पिता की करोड़ों की संपत्ति छोड़ 16 साल के बेटे ने लिया संन्यास, किया जैन मुनि बनने का फैसला
इस संसार में ज्यादातर लोग ऐसे है, जो जीवन भर पैसे और सुख समृद्धि के पीछे भागते रहते हैं। हर कोई अपने जीवन में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहता है ताकि वह अपनी और अपने परिवार की जरूरतों को पूरा कर सके और एक अच्छी जिंदगी जी सके। ज्यादातर लोग करोड़ों रुपए कमाने के बावजूद भी वह और भी ज्यादा पैसा कमाने के पीछे भागते रहते हैं। जीवन भर लोगों का यह मोह नहीं छूटता है। लेकिन इस संसार में कुछ लोग ऐसे भी रहते हैं जिन्हें सांसारिक भोग और मोह को छोड़ने में जरा भी देर नहीं लगती।
क्या आप लोगों ने कभी इस बारे में सोचा है कि कोई करोड़ों रुपए की संपत्ति को छोड़कर सन्यास ले सकता है, वह भी महज 16 वर्ष की आयु में। जी हां, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कुछ ऐसा ही मामला देखने को मिला है। दरअसल, धार जिले के नागदा का एक 16 साल का बालक सांसारिक दुनिया को छोड़कर जैन मुनि बन रहा है।
16 साल का बालक बनेगा जैन मुनि
दरअसल, आज हम आपको 16 साल के जिस बालक के बारे में बता रहे हैं उसका नाम अचल श्रीमाल है, जो सन्यास लेकर जैन मुनि बन रहा है। अचल के सन्यास के रीति रिवाज शुरू हो चुके हैं। अचल श्रीमाल धार जिले के एक छोटे से गांव नागदा का रहने वाला है। अचल श्रीमाल ने महज 16 वर्ष की आयु में ही दुनिया के सुख और वैभव देखने से पहले ही सब कुछ त्याग दिया। बात दें 4 दिसंबर को जैन संत जिनेन्द्र मुनि ग्राम नागदा में ही अचल को दीक्षा देंगे।
आपको बता दें कि अचल श्रीमाल के पिताजी का नाम मुकेश श्रीमाल है, जो हार्डवेयर और ऑटो पार्ट्स के एक बड़े कारोबारी हैं। उनका परिवार बहुत समृद्ध है। मुकेश श्रीमाल के एकलौता बेटा अचल है। लेकिन अचल ने अपने पिताजी की करोड़ों की प्रॉपर्टी और कारोबार को ठुकरा कर सन्यास लेने का संकल्प ले लिया है।
अन्य बच्चों की तरह खेलने कूदने, घूमने-फिरने और मोबाइल के शौकीन रहे अचल ने अब संयास की राह पकड़ ली है। अब उसकी बड़ी बहन याचिका श्रीमाल और दादा दादी अंकल सब घर में है। अचल ने एसी पंखे जैसी तमाम भौतिक सुख सुविधाओं को पिछले डेढ़ वर्ष पहले से ही त्याग दिया है। जब से उसने जैन मुनि बनने का संकल्प लिया है, तब से ही प्रदेश और अन्य प्रदेशों के कई शहरों में अचल का जुलूस निकाल कर स्वागत किया जा रहा है।
जानिए क्यों लिया मुनि बनने का फैसला
आपको बता दें कि अचल ने नौवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। जब छुट्टियां होती थी तो वह मुनियों के साथ विहार करता था और यहीं से उसने मुनि बनने का फैसला लिया। अब तक वह आष्टा, भोपाल, शाजापुर, शुजालपुर समेत कई शहरों में 1200 किलोमीटर तक पैदल विहार कर चुका है।
अचल ने बताया कि जब वह जैन मुनियों से संपर्क में आया तो उसका मन जैन मुनि बनने का हुआ, तभी से संन्यास की ओर चलते गए। अचल का कहना है कि सांसारिक सुख सुविधाओं में कोई सुख नहीं है इसलिए वह अनंत सुख की ओर बढ़े।
अचल ने दूसरे लोगों को प्रेरणा देते हुए कहा कि यह जरूरी नहीं है कि सन्यास लेकर अहिंसा धर्म अपनाया जाए बल्कि लोग अपने घरों में रहकर भी अहिंसा धर्म का पालन कर सकते हैं। अचल अपने माता-पिता के इकलौते बेटे हैं लेकिन फिर भी माता-पिता ने अचल के द्वारा लिए गए इस बड़े फैसले में साथ देते हुए उसको जैन मुनि बनने के लिए हां कर दी।