झोपड़ी में रहने वाले 75 वर्षीय बुजुर्ग ने दान कर दी 2 एकड़ जमीन, ताकि संवर सके बच्चों का भविष्य

जैसा कि हम सभी लोग अच्छी तरह से जानते हैं शिक्षा हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा के बिना हमारा सारा जीवन बिल्कुल अधूरा है। शिक्षा के बिना हम कोई भी कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर सकते हैं। शिक्षा हमारे जीवन के हर क्षेत्र में काम आता है। बच्चों को कल का भविष्य कहा जाता है, अगर यह पढ़ाई-लिखाई करेंगे तो यह अपने जीवन में आगे बढ़ेंगे। पढ़े-लिखे नागरिक ही देश की पूंजी होते हैं, जिस देश में ज्यादा पढ़े लिखे व्यक्ति होते हैं, उस देश की प्रगति और तेजी से होती है।
वैसे देखा जाए तो शिक्षा हर इंसान का पहला और महत्वपूर्ण अधिकार होता है। शिक्षा के बिना हम अधूरे और हमारा जीवन बेकार हो जाता है। मौजूदा समय में भी ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जो शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। घर की स्थिति ठीक न होने के कारण कई बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ जाता है और छोटी सी उम्र में ही काम करने लगते हैं। भले ही आजकल शिक्षा को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है परंतु इसके बावजूद भी बहुत से बच्चे शिक्षा नहीं ले पाते हैं।
आजकल ऐसी खबरें आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं कि गरीब और जरूरतमंदों की सहायता के लिए लोग सामने आ रहे हैं। जो लोग अपने बच्चों को शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं, उन लोगों की मदद के लिए बहुत से लोग सामने आ रहे हैं। इसी बीच हम आपको एक बुजुर्ग के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने बच्चों का भविष्य संवारने और स्कूल बनाने के लिए अपनी 2 एकड़ जमीन दान में दे दी है।
दरअसल, हम आपको जिस बुजुर्ग के बारे में बताने जा रहे हैं उनका नाम सदायन है, जिनकी उम्र 75 साल की है। यह इरोड के बरगुर की पश्चिमी पहाड़ियों में बसे कोंगडाई एसटी कॉलोनी में रहते हैं। इन 75 वर्षीय बुजुर्ग की सहायता की वजह से यहां के बच्चों में बेहतर भविष्य की उम्मीद जागी है। साल 2010 तक इस गांव में बड़े पैमाने पर बाल श्रम हुआ करता था। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह थी गांव में एक भी स्कूल नहीं था।
आपको बता दें कि सदायन खुद अशिक्षित हैं परंतु उन्होंने बच्चों के भविष्य के लिए अपनी 2 एकड़ भूमि दान कर दी है। इसी वजह से सुदर नामक एक गैर सरकारी संगठन यहां स्कूल बनवा कर बच्चों को बाल श्रम से बचाने में सफल हो पाए हैं। बता दें कि सुदर नामक यह संस्था आदिवासी छात्रों को शिक्षा के लिए कार्य करती हैं। यह संस्था 40 छात्रों को बाल श्रम से छुड़वा चुकी है।
रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा बताया जा रहा है कि मुख्य धारा की शिक्षा में शामिल होने से पहले यह सुविधा छात्रों के लिए एक ब्रिज स्कूल के रूप में हुआ करती थी। जब सदायन ने अपनी भूमि दान नहीं की थी तो उससे पहले इस गांव के बच्चे यही के एक घर में पढ़ा करते थे। जब ज्यादा बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया तो उसके बाद उन्हें पढ़ाने का फैसला किया गया था परंतु घर छोटा था, जिसकी वजह से इतने ज्यादा बच्चे पढ़ाई नहीं कर सकते थे।
जब ज्यादा बच्चे हुए तो एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे उनको पढ़ाया जाने लगा परंतु बारिश के मौसम में बहुत ज्यादा दिक्कत होती थी। बारिश आने पर यह बच्चे मंदिर के शेड में चले जाया करते थे। जब यहां पर परोपकारियों के द्वारा बच्चों को कपड़े बांटे गए तो उस दौरान इन सभी बातों पर उन्होंने ध्यान दिया था।
उन्होंने देखा कि बच्चों को पढ़ाई करने के लिए एक इमारत की आवश्यकता है, जिसके बाद उन्होंने यह फैसला लिया कि यहां बच्चों के लिए वह स्कूल का निर्माण करवाएंगे। लेकिन इसके लिए उपयुक्त जमीन की जरूरत थी। सुदर संगठन में इस मामले को लेकर अभी चर्चा ही हो रही थी कि इसी बीच 75 वर्षीय सदायन ने अपनी मर्जी से अपनी 2 एकड़ भूमि दान में दे दी, ताकि बच्चों का भविष्य संवर सके।