जब अमिताभ बच्चन के मना करने के बावजूद अमर सिंह ने जया बच्चन को बना लिया सपाई
बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन और समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता, राज्यसभा सांसद अमर सिंह कभी बेहद खास दोस्त हुआ करते थे। उनकी दोस्ती ने खूब सुर्खियां बटोरी। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई। बता दें कि समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता और राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने 1 अगस्त को दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। सिंगापुर में उनका इलाज चल रहा था इसी दौरान वहां उनका निधन हो गया।
इस कारण आई अमिताभ और अमर सिंह की दोस्ती में दरार
दरअसल, हुआ यूं कि अमिताभ बच्चन के मना करने के बावजूद भी अमर सिंह ने जया बच्चन को सपाई बना लिया था। जिसके बाद दोनों के रिश्ते में दरार आ गई। इस बात का खुलासा खुद अमर ने एक इंटरव्यू के दौरान किया था।
अमिताभ के बाद जया संग भी अमर की हुई थी अनबन
बात साल 2016 की है जब समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर ने इस बात का दावा करते हुए कहा था कि अमिताभ बच्चन ने उन्हें आगाह किया कि वह अपनी पत्नी जया को अपनी पार्टी में स्वीकार न करें। इसी बात के चलते दोनों की दोस्ती कम होती चली गई। उस दौरान यह बात भी सामने आई की जब अमर सिंह सपा छोड़ रहे थे तो उन्हें यही लगा था कि जया बच्चन भी समाजवादी पार्टी छोड़े देंगी, लेकिन उसके उल्टा ही हुआ। अमिताभ के बाद जया के साथ भी अमर सिंह के रिश्ते में दरार आ गई, लेकिन यह दरार उस वक्त बढ़ गई जब अनिल अंबानी के घर एक पार्टी में अमर पर जया बच्चन का गुस्सा फूट गया। इसके बाद ना ही तो अमिताभ बल्कि जया भी अमर सिंह के निशाने पर आ गईं।
अमर सिंह ने अमिताभ के खिलाफ दिए विरोधी बयान
इसी बीच अमर ने लगातार अमिताभ को लेकर विरोध भरे बयान भी दिए, जिसके बाद जब अमिताभ को लेकर इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने सिर्फ यही कहा था कि वो दोस्त हैं कुछ भी कह सकते हैं। मंच कोई भी हो लेकिन अमिताभ बच्चन को लेकर अमर सिंह कभी बोलने के लिए झिझकते नहीं थे। अमर सिंह ने तो एक इंटरव्यू के दौरान यहां तक कह दिया था कि जब बड़े कॉरपोरेट घरानों ने अमिताभ का साथ छोड़ दिया था तो मैं उनके साथ खड़ा हुआ था।
अमर को आखिरी वक्त में हुआ पछतावा
अपने आखिरी वक्त में अमर सिंह का दिल पिघल गया और उन्होंने अमिताभ पर सार्वजनिक तौर पर भड़कने वाले बयान देने को लेकर माफी मांगी। इसी के साथ उन्होंने कहा कि 10 साल बीत जाने के बाद भी अमिताभ की निरंतरता में कोई बाधा नहीं आई और वह लगातार, अनेक अवसरों और मेरे या पिता जी के जन्मदिन चाहे ही पिताजी की बरसी हो, हर दिन को याद कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते रहे हैं। तो मुझे भी लगता है कि मैंने भी अनावश्यक रूप से ज्यादा उग्रता दिखा डाली।
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