बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता परिवार की एकजुटता को लेकर एक बार फिर स्पष्टीकरण आया है..

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता परिवार की एकजुटता को लेकर एक बार फिर स्पष्टीकरण आया है। लालू यादव ने मीडिया को कहा कि सूत्रों के हवाले से अंदरूनी कलह की खबरें चलाना बंद कीजिए। सूत्र मैं बैठा हूं। साथ ही अपने नेताओं से विवादित मुद्दों पर ना बोलने की अपील भी कर डाली। मुलायम सिंह यादव ने साफ किया कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार केवल और केवल नीतिश कुमार ही होंगे। इस सबके बीच जनता परिवार का विलय होता तो नजर नहीं आता। यानि गठबंधन के रास्ते ही कहानी आगे बढ़ेगी। कथित सांप्रदायिकता को हराना इस गठबंधन का मकसद है। नीतिश कुमार की मानें तो कांग्रेस भी इस गठबंधन का हिस्सा बनेगी।
वैसे बिहार की राजनीति को समझें तो पिछले एक-दो साल में राजनीतिक स्थितियां काफी बदली हैं। नरेन्द्र मोदी के विरोध में नीतिश कुमार ने भाजपा से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ा और अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। फैसला गलत साबित हुआ और जदयू महज 2 सीटों पर सिमट गई। आरजेडी 4 और कांग्रेस केवल 2 सीटों पर। भाजपा और उसके सहयोगियों को बिहार की 40 में से 31 सीटों पर जीत मिली थी। चुनावी अंकगणित के हिसाब से 31 सीटें जीतना विधानसभा की 188 सीटें जीतने के बराबर है। हांलाकिं इस गणित का कोई मतलब नहीं रहता है। इस बीच जीतन राम मांझी का मुख्यमंत्री बनना, जबरन टिके रहना, पप्पू यादव की बगावत, आम-लीची….और भी बहुत कुछ।
कुल मिलाकर बहुदलीय व्यवस्था की पहचान वाले बिहार में इस बार का मुकाबला दो गठबंधनों के बीच है। एक तरफ आरजेडी, जदयू और कांग्रेस तो दूसरी तरफ भाजपा, एलजेएसपी और आरएलएसपी। इस बीच देखना होगा कि इस लड़ाई में जीतन राम मांझी और पप्पू यादव की भूमिका भी अहम रहेगी या नहीं। जाति आधारित राजनीति की पहचान रहे बिहार में इस बार विकास की बात भी होगी या नहीं।
जनता गठबंधन अपना चेहरा और नारा दोनों तय कर चुकी है, लेकिन दूसरी तरफ भाजपा अपने किस चेहरे के साथ चुनाव लड़ेगी यह अभी तय नहीं। तो क्या महाराष्ट, झारखंड और हरियाणा की रणनीति यहां भी अपनाई जाएगी? जनता परिवार के इस मिलन को राजनीतिक मजबूरी क्यों ना समझा जाए? कार्यकर्ताओं की आपसी स्वीकार्यता और सीटों के बंटबारे जैसे मुद्दों पर भी क्या सब कुछ सामान्य रहने वाला है? या असली इम्तीहान अभी शुरू होगा? ऐसे कई सवाल हैं!