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कड़ी मेहनत कर बने डॉक्टर, अब 37,000 बच्चों की मुफ्त सर्जरी कर लौटाई चेहरे की मुस्कान

इस दुनिया में हर तरह के इंसान देखने को मिलते हैं। कोई इंसान अच्छे होते हैं तो कई इंसान बुरे भी होते हैं। सभी इंसानों का अपना-अपना अलग-अलग स्वभाव होता है। अक्सर देखा गया है कि बहुत से लोग किसी दूसरे की परेशानी नहीं देख पाते हैं और उनकी सहायता के लिए वह तुरंत सामने आ जाते हैं।

अच्छे लोग परेशान लोगों की हर संभव मदद करते हैं। इसी बीच हम आपको एक ऐसे डॉक्टर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसने अपने बचपन के दिनों में डॉक्टर बनने के लिए कड़ा संघर्ष किया और अब उन्होंने 37000 मुफ्त सर्जरी करके कई परिवारों के चेहरे की मुस्कान लौट आई है।

दरअसल, हम आपको जिस नेक इंसान के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के प्लास्टिक सर्जन डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह हैं। सुबोध कुमार सिंह ने अपने जीवन में बहुत कठिन परिस्थितियां देखी हैं परंतु उन्होंने किसी भी हालात में हार नहीं मानी और लगातार हर परिस्थिति का सामना करते रहे। उन्होंने अपने बचपन के दिनों में डॉक्टर बनने के लिए कड़ा संघर्ष किया है।

सुबोध कुमार सिंह हमेशा से ही एक मेधावी छात्र रहे हैं। जब वह पढ़ाई किया करते थे तो उनको बहुत सी दिक्कत का सामना करना पड़ा। पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने परिवार का भी सपोर्ट करते थे। सुबोध कुमार सिंह ने अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए और परिवार की सहायता करने के लिए 1979 में काले चश्मे और साबुन तक बेचने का काम किया है। परंतु आज डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह को मशहूर प्लास्टिक सर्जन के रूप में जाना जाता है।

आपको बता दें कि डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह ने अपने पिता को बहुत ही कम उम्र में खो दिया था। उनके पिताजी रेलवे में क्लर्क थे। उनका कहना है कि उनके पास सर्जरी के लिए आने वाले सभी जरूरतमंद बच्चों में उन्हें वह 13 साल का सुबोध नजर आता है, जिसने अपने पिता को खो दिया था। उनका बताना है कि उन्हें अपने माता-पिता से हमेशा दूसरों की सहायता करने की शिक्षा मिली है। उनका मानना है कि उन्हें भगवान ने प्लास्टिक सर्जन बनाया है बिजनेसमैन नहीं।

जब डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह के पिताजी का निधन हो गया तो उसके बाद उनका जीवन बहुत कठिन रहा था। उनको अपना घर चलाने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ी थी। उन्होंने घर पर साबुन बनाकर भी बेचे। उनके सबसे बड़े भाई को उनके पिता की जगह रेलवे में नौकरी मिल गई लेकिन फिर भी घर का गुजारा करना इतना आसान नहीं रहा था। साल 1982 में सुबोध के बड़े भाई को रेलवे से पहले बोनस में ₹579 मिले थे इन पैसों से उन्होंने सुबोध की फीस भर दी थी ताकि वह मेडिकल की परीक्षा की तैयारी कर सकें।

डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह ने डॉक्टर बनने के लिए जीवन में कड़ा संघर्ष किया है। उन्होंने अपने बड़े भाई की मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने दिया। उन्होंने तीन जगह के मेडिकल एंट्रेंस को क्लियर कर लिया था और आखिरकार बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपनी मेडिकल की डिग्री पूरी कर ली। साल 2002 में डॉक्टर सुबोध सिंह ने अपने पिता की याद में फ्री इलाज करना शुरू किया और आगे उन्होंने 2003-2004 से बच्चों की सर्जरी करनी शुरू कर दी, जिसके बाद से यह सिलसिला लगातार जारी है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, डॉ. सुबोध कुमार सिंह अब तक 37,000 मुफ्त सर्जरी कर चुके हैं। उनके इस नेक कार्य के लिए अलग-अलग मंचों पर उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। डॉ. सुबोध सिंह सालों से गरीब और जरूरतमंद बच्चों की मुफ्त सर्जरी कर उनकी मुस्कान लौटा रहे हैं।

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