अजब ग़जब

सुहागरात की रात पूरा गांव बैठता है कमरे के बाहर, पंचायत करती है महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट

आखिर वर्जिनिटी टेस्ट क्यों? इस सवाल पर चर्चाएं तो बहुत हुई हैं परंतु इसका जवाब अभी तक नहीं मिल सका है क्योंकि यह सवाल जुड़ा हुआ है समाज के बनाए हुए घटिया नियमों से, जिन्हें प्रथा का नाम दे दिया जाता है। महाराष्ट्र का एक समुदाय है जहां पर दुल्हनों का कौमार्य परीक्षण यानी वर्जिनिटी टेस्ट कराया जाता है। इन समुदायों में नवविवाहित महिला को यह साबित करना होता है कि शादी से पहले वह कुंवारी थी।

अगर हम पौराणिक कथाओं पर एक बार नजर डालें, तो जब सीता माता जी को रावण अपहरण करके ले गया था तब भगवान श्री राम जी ने रावण की कैद से उनको मुक्त कराया था। जब वह अयोध्या वापस आए तो प्रजा ने उनकी पवित्रता को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े किए, जिसकी वजह से उन्हें पवित्र होने का परिणाम अग्नि परीक्षा देकर करना पड़ा।

पवित्रता की अग्निपरीक्षा आदि काल से अब आधुनिक काल तक की महिलाएं देती आ रही हैं। परंतु परीक्षा के तौर तरीके में बदलाव हो चुके हैं। बात दें महाराष्ट्र कंजरभाट समुदाय है, जहां रीति-रिवाजों में वर्जिनिटी टेस्ट की एक परंपरा है, जिसमें पूरी पंचायत के सामने सफेद चादर पर खून के धब्बे दिखा कर यह साबित करना पड़ता है कि शादी से पहले लड़की कुंवारी थी।

महाराष्ट्र के कंजरभाट समुदाय में पंचायत करती है महिलाओं का वर्जिनिटी टेस्ट

नवविवाहित महिला का कौमार्य परीक्षण यानी वर्जिनिटी टेस्ट कराए जाने की परीक्षा गंभीर चिंता का विषय है। महाराष्ट्र के कंजरभाट समाज में आज भी यह परंपरा प्रचलित है, जिसमें पूरी पंचायत के सामने सफेद चादर पर खून के धब्बे दिखा कर यह साबित करना पड़ता है कि लड़की कुंवारी थी।

दरअसल, कंजरभाट समुदाय में जब शादी होती है तो उसके बाद दूल्हे से पंचायत यह सवाल पूछती है कि तुम्हें जो माल दिया गया है वह कैसा था? अगर लड़की वर्जिन थी तो दूल्हा जवाब देते हुए तीन बार कहता है “मेरा माल खरा-खरा-खरा” और अगर लड़की वर्जिन नहीं थी तो लड़का तीन बार कहता है “मेरा माल खोटा-खोटा-खोटा।”

लड़की वर्जिन ना होने पर परिवार व रिश्तेदार करते हैं उसके साथ हिंसा

अगर लड़की वर्जिन नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में लड़की के परिवार व रिश्तेदार उसके साथ हिंसा करते हैं। कंजरभाट समुदाय को समुदाय के द्वारा बनाए गए इस कायदे कानून को मानना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति इसका पालन नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति में उनका समुदाय से बहिष्कार कर दिया जाता है। इस प्रथा के माध्यम से इस समुदाय में स्त्रियों की यौनिकता पर कंट्रोल किया जाता है।

अपने बिजनेस को चमकाने के लिए कर रहे हैं इस्तेमाल

यहां पर बात सिर्फ एक समुदाय की नहीं आती है बल्कि लगभग सभी समुदाय में अलग-अलग तरीकों से यौनिकता पर कंट्रोल किया जाता है और सबसे हैरत में डाल देने वाली बात है यह है कि लोग इससे मुनाफा भी कमा रहे हैं और बाजार में इस तरह के नियंत्रण का इस्तेमाल अपने बिजनेस को चमकाने के लिए किया जा रहा है। इसका एक उदाहरण यह है कि 18 अगेन प्रोडक्ट के नाम से एक विज्ञापन है। इस विज्ञापन में यह दर्शाया गया है कि 18 अगेन प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने से महिलाएं वर्जिन जैसा महसूस करती हैं।

सिर्फ 18 अगेन प्रोडक्ट ही एक इस प्रकार का उदाहरण नहीं है अगर आप गूगल पर जाकर सर्च करेंगे तो आपको इस तरह के अनेकों उदाहरण देखने को मिलेंगे। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं आजकल विज्ञानं का युग है और लोगों के ऊपर इस प्रकार की पितृसत्तात्मक सोच इतनी हावी हो चुकी है कि वर्जिनिटी को फिर से सर्जरी के माध्यम से बनाया जा सकता है।

सामाजिक दबाव के चलते लड़कियां करवाती हैं सर्जरी

वैसे लड़कियों का अपना वर्जिन खोने के पीछे कई वजह हो सकती है। सेक्सुअल सक्रियता के अलावा खेलकूद या अन्य कोई शारीरिक श्रम जैसे किसी न किसी कारण से लड़कियां वर्जिन नहीं हैं। लड़कियों पर सामाजिक दबाव इतना बढ़ जाता है कि जिसके चलते वह हाइमेनोप्लास्टी या हाइमन सर्जरी करवा लेती हैं।

आपको बता दें कि हाइमेनोप्लास्टी या हाइमन सर्जरी एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसके माध्यम से टूटी हुई झिल्ली जिसे हायमन भी कहा जाता है, उसको फिर से बना दिया जाता है। अगर हम इसके खर्चे की बात करें तो प्राइवेट हॉस्पिटल में इस सर्जरी को करने के लिए 40,000 से ₹60000 वसूल लेते हैं।

जिन लड़कियों की जल्द शादी होने वाली होती है, वही इस सर्जरी के लिए ज्यादातर जाती हैं। सामाजिक दबाव के चलते बहुत सी लड़कियां हैं जो इस सर्जरी को करवाती है, जिसके कारण उनकी सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कंजरभाट समुदाय के कायदे कानून से लेकर हाइमेनोप्लास्टी तक हर जगह हाइमेनोप्लास्टी का डर दिखाकर समाज की लड़कियों और महिलाओं को अपने दायरे में रखने के लिए मजबूर कर रही है।

इसी डर का फायदा उठाया जा रहा है और बाजार विज्ञान का इस्तेमाल करके मुनाफा कमाने में लगा हुआ है। जब तक पितृसत्ता का खौफ बना रहेगा, तब तक सही मायने में विकास नहीं हो सकता है। विकास के सपने को साल 2030 तक पूरा करना एक कल्पना मात्र ही है।

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