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कोरोना: गर्भवती बहन को बचाने के लिए भाई ने नहीं की अपनी जान की परवाह,अन्य मरीजों की भी बचाई जान

कोरोना महामारी का आतंक लगातार बढ़ता ही जा रहा है। कोरोना की दूसरी लहर बेहद खतरनाक साबित हो रही है। रोजाना ही कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इतना ही नहीं बल्कि ऑक्सीजन की कमी से लोग अपनी जान भी गंवा रहे हैं। मौजूदा समय में कोरोना वायरस ने रिश्तो में दूरियां लाकर खड़ी कर दी है।

कोरोना काल में लोग अपनों की ही मदद करने में घबरा रहे हैं। लोगों के अंदर कोरोना का डर बैठ चुका है परंतु आज हम आपको एक ऐसे मामले के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसको जानने के बाद आप भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे। दरअसल, पुराना गोरखपुर मोहल्ले में एक युवक कोरोना वायरस से संक्रमित हो गया था परंतु उसने अपनी परवाह किए बिना ही अपनी गर्भवती बहन और अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों की उखड़ती सांसे बचाई है।

आपको बता दें कि पंकज शुक्ला अपनी दो बेटियों और मां के साथ पुराना गोरखपुर मोहल्ले में रहते हैं। पंकज फार्मा कंपनी में रीजनल मैनेजर पर कार्यरत हैं। बचपन में ही उनके पिताजी का देहांत हो गया था। कम उम्र में पिता का साया सर से उठने के बाद सारी जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई थी। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहने वाले बहनोई को भी अकेले होने से 15 अप्रैल को घर वालों ने गर्भवती बहन को देखरेख के लिए गोरखपुर बुला लिया था।

जब बहन घर पर आ गई तो कुछ दिनों के बाद उसको सर्दी जुखाम की शिकायत हो गई, तब बहन को डॉक्टर के पास जाँच के लिए ले गए। डॉक्टरों ने कोविड जांच कराने की सलाह दी। जब कोविड जांच कराई गई तो उसमें बहन कोरोना पॉजिटिव निकल गई। बाद में पंकज ने भी अपनी जांच कराई तो वह भी पॉजिटिव निकले। और तब से ही उनकी दवा शुरू हो गई परंतु बहन को सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी थी।

पंकज का ऐसा बताना है कि यह देखकर उनकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लग गया था। शहर के हालात बहुत खराब चल रहे थे, जिसके बारे में पंकज अच्छी तरह से जानते थे परंतु ऐसी स्थिति में उनको कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अपनी बहन के लिए वह बेड का इंतजाम कहां से करें। पंकज का फार्मा लाइन के संबंध काम आ गए और गोरखनाथ क्षेत्र स्थित गोरखपुर हॉस्पिटल के डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव ने उनकी बहुत ही सहायता की। उन्होंने अस्पताल में बेड दिलाने में मदद की। इतना ही नहीं बल्कि बहन के साथ वह भी भर्ती हुए।

आपको बता दें कि अस्पताल प्रबंधक ने मरीजों को बताया था कि अब डेढ़ घंटे का ही ऑक्सीजन उनके पास बचा हुआ है। 28-29 अप्रैल को शहर के ऑक्सीजन प्लांट बंद हो गए थे और अस्पताल का ऑक्सीजन भी खत्म होने की कगार पर आ पहुंचा था। जब पंकज ने डॉक्टरों की बात सुनी तो उनके हाथ-पांव फूल गए। उन्होंने कई जगह पर फोन लगाया परंतु कोई भी फायदा नहीं हुआ। बहुत मनाने, विनती करने के बाद आरके ऑक्सीजन प्लांट का कर्मचारी ऑक्सीजन देने के लिए मान गया परंतु उसने यह शर्त रख दी कि ऑक्सीजन सिलेंडर खाली लेकर आना पड़ेगा इसके साथ ही ऑक्सीजन का पत्र भी होना चाहिए।

पंकज ने बताया कि उन्होंने इसकी सूचना डॉक्टरों को दे दी थी परंतु उनको यह पता लगा कि एंबुलेंस का ड्राइवर ही बीमार पड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में पंकज को कुछ भी नहीं समझ आ रहा था। तब पंकज ने डॉक्टरों के सामने प्लांट से ऑक्सीजन खुद लाने का प्रस्ताव रख दिया। काफी गुजारिश करने के बाद अस्पताल के प्रबंधक राजी हुए।

एंबुलेंस में 5-6 सिलेंडर रखकर स्टाफ ने उन्हें सैनिटाइज के साथ अन्य जरूरी बचाव के इंतजाम किए। जब वह ऑक्सीजन लेकर अस्पताल वापस आए तब इसी बीच बहुत से मरीजों के परिजनों ने उन्हें फोन किया और जल्दी आने की गुहार लगाते रहे। जब पंकज अस्पताल पहुंचे तो वहां पर मौजूद मरीजों के परिजनों के चेहरे की खुशी साफ-साफ झलक रही थी। पंकज की बहन समेत सभी मरीजों कोई स्टाफ ने आनन-फानन में ऑक्सीजन लगाया।

पंकज का ऐसा कहना है कि अस्पताल प्रशासन ने उनकी बहुत सहायता की है। डॉ राजेश श्रीवास्तव का खासतौर से उन्होंने धन्यवाद दिया है। भाई-बहन दोनों कोरोना से की जंग जीत गए हैं। जब दोनों भाई-बहन कोरोना से जंग जीतकर घर लौटे तो पूरे मोहल्ले के लोगों ने फूल मालाओं से उनका स्वागत किया।

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