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गोदभराई की रस्म में सूखे मेवे ही क्यों चढ़ाए जाते हैं, जाने इस परंपरा का वैज्ञानिक कारण

हिंदू धर्म में जीवन के हर पढ़ाव से जुड़ी कई परंपराएं हैं। जैसे बच्चे का जन्म होने पर उसका नामकरण होता है, शादी होने पर फेरे और कन्यादान होता है वहीं मरने पर अंतिम संस्कार किया जाता है। इसी कड़ी में जब कोई महिला मां बनने वाली होती है तो उसकी गोदभराई की रस्म की जाति है। यह रस्म तब होती है जब महिला गर्भवती होती है और बच्चा उसके पेट में होता है।

गोदभराई की इस परंपरा में होने वाली मां की गोद को सूखे मेवों से भरा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी छिपा हुआ है। महिला की गोद मां बनने से पहले सूखे मेवों से ही क्यों भरी जाती है इसके पीछे भी एक खास वजह है। चलिए ऐसा करने के फ़ायदों के बारे में जानते हैं।

गोदभराई की रस्म में सूखे मेवों का महत्व

– गोद भराई की रस्म करने से बच्चे की हेल्थ पर सकारात्मक असर पड़ता है। जब गर्भवती मां की रस्म के दौरान विशेष पूजा की जाती है तो उसके गर्भ के सभी दोनों का निवारण हो जाता है। इसलिए यह पूरी प्रक्रिया गर्भ में पल रहे बच्चे की अच्छी सेहत को ध्यान में रख कर की जाती है।

– फल और सूखे मेवे सेहत की दृष्टि से बहुत अच्छे होते हैं। इनमें कई तरह के पौषक तत्व मौजूद रहते हैं। यही वजह है कि गर्भवती महिला को गोदभराई की रस्म में इन्हें दिया जाता है, ताकि वे इन्हें खाए और अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत में सुधार करें।

– बच्चा जब मां के गर्भ में होता है तो उसे ज्यादा प्रोटीन वाले खाने की आवश्यकता होती है। ऐसे में ड्राय फ्रूट से इस जरूरत को बड़ी आसानी से पूरा किया जा सकता है। इसके अंदर वे सभी पोषक तत्व मौजूद रहते हैं जिसकी जरूरत गर्भ में पल रहे बच्चे को अच्छी सेहत के लिए होती है।

– एक अन्य वजह ये भी है कि फल और सूखे मेवे जब शरीर में जाते हैं तो उनके तेलीय गुणों के कारण बॉडी में चिकनाई भी आ जाती है। ऐसे में जब महिला का प्रसव का समय आता है तो नवजात शिशु को पैदा करने में उसे ज्यादा दर्द नहीं होता है।

यही कुछ वजहें हैं जिसके कारण महिला की गोदभराई की रस्म में सूखे मेवों का इस्तेमाल किया जाता है। यदि आप भी किसी ऐसी रस्म का हिस्सा बने तो गर्भवती महिला के लिए सूखे मेवे ले जाना न भूलें।

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