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आखिर कब से शुरू हैं पौष गुप्त नवरात्रि? जानिए कलश स्थापना और पूजन विधि

हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्यौहार को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की 9 दिनों तक पूजा की जाती है। माता दुर्गा को समर्पित यह त्यौहार संपूर्ण भारत में अत्यधिक उत्साह के साथ लोग मनाते हैं। नवरात्रि का त्यौहार उत्सव से ज्यादा व्रत और साधना के लिए होता है। आपको बता दें कि नवरात्रि का त्यौहार वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ और अश्विन इन चार माह में नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है।

चैत्र और आश्विन माह की नवरात्रि को प्रमुख माना गया है जबकि आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। यह नवरात्रि विशेष सिद्धियों की प्राप्ति के लिए किया जाता है, जिसकी वजह से आषाढ़ और पौष मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्र का नाम दिया गया है। पौष मास की नवरात्रि को शाकंभरी नवरात्रि के नाम से भी जानते हैं। आज हम आपको पौष मास की शाकंभरी या गुप्त नवरात्रि की खास बातों के बारे में बताएँगे।

जानिए कब से शुरू है पौष गुप्त नवरात्रि

साल 2021 में गुरुवार से पौष मास के गुप्त नवरात्रि की शुरुआत है। आपको बता दें कि 21 जनवरी 2021 से पौष मास की गुप्त नवरात्रि शुरू हो रही है और यह 28 जनवरी को पूर्णिमा के दिन समाप्त होगी।

जानिए कैसे करें कलश स्थापना

  • गुप्त नवरात्रि के दौरान और सामान्य नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना करना बहुत ही जरूरी है। अगर आप गुप्त नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना कर रहे हैं तो इस समय वास्तु नाग और सूर्य की स्थिति का ध्यान रखना जरूरी है।
  • कलश स्थापना करते समय आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि पूर्व दिशा से दक्षिण की तरफ यानी दाहिनी तरफ 10 डिग्री के अंश के अंदर कलश की स्थापना करें।
  • पूर्व दिशा से दक्षिण दिशा के हिस्से को 9 बराबर भागों में बांटना होगा।
  • उसके बाद पूर्व दिशा से पहले भाग का चुनाव करते हुए वहां पर गुप्त नवरात्रि के लिए कलश स्थापना कीजिए।
  • जब आप कलश स्थापना की दिशा तय कर लें तब आपको उस स्थान की सबसे पहले साफ सफाई करनी होगी।
  • उसके बाद उस स्थान पर जल छिड़क कर साफ मिट्टी या बालू रखें उसके बाद आप मिट्टी या बालू पर जौ की परत बिछाएं।
  • उसके बाद फिर से साफ मिट्टी और बालू की परत बिछा दीजिए और जल छिड़कें।
  • अब आपको मिट्टी पर बिछाए गए जौ के ऊपर मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करनी होगी। गुप्त नवरात्रि में मिट्टी के कलश की स्थापना करनी चाहिए और उस कलश में साफ पानी भरकर उसके अंदर एक सिक्का डाल दीजिए। आप कलश में सामान्य पानी या गंगाजल डाल सकते हैं।
  • कलश के मुंह पर कलावा बांधकर एक ढक्कन लगा दें और उसके ऊपर जौ भरें। अगर जौ नहीं है तो आप इसके स्थान पर चावल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
  • इतना करने के बाद आपको उसके ऊपर जटा वाला नारियल रखना होगा परंतु आप नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर उसे कलावे से बांध दीजिए।
  • आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि कलश का स्थान पूजा के लिए उत्तर-पूर्व कोने का होता है और दीपक के लिए दक्षिण-पूर्व कोने का होता है इसलिए कलश के ऊपर दीपक ना जलाएं।
  • अगर आप कलश के ऊपर रखी हुई कटोरी पर शंख स्थापित कर रहे हैं तो वह शंख दक्षिणावर्ती होना चाहिए और शंख का मुंह ऊपर रखें।

जानिए दीपक जलाने का सही तरीका

  • आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि दीपक धातु, लकड़ी या मिट्टी से बना होना चाहिए।
  • अगर आप देवी मां की उपासना के दौरान दीपक जला रहे हैं तो घी और तेल को एक साथ मिलाकर ना जलाएं।
  • घी के दीपक में आप सफेद रंग की खड़ी बत्ती का इस्तेमाल कीजिए और उसको माता रानी की दाहिनी हाथ की तरफ रखें।
  • तिल का दीपक जला रहे हैं तो उसको आप बाईं तरफ रखें और तिल के दीपक में लाल बत्ती का प्रयोग कीजिए।
  • आपको बता दे कि घी का दीपक देवता के लिए होता है और तेल का दीपक साधक की कामनाओं के लिए होता है। आपकी जो इच्छा है उसके अनुसार एक या दो दीपक जलाएं।

जानिए कौन हैं देवी शाकंभरी?

पौष मास की गुप्त नवरात्रि को शाकंभरी नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। शाकंभरी देवी माता दुर्गा के 51 शक्तिपीठों में से एक मानी गईं हैं। आपको बता दें कि दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का उल्लेख किया गया है। दुर्गा सप्तशती में देवी शाकंभरी का वर्णन नीले रंग में बताया गया है। इसमें इस बात का उल्लेख किया गया है कि इनके नेत्र नील कमल के समान हैं और यह कमल के फूल पर विराजती रहती हैं।

देवी शाकंभरी की दो मुट्ठियों में से एक मुट्ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्ठी बाणों भरी रहती है। देवी शाकंभरी को तंत्र मंत्र की साधना के लिए बहुत ही सिद्ध माना जाता है। ऐसा बताया गया है कि अगर कोई इनकी साधना करता है तो यह अपने साधकों का पालन पोषण करती हैं और कभी भी अपने साधकों को भूखा सोने नहीं देती हैं।

ऐसा बताया जाता है कि दुर्गम नाम के दैत्य ने ब्रह्मा जी से चारों वेदों और युद्ध में हमेशा विजय होने का वरदान प्राप्त किया था जिसके कारण देवी-देवता काफी चिंतित हो गए थे। सभी दु:खी होकर देवी माता के शरण में पहुंच गए।

जब माता ने अपने भक्तों का दु:ख देखा तो उनकी आंखों से जल बहने लगा और यह जल की धारा हजारों सालों तक बहती रही थी जिसकी वजह से पूरे संसार में अकाल पड़ गया था। तब माता ने अपने शरीर से विभिन्न प्रकार की साग-सब्जियां और वनस्पतियों को उत्पन्न किया था, जिससे उन्होंने संसार का पालन पोषण किया था। उसी समय से देवी दुर्गा का एक नाम “शाकम्भरी” पड़ा।

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