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आखिर कैसे बने शनि देव कर्मफल दाता, जानिए न्याय के देवता से जुड़ी हुई खास बातें

जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं शनि देव एक ऐसे भगवान हैं जो किसी भी व्यक्ति के किस्मत बदल सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि देवता का जन्म हुआ था। इसी वजह से हर साल ये दिन शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार 10 जून 2021 को शनि जयंती मनाई जाएगी। शनि को देव और ग्रह दोनों का ही दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि शनिदेव की कृपा जिस व्यक्ति के पर ऊपर रहती है वह व्यक्ति अपना जीवन हंसी-खुशी व्यतीत करता है। शनिदेव रंग को राजा बना सकते हैं और राजा को रंग बना सकते हैं।

शनि देव कर्मफल दाता है और यह हमेशा अच्छे काम करने वाले लोगों के ऊपर प्रसन्न रहते हैं। जो लोग अपने जीवन में अच्छे कर्म करते हैं अगर उनके ऊपर शनि का बुरा प्रभाव भी है तो उन लोगों को ज्यादा परेशानी नहीं होती है। मौजूदा समय में बहुत से लोग ऐसे हैं जो शनिदेव का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं और मन में तरह-तरह के सवाल उत्पन्न होने लगते हैं परंतु शनि देवता से घबराने की आवश्यकता नहीं है। शनि देव हमेशा शुभ-अशुभ दोनों ही फल प्रदान करते हैं। ये मनुष्य के कर्म होते हैं उसी के अनुसार फल देते हैं।

आज हम आपको इस लेख के माध्यम से शनिदेव से जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानकारी देने वाले हैं। तो चलिए जानते हैं आखिर शनि देवता कर्मफल दाता कैसे बने।

जानिए कैसे कर्मफल दाता बने शनि देव

धार्मिक कथाओं के मुताबिक भगवान सूर्य देव अपनी पत्नी छाया के पास पहुंचे तो सूर्य के प्रकाश और तेज से उनकी पत्नी छाया ने अपनी आंखें बंद कर ली थी। इसी व्यवहार की वजह से उनको श्याम वर्ण पुत्र शनि देव प्राप्त हुए। जब शनिदेव ने श्याम वर्ण शनिदेव को देखा तो उन्होंने छाया से कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं है। इसी वजह से शनि देवता अपने पिता सूर्य पर क्रोधित हो गए थे, जिसके पश्चात शनि देवता ने भगवान शिव जी की घोर तपस्या की थी और उन्होंने अपने शरीर को जला भी लिया था।

शनि देव की भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्होंने शनि देवता को वरदान मांगने को कहा। तब शनिदेव ने भगवान शिव जी से यह वरदान मांगा था कि युगों युगों से मेरी माता छाया की पराजय होती रही है। मेरी माता को सदैव मेरे पिता सूर्य से अपमान झेलना पड़ा है। इसी वजह से मैं चाहता हूं कि मैं अपने पिता से ज्यादा पूज्य बनूँ और उनका अहंकार टूट जाए।

तब भगवान शिव जी ने शनि देव को यह वरदान दिया था कि तुम नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ रहोगे और तुम न्यायधीश और दंडाधिकारी रहोगे। भगवान शिव जी ने कहा था कि तुम सभी लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल फल प्रदान करोगे। जो मनुष्य जैसा करेगा उसी के अनुसार आप तुम न्याय करोगे और उसी के अनुसार मनुष्य को दंड दोगे। तो इस तरह शनि देव कर्मफल दाता बने थे।

शनिदेव से जुड़ी हुई खास बातें

1. आपको बता दें कि शनि देव सूर्य पुत्र हैं परंतु शनि देवता की पूजा हमेशा सूर्योदय से पहले या फिर सूर्यास्त के पश्चात की जाती है। धार्मिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि शनि देवता की अपने पिता से नहीं बनती है अर्थात शनिदेव पिता से बैर भाव रखते हैं।

2. देशभर में शनिदेव से जुड़े हुए बहुत से मंदिर हैं परंतु महाराष्ट्र के शिंगणापुर में बना हुआ शनि मंदिर का बहुत खास महत्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह शनि देव का जन्मस्थान है। शनि देवता इस स्थान पर गर्मी, सर्दी और बरसात के मौसम में बिना किसी छत्र के रहते हैं।

3. आपको बता दें कि शनि देवता के गुरु भगवान शिवजी हैं इसलिए जो व्यक्ति शिवजी की आराधना करता है उसके ऊपर शनि देव की कृपा दृष्टि बनी रहती है। कभी भी शनि देव शिव जी की आराधना करने वाले लोगों को परेशान नहीं करते हैं।

4. शनिदेव की चाल बहुत धीमी है। यह सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से घूमते रहते हैं। शनै शनै चलने की वजह से इन्हें शनैश्चर भी कहते हैं।

5. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि हैं। शनि तुला राशि में उच्च और मेष राशि में नीच रहते हैं।

6. जो लोग हनुमान जी की आराधना करते हैं उनके ऊपर शनिदेव कभी भी अपनी अशुभ दृष्टि नहीं डालते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान जी ने ही शनिदेव को रावण के बंधन से मुक्त कराया था और शनि देव ने उन्हें वचन दिया था कि जो आपकी आराधना करेगा उनको शनिदेव कभी भी परेशान नहीं करेंगे।

7. शनिदेव का वर्ण काला है और यह नीले वस्त्र धारण करते हैं। इनकी सवारी गिद्ध है। एक हाथ में धनुष और दूसरे में वर मुद्रा है इ.नका अस्त्र लोहा है।

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