना वायरस का संकट मंडरा रहा है। कोरोना वायरस की वजह से देश के लोगों को काफी परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है। कोरोना ने कई परिवारों के अपनों को छीन लिया है। आय दिन कोरोना से जान गंवाने वालों की खबरें सुनने को मिल ही जाती हैं। इसी बीच गुजरात के अहमदाबाद से जिंदगी भरी खबर निकल कर सामने आई है, जहां पर महज 2 साल के एक मासूम बच्चे ने 17 साल के लड़के की बुझती हुई जिंदगी को रोशन कर दिया है।

आपको बता दें कि एक साल और ग्यारह महीने के मासूम बच्चे वेद जिंजीवाडिया की किडनी दान कर एक माता-पिता ने 17 साल के एक लड़के की जान बचा ली हैं। अपने बच्चे को खोने के बाद माता-पिता की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे परंतु उनके बच्चे ने एक दूसरे इंसान की जिंदगी को रोशन कर दिया है। इससे मृतक के परिजनों को गर्व हो रहा है। डॉक्टरों के अनुसार वेद जिंजीवाडिया नामक बच्चा कुछ दिन पहले बीमार हुआ था। उसे लगातार उल्टियां हो रही थीं और उसको बोलने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था।

जब इस नन्हे बच्चे की जांच राजकोट के सर्जन डॉक्टर सुधीर रुघानी से कराई गई तो इस बात का पता चला कि बच्चे को ब्रेन ट्यूमर है। जिस समय के दौरान डॉक्टर बच्चे का ऑपरेशन कर रहे थे, ट्यूमर फट गया और बच्चा ब्रेन डेड हो गया था यानी इस नन्हे से बच्चे की जिंदगी बच पाना पूरी तरह से असंभव हो गई थी। ऐसे में उस बच्चे के आवश्यक अंग किसी और की जान बचाने के इस्तेमाल करने के लिए उसके परिजनों से इस विषय में बातचीत की गई।

वेद जिंजीवाडिया के परिजनों की काउंसलिंग की गई और उन्हें समझाने का प्रयास किया गया कि बच्चे के अंग दान करने से दूसरे गंभीर रूप से बीमार बच्चों की जिंदगी बच सकती है और माता-पिता अपने बच्चे के अंगदान करने को तैयार हो गए। डॉक्टरों ने तब वेद जिंजीवाडिया की दोनों किडनी को एक 17 साल के एक किशोर में ट्रांसप्लांट किया, जिससे किशोर की जिंदगी बच गई। वहीं नन्हे से बच्चे के माता-पिता को अपने बच्चे पर गर्व महसूस हुआ है।

आपको बता दें कि इंस्टिट्यूट ऑफ़ किडनी डिजीजिज एंड रिसर्च सेंटर के डॉ प्रांजल मोदी का ऐसा कहना है कि वेद जिंजीवाडिया की किडनी से हमारे पास दो लोगों की जान बचाने के ऑप्शन थे, जिनमें से आणंद वाले रोगी के साथ वेद की किडनी मैच नहीं की। तब अहमदाबाद के 17 वर्ष के किशोर के लिए दोनों किडनी दे दी गई। वह पिछले डेढ़ साल से डायलिसिस पर था, फिलहाल उसकी हालत बेहतर है।

भले ही वेद जिंजीवाडिया की जिंदगी चले जाने से परिजनों के आंसू बह रहे हैं परंतु आंसुओं में डूबी हुई एक बुझती जिंदगी ने एक दूसरे इंसान के जीवन को रोशन कर दिया है। इस पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह रहा कि 17 साल के किशोर में किडनी ट्रांसप्लांट का सारा खर्च गुजरात सरकार ने खुद उठाया। इस ट्रांसप्लांट का खर्च स्कूल हेल्थ चेकअप प्रोग्राम के तहत उठाने का निर्णय लिया गया है।

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