पाताल में बसी है ये अद्भुत दुनिया, 12 गांव के लोग करते हैं यहां पर निवास

यदि आपसे कहा जाए कि, धरती के नीचे पाताल में भी एक ऐसी जगह है जहां लोग रहते हैं और हमारी तरह ही जीवन जीते हैं तो ये सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन भारत में ऐसी कई रहस्यमई चीजें हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इन्हीं में से एक हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी जगह के बारे में जहां पहुंचना सूर्य की किरणों के लिए भी बहुत मुश्किल काम होता है।
जी हां.. यहां एक एक ऐसी जगह है जो पाताल में है और यहां पर करीब 12 गांव बसे हुए हैं। पुरानी मान्यताओं के अनुसार जब रावण भगवान श्री राम और इनके भाई लक्ष्मण को पाताल ले गए थे तब हनुमान जी उनके प्राण बचाने के लिए इसी रास्ते से गए थे।
बता दें, मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से 78 किलोमीटर दूर स्थित स्थान को पातालकोट के नाम से जाना जाता है जहां 12 गांव का समूह है। ये जगह प्राकृतिक सुंदरता और पहाड़ियों से घिरी हुई जगह है। इतना ही नहीं बल्कि यहां पर 2-3 गांव तो ऐसे हैं जहां कोई भी आसानी से नहीं जा पाता है। कहा जाता है कि यहां पर सूर्य की किरणें भी नहीं पहुंच पाती है, ऐसे में इस गांव में कभी सवेरा भी नहीं होता।
बता दें, यह रहस्यमई पातालकोट सतपुड़ा की पहाड़ियों में है जिसे औषधियों का खजाना भी माना जाता है। इन गांवों में भूरिया जनजाति के लोग रहते हैं और जो झोपड़ी में अपना निवास करते हैं। कहा जाता है कि यहां के लोग खाने पीने की चीजें आसपास ही उगा लेते हैं और केवल नमक ही बाहर से खरीद कर लाते हैं।
इतना ही नहीं बल्कि इस जगह पर कई जानलेवा बीमारियों का आसानी से इलाज होता है। यहां के स्थानीय लोग इन्हीं जड़ी-बूटियों का प्रयोग कर स्वस्थ रहते हैं। रिपोर्ट की माने तो इन गांवों के लोग बाहरी दुनिया से बिलकुल कटे हुए हैं, हालांकि अभी-अभी इनके गाँव से सड़क जुड़ी है।
बता दें, इस गांव में दिन में धूप नहीं पहुंच पाती है इसके चलते यहां हमेशा शाम जैसा ही नजारा देखने को मिलता है। पातालकोट के गांव धरातल से लगभग 3 हजार फुट नीचे बसे हुए हैं। कहा जाता है कि, पातालकोट की तलहटी में एक समय पर करीब 20 गाँव बसे थे, लेकिन प्राकृतिक प्रकोप के चलते वर्तमान में अब केवल 12 गाँव ही शेष बचे हैं।
यहां के एक गांव में मात्र 7-8 से ज्यादा घर नहीं होते हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक ये भी कहा जाता है कि, भगवान शिव की आराधना कर रावण का पुत्र मेघनाथ इसी स्थान से पाताल लोक पहुंचा था। इस वजह से इस जगह को पाताल लोक जाने का दरवाजा भी कहा जाता है।