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छठ : भगवान राम भी रखते थे छठ व्रत, जानिए महापर्व से जुड़ीं मान्यता और कथा के बारे में

देश इस समय त्यौहारों के रंग में डूबा हुआ है. हाल ही में देश-दुनिया में धूम-धाम के साथ दिवाली का महापर्व मनाया. वहीं आज देश भाई दूज का पर्व मना रहा है. जबकि अब उत्तर प्रदेश और बिहार सहित देश के कुछ राज्यों में छठ महापर्व मनाया जाएगा.

छठ को उत्तर प्रदेश और बिहार में सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. छठ महापर्व कुल 4 दिनों तक चलता है. इस बार छठ महापर्व 20 नवंबर, शुक्रवार को है. आइए जानते हैं छठ पर्व की कथा और कुछ मान्यताओं के बारे में…

भगवान श्री राम ने की थी सूर्य देव की उपासना…

ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने भी छठ का व्रत रखा रखते थे. सूर्य देव भगवान श्री राम के कुल देवता हैं. श्री ब्रह्मा के पुत्र मरीचि थे. उनके पुत्र थे ऋषि कश्यप. अदिति से ऋषि कश्यप का विवाह हुआ था. अदिति के भक्ति भाव और उनकी तपस्या से सूर्य देव बेहद प्रसन्न हुई और उन्होंने अपनी सुषुम्ना नाम की किरण से उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया. सूर्य किरण रूप में जन्में सूर्य के अंश को विवस्वान कहा गया और इनकी संतान को नाम दिया गया वैवस्वत. शनि, यम, यमुना और कर्ण सूर्य देव की संताने हैं. त्रेतायुग में श्री विष्णु के अवतार के रूप में धरती पर अवतरित होने वाले भगवान श्री राम वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के कुल में जन्मे थे.

साम्ब ने कुष्ठ से मुक्ति के लिए किया था कठोर तप…

द्वापरयुग में श्री विष्णु के अवतार के रूप में जन्म लेने वाले भगवान कृष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब बहुत ही सुंदर प्रतीत होते थे. उनकी सुंदरता से श्री कृष्ण की 16108 रानियां भी उन पर मोहित होने लगी थी. लेकिन जब नारदजी को इस बात की ख़बर लगी तो उन्होंने श्री कृष्ण के पुत्र को श्राप दे दिया. इससे वे कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए. इससे छुटकारा पाने के लिए साम्ब ने चंद्रभागा (चिनाब) नदी के तट पर बैठकर सूर्य देव की उपासना की. उनकी कठिन तपस्या से उन्हें इस रोग से मुक्ति मिल गई.

इस तिथि से शुरू हुई थी सूर्य को संतान प्राप्ति…

सूर्य के तेज को भेदने का साहस किसी के पास मौजूद नहीं है. संज्ञा, विश्वकर्मा की पुत्री भी सूर्य के ताप को सहन नहीं कर पाती थी. ‘संज्ञा’ व अस्त को ‘छाया’ और दोनों को सूर्य देव की पत्नी माना जाता है. संज्ञा जो कि सूर्य देव के प्रकाश को सहन नहीं कर पाती थी उन्होंने छाया नामक अपना प्रतिरूप रचा और स्वयं तपस्या करने कुरू प्रदेश की ओर रवाना हो गई. सूर्य देव इस बात से अनजान थे, वहीं जब उन्हें इसकी ख़बर लगी तो वे तुरंत उनकी खोज के लिए निकल पड़ें. उन्होंने सप्तमी तिथि को संज्ञा की खोज कर ली. यहीं वो तिथि भी थी, जब दिव्य रूप के चलते सूर्य देव को संतान प्रापति भी हुई.

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