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गॉडमदर के नाम से मशहूर थी संतोकबेन, दर्ज हुए 525 FIR, चूल्हा-चौका करने वाली महिला ऐसे बनी डॉन

बॉलीवुड की ऐसी बहुत सी फिल्में है जो वास्तविक घटना पर आधारित हैं। उन्ही फिल्मों में से एक “गॉडमदर” नाम की फिल्म भी थी, जिसमें शबाना आज़मी गॉडमदर का किरदार निभाती हुई नजर आईं थीं। साल 1999 में आई फिल्म गॉडमदर को उस वर्ष अलग-अलग श्रेणी में 6 नेशनल अवार्ड मिले थे। अब आपके मन में यह सवाल अवश्य आ रहा होगा कि भला हम फिल्मों के ऊपर बात क्यों कर रहे हैं?तो आपको बता दें कि गॉडमदर फिल्म को लेकर यह दावा किया जाता है कि यह फिल्म वास्तविक घटना पर बनी हुई है और इस फिल्म में किरदार का नाम संतोकबेन था।

संतोकबेन साराभाई जडेजा को लोग खौफ से गॉडमदर भी कहा करते थे।संतोकबेन के नाम से लोग खौफ खाया करते थे। यही नहीं बल्कि घर में आपसी रंजिशों के कारण से कई जाने भी गई थीं। इसी वजह से लोग कहा करते थे कि संतोकबेन के घर की नालियों में पानी नहीं खून बहता है। आखिर संतोकबेन के गॉडमदर बनने की कहानी क्या है? आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने वाले हैं।

दरअसल, यह बात साल 1980 की है, जब संतोकबेन अपने पति सरमन जाडेजा के साथ गुजरात के पोरबंदर आई थीं। संतोकबेन के पति काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। काफी कोशिशों के बाद उनको महाराणा मील के नाम से एक कपड़ा मील के अंदर काम मिल गया था, परंतु जब वहां पर वह नौकरी करने लगे तो उनका सामना हफ्ता वसूली के एक नए सिस्टम से हुआ।

ऐसा बताया जाता है कि देबू बाघेर नाम का एक गुंडा था, जो मिल के मजदूरों से पैसे वसूल किया करता था। उस समय के दौरान देबू बाघेर नाम के इस गुंडे का आतंक हुआ करता था।

Santokben Jadeja

संतोकबेन के पति सरमन जडेजा मील में नौकरी करने लगे लेकिन एक दिन उनका सामना देबू बाघेर से हुआ। उसने सरमन जाडेजा से पैसे मांगे तो संतोकबेन के पति ने उसे रुपए देने से साफ साफ मना कर दिया था। देबू बाघेर मना करने के बाद काफी गुस्से में आ गया और उसने सरमन जाडेजा पर हाथ छोड़ दिया परंतु सरमन ने भी उसे इसका जवाब दे दिया था। फिर क्या था, दोनों में लड़ाई शुरू हो गई और इस लड़ाई में देबू बाघेर की जान चली गई। देबू बाघेर के मारे जाने के बाद जो वह काम करता था वह सारा काम सरमन जाडेजा के कब्जे में आ गया था।

जब सरमन जाडेजा का रास्ता बदल गया तो वह अवैध शराब का कारोबार भी करने लगे। धीरे-धीरे उनका व्यापार तेजी से आगे बढ़ता गया। जब उनका व्यापार फैल गया तो वह धीरे-धीरे राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी पहुंच बनाने की कोशिश में लग गए। लेकिन तब तक उनके दुश्मन बहुत बन चुके थे। यह बात दिसंबर 1986 की है, जब विरोधी गिरोह के कालिया केशव ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर सरमन जडेजा को गोली मार दी थी, जिसकी वजह से उनकी जान चली गई थी।

जब छोटे भाई भूरा को अपने बड़े भाई की मृत्यु की जानकारी मिली तो वह तुरंत लंदन से पोरबंदर पहुंच गया और वह अपने बड़े भाई की मौत का बदला लेने के लिए गिरोह इकट्ठा करने की कोशिश में जुट गया परंतु संतोकबेन ने उसे ऐसा करने से रोक लिया था। उन्होंने यह फैसला लिया कि वह खुद गैंग की कमान संभालेंगी। फिर क्या था घर का चूल्हा चौका संभालने वाली संतोकबेन ने अपने पति की हत्या करने वालों के ऊपर इनाम रख दिया।

जी हां, उन्होंने कालिया केशव और उनके गैंग के 14 लोगों को मारने के लिए प्रति एक हत्या पर एक लाख इनाम रखा, जिसका प्रभाव यह हुआ कि कालिया केशव समेत उसके गैंग के 14 लोग मारे गए। खबरों के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि इस संतोकबेन ने भी एक गोली चलाई थी। जब यह हत्याएं हुई तो पूरे पोरबंदर में संतोकबेन का आतंक छा गया और यहीं से उसका नाम “गॉडमदर” पड़ा था।

संतोकबेन ने तो अपने पति के मारने वालों को खत्म करके अपना बदला पूरा कर लिया और वह उसके धंधे को संभाल कर उसे आगे बढ़ाने लगी। संतोकबेन इस दौरान निर्धन लोगों की सहायता भी करती रहती थीं, जिसकी वजह से कुछ ही समय में उनकी छवि मसीहा की बन गई थी। पहले लोग संतोकबेन के नाम से ही खौफ खाते थे परंतु अब वह गरीबों की मसीहा के रूप में उभर कर आईं। संतोकबेन का आतंक इतना अधिक था कि अगर उनके घर से बहने वाली नाली में रंग भी बहे तो लोगों को यही लगता था कि खून बह रहा है।

संतोकबेन की राजनीति में भी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी वह 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल का टिकट लेकर राजनीति के क्षेत्र में उतर गई और उन्होंने चुनाव 35 हजार वोटों से जीत भी लिया। इससे पहले इस सीट में कोई महिला विधायक नहीं हुआ करती थी लेकिन साल 1995 में कांग्रेस के कैंडिडेट के लिए उन्होंने अपना पर्चा वापस ले लिया था।

भले ही संतोकबेन ने राजनीति का मार्ग चुन लिया परंतु वह अपराध की दुनिया में से जुड़ी भी रही थीं उनके गैंग के ऊपर हत्या, अपहरण, रंगदारी जैसे कुल मिलाकर 525 मामले दर्ज किए गए। एक तरफ राजनीति में वह कार्य कर रही थी और दूसरी तरफ वह गैंग में उलझी हुईं थीं।

आपको बता दें कि एक समय ऐसा आया जब संतोकबेन को एक ऐसी फिल्म के बारे में जानकारी हुई जिसको जानकर वह आश्चर्यचकित हो गई थीं। जी हां, यह फिल्म कोई और नहीं बल्कि गॉडमदर थी। ऐसा बताया जाता है कि संतोकबेन ने फिल्म पर बैन लगाने की मांग भी की थी। इस फिल्म को लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ था। इस फिल्म के डायरेक्टर विनय शुक्ला ने यह तर्क दिया था कि यह फिल्म संतोकबेन पर आधारित नहीं है परंतु यह मामला तेजी से आगे बढ़ता चला गया।

वहीं संतोकबेन का ऐसा दावा था कि कोई ऐसी महिला के बारे में बता दीजिए जो मेहर समुदाय से आती हो और अपने पति की हत्या का बदला लेती हो। बाद में निर्विरोध चुनाव जीती हो लेकिन इसी बीच लेखक मनोहर देसाई ने यह दावा किया कि फिल्म उनके उपन्यास पर आधारित है। जब कोर्ट में ये मामला चला तो दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और फैसले में यह फिल्म रिलीज की अनुमति दे दी गई।

आपको बता दें कि साल 1996 में गुजरात के अंदर सत्ता में बदलाव हुआ था और इस बदलाव में बीजेपी की सरकार बनी थी, जिसके बाद 16 महीने के लिए संतोकबेन को जेल के अंदर रहना पड़ा था। जेल से रिहा होने के बाद वह राजकोट चली गई थी और राजनीति में भी सक्रिय रहीं परंतु साल 2005 में एक बीजेपी काउंसलर की हत्या में उनका नाम आया था जिसके चलते पुलिस के द्वारा उनको अरेस्ट कर लिया गया था।

आपको बता दें कि संतोकबेन के चार बेटे हैं एक बेटा कांधल जडेजा उनकी राजनीति विरासत को संभालता है और कुतियाना सीट से एनसीपी के टिकट पर विधायक बना। बता दें संतोकबेन के देवर के बेटे नवघन और बहू की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भले ही संतोकबेन पोरबंदर से राजकोट आ गई थी परंतु उनकी गॉडमदर वाली छवि वैसे की वैसी ही थी। इसी बीच उनके बच्चों ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाल लिया। लेडी डॉन के नाम से मशहूर संतोकबेन जडेजा अपने जीवन में कई घातक हमलों से बची लेकिन गॉडमदर संतोकबेन हार्ट अटैक को झेल ना सकी और 31 मार्च 2011 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

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