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6 साल के बच्चे से प्रेरणा लेकर पूरे परिवार ने ले ली दीक्षा, 30 करोड़ की संपत्ति कर दी दान

संयम की राह पर चला दवा कारोबारी का पूरा परिवार, 2 बेटी , 2 बेटे और माँ बाप ने ली दीक्षा

दान करना जीवन का सबसे अच्छा और फलदायी काम है। जब आप निस्वार्थ भाव से किसी की सेवा करते हैं किसी को बिना लालच के दान देते हैं तो ईश्वर भी आपको उसका फल जरूर देता है, फिर चाहे वो किसी भी रूप में हो सकता है। देश के ऐसे ही एक दानवीर परिवार की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। इस परिवार ने अपनी करोड़ों की संपत्ति दान कर ईश्वर की राह पर चलने का फैसला ले लिया।

डाकलिया परिवार छत्तीसगढ़ एक जाना-पहचाना हुआ नाम है। यह परिवार अपनी करोड़ों की संपत्ति के अलावा जिंदादिली के लिए भी जाना जाता है। अब इस संपन्न परिवार ने अब अपनी आरा भरी जिंदगी को त्याग कर संयम के कठिन रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया।

परिवार के सदस्यों के नाम

गुरुवार को जैन बगीचे में परिवार के मुखिया मुमुक्षु भूपेंद्र डाकलिया समेत पांच लोगों को भगवती दीक्षा दिलाई गई। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के गंज चौक में रहने वाले 47 वर्षीय मुमुक्षु भूपेंद्र डाकलिया के परिवार में दीक्षा लेने वालों में उनकी 45 साल की पत्नी सपना डाकलिया और उनके चार बच्चे शामिल हैं।

जिसमें 22 वर्षीय महिमा डाकलिया, 16 साल के हर्षित डाकलिया, देवेंद्र डाकलिया (18) हैं। हालांकि 20 वर्षीय मुमुक्षु मुक्ता डाकलिया ने इन लोगों के साथ स्वास्थ संबंधी कुछ कारणों से दीक्षा नहीं ली है। अब उनकी दीक्षा फरवरी में होगी।

6 साल के बच्चे के मन में आया दीक्षा लेने का ख्याल

मुमुक्षु भूपेंद्र ने इस बारे में बताया कि, उनकी प्रॉपर्टी करोड़ों में है। जिसमें जमीन, दुकान से लेकर दूसरी संपत्तियां भी शामिल हैं। लेकिन साल 2011 में रायपुर में स्थित कैवल्यधाम जाने के बाद हमारे सबसे छोटे बच्चे हर्षित के मन में इस दीक्षा लेने का भाव आया। उस वक्त उसकी उम्र 6 साल की थी।

बच्चे से मिली दीक्षा लेने की प्रेरणा

उन्होंने बताया कि, हर्षित ने हंसते-हंसते गुरु के सानिध्य में अपना केश लोचन कराया था। बच्चे को देखकर हम सभी के मन में भी दीक्षा लेने का ख्याल आया। धाम से लौटने के बाद से बच्चों ने दीक्षा लेने की बात कही। लेकिन कम उम्र होने के चलते उस वक्त दीक्षा नहीं ली।

अब दस साल बाद भी उनके मन में दीक्षा का भाव बना हुआ देख मैंने उनके फैसले पर सहमति दी है। जिसके बाद 9 नवंबर को उनके परिवार ने दीक्षा लेने का अंतिम निर्णय लिया। इसके बाद पूरा परिवार अपना ऐशो-आरामयुक्त जीवन छोड़ एक साथ संन्यास की ओर चल पड़ा।

जैन धर्म का क्या कहना है

इसकी जानकारी परिवार के दूसरे सदस्यों को दी। जैन धर्म के लोगों का कहना है कि, ऐसा खरतरगच्छ पंथ में पहली बार हुआ है कि जब पूरे परिवार ने एक साथ दीक्षा ग्रहण की है। गुरुवार को सभी का दीक्षा संस्कार जैन बगीचा में पूरा हुआ। जहां से सभी सदस्य संयम की राह पर चल पड़े। बता दें कि दीक्षा संस्कार के बाद परिवार के सभी मुमुक्षुओं को अलग कर दिया गया।

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