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बैल की मौत के बाद किसान ने की तेरहवीं, गांव वालों को खिलाया भोज, पूरा मामला जान हो जाएंगे भावुक

जैसा कि हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि जब बसे, गाड़ियां, रेलगाड़ी आदि नहीं हुआ करती थीं तो उस समय के दौरान हमारे पूर्वज सामान ढोने के लिए बैल गाड़ी, घोड़ा गाड़ी और ऊंट गाड़ी आदि का प्रयोग करते थे। सदियों से लेकर कई सौ वर्ष पहले तक हमारे पुरखे एक स्थान से दूसरे स्थान आने जाने तथा सामान को लाने ले जाने के लिए इन साधनों का प्रयोग करते थे। बता दें बैल को किसान का परम मित्र भी कहा जाता है। यह एक ऐसा पालतू जानवर होता है जो खेत में जुताई, माल ढुवाई तथा सवारी के प्रयोजन हेतु काम में लिया जाता है।

जैसे-जैसे समय बदलता जा रहा है। वैसे-वैसे बैलो के उपयोग में भी काफी कमी देखने को मिल रही है। हालांकि भारत के कई गांवों में आज भी बैलगाड़ी देखी जा सकती है। कई शहरों में भी छोटे-छोटे कामों के लिए बैलगाड़ी में माल ढोने आदि का काम किया जाता है। आधुनिक समय में उन्नति कृषि यंत्रों के आविष्कार की वजह से परंपरागत कृषि साधनों का उपयोग निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

देश लगातार विकास कर रहा है और इसके साथ-साथ देश में खेती के तौर-तरीके भी बदलते जा रहे हैं। आधुनिक मशीनरी और तकनीकी पर निर्भरता अब बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। इन सब के बावजूद देश के कई हिस्सों में अभी भी बैलों का प्रयोग किया जा रहा है। बैल का किसान के जीवन में काफी महत्व होता है। आप ऐसा समझ सकते हैं कि बैल परिवार के सदस्य की तरह ही होता है। जिस घर में बैल होता है परिवार के सभी लोग उसका ध्यान अपने घर के सदस्य की तरह रखते हैं।

आज हम आपको महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के देवपुर से सामने आए एक मामले के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। दरअसल, यहां पर संदीप नरोते के बैल की मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्होंने अपने बैल का विधिवत अंतिम संस्कार किया। संदीप नरोते के पिताजी ने 25 साल पहले एक बछड़े को घर लेकर आए थे। इसका नाम सुक्रया दिया गया था। सुक्रया ने लंबे अरसे तक खेती के काम में परिवार का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया परंतु अधिक उम्र होने की वजह से इस बैल से 2 वर्ष पहले नरोटे परिवार इससे काम लेना बंद कर दिया था और जैसे घर के किसी बुजुर्ग की देखभाल की जाती है। ठीक उसी प्रकार से परिवार के लोग इस बैल की देखभाल करने लगे।

हम सभी लोगों ने यह देखा होगा कि जब बैल बूढ़ा हो जाता है तो उसके बाद वह किसी भी प्रकार से इस्तेमाल किए जाने लायक नहीं रहता है और उसको बेसहारा छोड़ दिया जाता है लेकिन संदीप ने ऐसा नहीं किया। संदीप का ऐसा बताना है कि एक बार वह उनका 4 साल का बेटा सोहम बैलगाड़ी से कहीं जा रहे थे। तभी अचानक सोहम बैलगाड़ी से नीचे गिर गया था। सोहम बैलगाड़ी के पहिए और बैल के बीच में गिर गया था।

संदीप ने यह बताया कि सोहम जमीन पर जहां गिरा, वह जगह सुक्रया बैल के पिछले पैरों और बैल गाड़ी के पहिए के बीच की थी। उन्होंने बताया कि उनकी नजर बेटे के बैलगाड़ी से गिरने के वक्त उस पर नहीं पड़ी थी लेकिन सुक्रया अचानक चलते चलते ही रुक गया और बैलगाड़ी वहीं पर रुक गई। सुक्रया नहीं रुकता तो उनका छोटा बच्चा सोहम पहिये के बीच में आ जाता।

लेकिन आखिर में सुक्रया बैल ने अपना दम तोड़ दिया। संदीप नरोटे ने उसका अंतिम संस्कार वैसे ही किया जैसे कि घर के किसी सदस्य के चले जाने के बाद किया जाता है। नरोटे परिवार ने सुक्रया बैल की आत्मा की शांति के लिए तेरहवी का भी आयोजन किया। यहां पर बैल की तस्वीर पर फूल माला चढ़ा कर रखी गई थी। इतना ही नहीं बल्कि इस मौके पर गांव वालों को खाना भी खिलाया गया था।

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