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7 महीने पहले कुलदेवी पूजने झुंझुनूं आया था परिवार, “अग्रवाल” से ऐसे “झुनझुनवाला” बने राकेश

शेयर बाजार के बेताज बादशाह माने जाने वाले राकेश झुनझुनवाला ने रविवार को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। राकेश झुनझुनवाला को द बिग बुल… द किंग ऑफ दलाल स्ट्रीट… शेयर मार्केट का बादशाह, इन सारे नामों से जाना जाता था। 62 साल के राकेश को मिले झुनझुनवाला सरनेम के पीछे भी एक कहानी है और इसकी शुरुआत राजस्थान के झुंझुनूं जिले से होती है।

जी हां, राकेश झुनझुनवाला का राजस्थान के झुंझुनूं से नाता है। असल में राकेश का सरनेम अग्रवाल था जो बाद में झुनझुनवाला हुआ। तो चलिए बताते हैं आखिर राकेश ने अपने नाम के साथ झुनझुनवाला क्यों और कैसे जोड़ लिया।

आपको बता दें कि CA मनीष अग्रवाल, जो झुझुनूं के रहने वाले हैं, उन्होंने बताया कि राकेश झुनझुनवाला के परदादा और दादा झुझुनूं से 30 किलोमीटर दूर मलसीसर गांव में रहते थे। 100 साल पहले झुनझुनवाला के दादा मलसीसर छोड़कर अपने परिवार के साथ कानपुर चले गए थे। जहां पर उन्होंने सिल्वर का कारोबार शुरू किया था और खूब नाम कमाया।

उस समय कानपुर में उन्होंने सिल्वर किंग के नाम से पहचान बना ली। इधर, राकेश झुनझुनवाला के पिता राधेश्याम इनकम टैक्स विभाग में अफसर बन गए और फिर मुंबई आकर रहने लगे। लेकिन झुंझुनूं छोड़ने के बाद भी राकेश के दादा और उनके पिता का लगाव वहां से कम नहीं हुआ था। उनका वहां आना-जाना लगा रहा।

इसी दौरान राकेश के पिता राधेश्याम ने अपने नाम के पीछे झुनझुनवाला सरनेम रखा लिया और वह राधेश्याम झुनझुनवाला कहलाने लगे। इसके बाद राकेश ने भी इस सरनेम को अपनाया और वह अग्रवाल की जगह अपना सरनेम झुनझुनवाला लिखने लगे।

7 महीने पहले राकेश की पत्नी और छोटे भाई का परिवार आया था कुलदेवी पूजने

आपको बता दें कि 100 साल पहले दादा के गांव छोड़ने के बाद भी राकेश झुनझुनवाला और उनके छोटे भाई राजेश झुनझुनवाला के परिवार झुंझुनूं से किसी ना किसी बहाने जुड़े रहे। यही वजह थी कि परिवार अक्सर कुलदेवी राणी सती के दर्शन करने के लिए यहां आता रहता था। करीब 7 महीने पहले जनवरी-फरवरी में राकेश की पत्नी रेखा, छोटा भाई राजेश और उनका परिवार अपनी कुलदेवी के दर्शन करने के लिए आया था। उन्होंने यहां राणी सती मंदिर में दर्शन किया था।

सीए मनीष अग्रवाल, जो श्रीराणी सती मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं, उनके द्वारा यह बताया गया कि राकेश भी एक बार मंदिर आए थे। राणी सती माता अग्रवालों की कुल देवी है। झुनझुनवाला परिवार के लोग हर साल मंदिर की वार्षिक पूजा में शामिल होने के लिए यहां आते हैं।

जिस हवेली को बेचा, अब उस जगह बना है मार्केट

सेठ मोतीलाल कॉलेज के सचिव जीएल शर्मा के द्वारा बताया गया कि झुनझुनवाला के परिवार की करीब 70-80 साल यहां पर हवेली हुआ करती थी, जिसे केडिया परिवार ने बेच दिया था। जिस हवेली को उन्होंने बेचा था, आज वहां पर केडिया मार्केट बना है। उन्होंने बताया कि अब उनकी झुंझुनूं में कोई संपत्ति तो नहीं, लेकिन परिवार का जुड़ाव काफी है। राकेश के भाई राजेश झुनझुनवाला डूंडलोद 10-15 दिन पहले आए थे।

2011 में पिता के साथ झुंझुनूं आए थे राकेश झुनझुनवाला

राकेश झुनझुनवाला 2011 में अपने पिता राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ झुंझुनूं आए थे। यहां उन्होंने 15 फरवरी 2011 को जेजेटी यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी। राकेश झुनझुनवाला का टीबड़ेवाला परिवार में ननिहाल है। जेजेटी यूनिवर्सिटी के चेयरपर्सन डॉ. विनोद टीबड़ा के द्वारा बताया गया कि राधेश्याम झुनझुनवाला ने यूनिवर्सिटी में मदद करने की बात कही थी। झुनझुनवाला परिवार झुंझुनूं के डूंडलोद में ट्रस्ट के जरिए लोगों की सहायता करता है।

मोतीलाल ट्रस्ट संभालते हैं भाई राजेश

आपको बता दें कि राकेश झुनझुनवाला के भाई राजेश झुनझुनवाला सीए हैं। वह मुंबई के मोतीलाल ट्रस्ट के सभी शिक्षण संस्थाओं का काम संभालते हैं। ट्रस्ट का झुंझुनूं में भी सेठ मोतीलाल कॉलेज है। कॉलेज के सचिव जीएल शर्मा ने यह बताया कि राजेश लगातार डूंडलोद आते हैं। डूंडलोद झुंझुनूं शहर से 25 किलोमीटर दूर है। यहां डूंडलोद विद्यापीठ ट्रस्ट के जरिए झुनझुनवाला परिवार चैरिटी करता है।

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