जज्बे को सलाम! कोरोना काल में मां और डॉक्टर का निभाया फर्ज, गर्भवती होने पर भी नहीं ली छुट्टी
कोरोना वायरस देश के लिए काफी गंभीर समस्या बनी हुई है। सरकार के द्वारा इस महामारी की रोकथाम के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं परंतु अभी भी कोरोना वायरस की समस्या खत्म नहीं हुई है। कोरोना वायरस महामारी के फैलने के शुरुआती दिनों में लोगों को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। कोरोना वायरस के चलते देश भर में लॉकडाउन का ऐलान किया गया था, जिसकी वजह से लोगों के कामकाज ठप पड़ गए थे। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए थे परंतु अब धीरे-धीरे लोगों का जीवन पटरी पर आ रहा है।
कोरोना महामारी के बीच जब देशभर के लोग मुसीबत में थे तो इन लोगों की सहायता के लिए बहुत से लोग सामने आए। पुलिस और डॉक्टर संकट की इस घड़ी में अपना कर्तव्य ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं। इसी बीच हम आपको डॉक्टर मिक्की के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जिन्होंने कोरोना वायरस के शुरुआती दिनों में करोना पीड़ित मरीजों की सेवा की। आपको बता दें कि यह उस दौरान 4 माह की गर्भवती थीं परंतु इस मुश्किल घड़ी में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मां और डॉक्टर का फर्ज एक साथ निभाती चली गईं।
आपको बता दें कि डॉक्टर मिक्की सिविल अस्पताल पठानकोट में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर (ईएमओ) हैं और कोरोना वायरस महामारी के बीच जिस प्रकार से इन्होंने अपना फर्ज निभाया, उसके लिए हर कोई इनके जज्बे को सलाम करता है। डॉक्टर मिक्की के परिवार वालों ने इनको कहा था कि छुट्टी लेकर होने वाले बच्चे का ध्यान रखें परंतु उन्होंने कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों की सेवा को अहमियत दी थी।
डॉक्टर मिक्की के इस कार्य में उनके पति ने उनका पूरा हौसला बढ़ाया। आपको बता दें कि उनके पति थाना डिवीजन नंबर दो के प्रभारी इंस्पेक्टर दविंद्र प्रकाश हैं। खाकी वर्दी में एसएचओ दविंद्र प्रकाश ने दिन-रात लोगों की सेवा की। वहीं उनकी पत्नी डॉक्टर मिक्की भी दिन-रात लोगों की सेवा में जुटी रहीं।
डॉ. मिक्की ने अपने कर्तव्य को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया था। डॉ. मिक्की की ड्यूटी इमरजेंसी में थी। जहां पर संक्रमण के खतरे की संभावना सबसे अधिक रहती थी। आपको बता दें कि वहीं सिविल अस्पताल में ही कोविड-19 आइसोलेशन वार्ड स्थित है। जहां पर 28 मरीजों का इलाज किया जा रहा था। स्वास्थ्य विभाग ने डॉ. मिक्की को छुट्टी की पेशकश भी की थी परंतु उन्होंने छुट्टी लेने से मना कर दिया था।
डॉक्टर मिक्की का ऐसा कहना है कि जब कोरोना वायरस का संक्रमण फैला था तो वह अस्पताल में जाकर मरीजों का इलाज करती रही थीं। लगभग 5 महीने बिना किसी छुट्टी के उन्होंने कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा की। उन्होंने आठवें महीने में छुट्टी ली थी। इसी बीच उन्होंने बेटे को जन्म दिया था। उन्होंने बताया की जब उन्होंने अपनी डॉक्टर की पढ़ाई पूरी की तब उनको शपथ में यही सिखाया गया था कि किसी भी हालत और परिस्थिति में अपने कर्म को सबसे पहले रखें और डॉक्टर मिक्की ने वही किया है। कोरोना संकट की घड़ी में जिस प्रकार से डॉक्टर मिक्की ने अपने कर्म का पालन किया है, हम उनके जज्बे को सलाम करते हैं।