कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति पर किस्मत मेहरबान होती है तो रातों-रात उसकी दुनिया बदल जाती है। एक ऐसा ही मामला मुंबई के नजदीक पालघर से आया है जहां एक मछुआरा रातों-रात करोड़पति बन गया। मछुआरे का नाम चंद्रकांत तरे बताया जा रहा है और वह मछली पकड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है। आइए जानते हैं चंद्रकांत तरे की पूरी कहानी?
चंद्रकांत तरे के मुताबिक, वह हर रोज अपने 7 साथियों के साथ समुद्र के किनारे मछली पकड़ने जाया करते थे। इस दिन भी वह हर रोज की तरह मछली पकड़ने गए। लेकिन इस दिन उनकी किस्मत ही पलट गई। मछली पकड़ने के दौरान उनके जाल में ‘सी गोल्ड’ कहीं जाने वाली दुर्लभ घोल मछलियां फंसी जिनकी कीमत करोड़ों रुपए में है। चंद्रकांत ने बताया कि, उनके जाल में करीब 157 गोल्ड मछलियां फंसी थी। जब उन्होंने इन मछलियों को मार्केट में आकर बेचा तो उनकी कीमत करीब 1.33 करोड रुपए मिली। उन्होंने हर एक मछली को करीब 85 हजार रुपए में बेची।
चंद्रकांत तरे के मुताबिक, वह अपने 7 दोस्तों के साथ हरबादेवी नाम की नाव से मछली पकड़ने गए थे। वे अपने साथियों के साथ समुद्र किनारे से 20 से 25 नॉटिकल माइल अंदर वाधवन की तरफ गए। चंद्रकांत का कहना है कि, यह पहली बार नहीं था, जब वे इस जगह मछली पकड़ने के लिए गए थे वह हमेशा अपने साथियों के साथ इस ओर मछली पकड़ने आया करते थे। हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने मछली पकड़ने के लिए अपना जाल फैलाया, लेकिन जाल को खींचते समय उन्हें काफी भारी लगा। ऐसे में उन्होंने जोर लगाकर जाल को बाहर निकाला तो देखा कि उनके जाल में करीब 157 ‘गोल्ड फिश’ नाम की मछलियां फंसी थी। इसके बाद उन्होंने मार्केट में इन्हें करोड़ों रुपए में बेच दी।
चंद्रकांत ने बताया कि उनके द्वारा पकड़ी गई मछली को यूपी और बिहार से आए कुछ बड़े व्यापारियों ने खरीदा है जिन्हें उनकी एक मछली का करीब 85 हजार रुपए मिले हैं। चंद्रकांत का कहना है कि, अब यह मछलियां आसानी से समुंद्र किराने नहीं मिलती क्योंकि प्रदुषण अधिक बढ़ चुका है। ऐसे में इस तरह की मछलियां ढूंढने के लिए समुद्र के बहुत अंदर तक जाना पड़ता है।
‘सी गोल्ड’ घोल मछलियों की खासियत
बता दें कि, सी गोल्ड मछलियों की भारत के अलावा जापान, सिंगापुर, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों में बहुत मांग है। दरअसल, इन मछलियों के जरिए दवाई बनाने का काम किया जाता है जिसके चलते इनकी कीमत अधिक है। रिपोर्ट की मानें तो सर्जरी के दौरान जो धागे इस्तेमाल किए जाते हैं और बाद में अपने आप गल जाते हैं, वे इन्हीं मछलियों से तैयार किए जाते हैं। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन मछलियों की भारी मांग है।