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950 बार फेल होने पर भी नहीं टूटा हौसला, पंक्चर जोड़ने वाले शख्स ने तैयार किया हवा से चलने वाला इंजन

कहते हैं यदि किसी चीज को पाने के लिए आप पूरे जी-जान से जुट जाए तो एक दिन वो आपको हासिल हो ही जाती है। हाँ… इस दौरान आपको कई असफलताओं का सामना करना पड़ेगा लेकिन इन असफलताओं से सीख कर जो आगे बढे वहीं बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है।

एक ऐसा ही नजारा देखने को मिला उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी क्षेत्र निवासी त्रिलोकी के पास। त्रिलोकी ने करीब 950 बार हार का सामना किया लेकिन फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने अपनी मेहनत से हवा से चलने वाले इंजन का अविष्कार कर दिया। आइए जानते हैं त्रिलोकी की पूरी कहानी।

Air Powered Engine

बता दें, त्रिलोकी ट्रैक्टर और मोटरसाइकिल में पंचर लगाने के काम करते हैं। एक दिन हुआ यूं की त्रिलोकी पानी खींचने के इंजन से अपने कंप्रेशर में हवा भरने का काम कर रहे थे लेकिन अचानक कंप्रेसर का वॉल्व टूट गया। ऐसे में इंजन उल्टा घूमने लगा। इसी दौरान त्रिलोकी के दिमाग में कई तरह के विचार आए और जुड़ गए हवा की मदद से इंजन बनाने के लिए।

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उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी क्षेत्र निवासी त्रिलोकी अपने 6 दोस्त संतोष चाहर, राम कुमार, चंद्रभान, रामप्रकाश, रामधनी, और भरतपुर जिले के अर्जुन सिंह के साथ इस इंजन को बनाने में जुट गए। हवा से चलने वाले इस इंजन को तैयार करने के लिए त्रिलोकी को करीब 14 साल का समय लगा। इस दौरान त्रिलोकी और उनके दोस्तों को कई बाहर असफलता हाथ लगी लेकिन फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं मानी और अपने साथियों के नेतृत्व में पूरी लगन से काम किया।

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साथियों को जब एक दूसरे की जरूरत हुई तो सभी कंधों से कंधे मिलाकर साथ खड़े रहे। त्रिलोकी ने बताया कि उन्होंने इंजन के अलग-अलग प्रकार के कलपुर्जे तैयार किए, फिर उन्हें वेल्डिंग करना, उनकी सेटिंग करना इस तरह के काम कई बार किए गए। इतना ही नहीं बल्कि कई बार तो ऐसा भी हुआ कि रात में ही त्रिलोकी इसका काम करना शुरू कर देते थे। इस इंजन में सफल होने के लिए त्रिलोकी ने अपनी ढाई बीघा जमीन भी बेच दी, वहीं उनके अन्य दोस्तों ने लाखों रुपए खर्च किए।

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त्रिलोकी ने बताया कि इस इंजन में काम करने के दौरान उन्हें देश की कंपनी ने नौकरी भी दी। 3 लाख रुपए प्रति माह वेतन, गाड़ी और घर का भी ऑफर दिया, लेकिन त्रिलोकी और उनके दोस्तों ने मिलकर यह फैसला लिया था कि वह इस इंजन का आविष्कार किसी बड़ी कंपनी के साथ नहीं बल्कि अपनी झोपड़ी में ही करेंगे। त्रिलोकी और उनके दोस्त दिन-रात अपने इंजन को लेकर काम करते रहते थे। देखने वाले लोगों ने इन्हीं पागल तक कह दिया था लेकिन कभी भी इनके ऊपर लोगों की नकारात्मक बातों का असर नहीं हुआ और कबाड़े का सामान खरीदकर इंजन बनाने में जुटे रहे। ये लोग हर दिन नया प्रयोग करते और हर दिन इनके हाथ असफलता लगती लेकिन फिर भी यह लगातार कोशिश करते रहते।

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कोशिश करने के दौरान त्रिलोकी और उनके दोस्तों को करीब 950 बार हार मिली लेकिन फिर भी उन्होंने जिद नहीं छोड़ी और यहां तक कि इन्होंने अपने घर पर भी जाना बंद कर दिया और हर दिन-रात नए नए प्रयोग कर इंजन को बनाने की कोशिश में जुटे रहते। फिर 14 साल की मेहनत के बाद त्रिलोकी हवा के सहारे चलने वाले इस इंजन को बनाने में कामयाब रहे।

त्रिलोकी ने बताया कि इस मशीन में उन्होंने इंसान के फेफड़े जैसे दो पंप लगाए हैं। फिलहाल वह हाथ से घुमा कर हवा का प्रेशर बना कर इस इंजन को स्टार्ट करते हैं और फिर ये इंजन इंसानी फेफड़ों की तरह हवा खींचता है और फेंकता है। त्रिलोकी ने बताया कि इस इंजन के पुर्जे को काम करने के लिए मोबिल ऑयल की जरूरत होती है। त्रिलोकी ने बताया कि इस इंजन के माध्यम से बोरवेल, ट्रैक्टर के साथ आटा चक्की, बाइक, बिजली चलाई जा सकती है। त्रिलोकी ने कहा कि यदि उनके इंजन को सरकार का साथ मिलता है तो वह कई चमत्कार कर सकते हैं।

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