जमनालाल बजाज: गरीब किसान का बेटा, जिसने की बजाज ग्रुप की स्थापना, बने थे गांधीजी के 5वें पुत्र
आखिर जमनालाल बजाज कौन थे? शायद आप में से बहुत कम लोग होंगे, जो इस नाम को ना जानते हों? परंतु आप सभी लोग Bajaj के नाम से तो भली-भांति वाकिफ होंगे। जी हां, वही Bajaj जिसका इलेक्ट्रिक मार्केट से लेकर ऑटो सेक्टर और फाइनेंस तक, हर जगह पर इस नाम का सिक्का चलता है। “हमारा बजाज! बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर…” एक दौर में इस धुन को पूरा हिंदुस्तान गुनगुनाता था। करीब दो पीढ़ियों की जुबान पर चढ़ी रही थी बजाज स्कूटर के विज्ञापन की यह पंक्तियां।
बजाज स्कूटर से जहां हमारे बचपन की यादें जुड़ी हुई हैं। वहीं बजाज के पंखों ने हमें गर्मी से राहत भी दी है। भले ही इस ब्रांड को ऊपर उठाने में महत्वपूर्ण योगदान दिवंगत राहुल बजाज ने दिया हो परंतु बजाज नामक इस साम्राज्य की नींव रखने का श्रेय सेठ जमनालाल बजाज को जाता है। जी हां, जमनालाल बजाज वह शख्सियत थे जिन्होंने बजाज ग्रुप की स्थापना की।
आपको बता दें कि जमनालाल बजाज सबसे प्रमुख उद्योगपति थे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में में भाग लिया था। इन्होंने खुद को देश की आजादी के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने बजाज जैसा एक ऐसा रास्ता बनाया, जो सफलता की बुलंदियों तक जाता था। भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साम्राज्यों में से एक बजाज समूह के संस्थापक रहे जमनालाल बजाज को महात्मा गांधी ने अपना पांचवा बेटा भी बताया था।
जन्म से गरीब मगर किस्मत के धनी थे जमनालाल बजाज
बता दें कि जमनालाल बचपन से ही सेठ नहीं थे। जयपुर रियासत के सीकर के गांव “काशी का बास” में एक गरीब मारवाड़ी परिवार जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवम्बर 1889 को हुआ था। जमनालाल अपने माता-पिता के तीसरे पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। उनके पिताजी का नाम कनीराम था, जो एक बेहद गरीब किसान थे। वहीं जमनालाल की माता जी का नाम बिरदीबाई था, जो गृहणी थीं।
भले ही गरीबी में जमनालाल का जन्म हुआ हो परंतु गरीबी उनका मुकद्दर नहीं थी। शायद ही आज जमनालाल के बारे में कोई ना जानता, अगर उन्हें वर्धा के सेठ बच्छराज ने गोद न लिया होता। सेठ बच्छराज ने उन्हें अपने पोते के रूप में उस समय गोद लिया था और अपने साथ वर्धा ले आए थे, जब जमनालाल चौथी कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे।
जमनालाल बने सेठ जमनालाल बजाज
बता दें सेठ बच्छराज ब्रिटिश राज में एक प्रसिद्ध और सम्मानित व्यापारी थे। बच्छराज (बजाज) की पत्नी का नाम सादीबाई बछराज (बजाज) था। यह दोनों एक अमीर राजस्थानी व्यापारी जोड़े थे, लेकिन वर्धा, महाराष्ट्र में बस गए थे। आपको बता दें कि एक दिन अपने घर के बाहर तेज धूप में जमनालाल खेल रहे थे। इसी दौरान सेठ बच्छराज रास्ते से गुजर रहे थे और उनकी नजर धूप में खेल रहे जमनालाल पर पड़ी।
सेठ बच्छराज जमनालाल पर आसक्त होकर रुक गए और उनको गोद लेने का निर्णय ले लिया। इसके बाद सेठ बच्छराज (बजाज) और उनकी पत्नी के द्वारा एक पोते के रूप में अपनाया गया। इस तरह एक गरीब किसान का बेटा जमनालाल, सेठ जमनालाल बजाज बन गया। एक प्रकार जमनालाल उन चंद भाग्यशाली बच्चों में से एक बन गए, जो गरीबी में पैदा होने के बावजूद किस्मत में अमीरी लिखवा कर आते हैं।
हालांकि, जमनालाल कभी भी अपनी इस अमीरी से खुश नहीं हुए। उन्होंने अन्य अमीरों की तरह ऐश ओ आराम का जीवन व्यतीत करना पसंद नहीं किया। उनके लिए उनके पिता की धन-दौलत कभी भी मायने नहीं रखती थी। वह देश सेवा में लगे रहे। बात दें बाल-विवाह का दौर था इसलिए 13 साल की उम्र में ही सेठ जमनालाल की शादी वर्धा की नौ साल की जानकी से हो गई।
सेठ जमनालाल को नहीं था दौलत का मोह
आपको बता दें कि एक बार सेठ बच्छराज अपने परिवार सहित एक शादी समारोह में जा रहे थे। ऐसे में उनका परिवार शाही दिखे, हर कोई चाहता है। उन्होंने इसी मंशा से जमनालाल से कहा कि वह भी हीरे-पन्नों से जरा एक हार पहन कर शादी समारोह में चलें। लेकिन जमनालाल ठहरे फकीर किस्म के इंसान। दौलत का दिखावा उनको बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसीलिए जमनालाल ने हार पहनने से इंकार कर दिया था। इसी बात को लेकर दोनों में ऐसी अनबन हुई थी कि 17 साल के जमनालाल घर छोड़ कर चले गए।
इस घटना से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेठ जमनालाल का उनके पिता की दौलत में कितना मोह था। इतना ही नहीं बल्कि बाद में जमनालाल ने अपने पिता बच्छराज को एक स्टाम्प पेपर पर यह लिख कर भेजा कि उन्हें उनकी संपत्ति से कोई लगाव नहीं है। उन्होंने लिखा था कि “मैं कुछ लेकर नहीं जा रहा हूं। तन पर जो कपड़े थे, बस वही पहने जा रहा हूं। आप निश्चिंत रहें। मैं जीवन में कभी आपका एक पैसा भी लेने के लिए अदालत नहीं जाऊंगा। इसलिए ये कानूनी दस्तावेज बनाकर भेज रहा हूं।”
लेकिन सेठ बच्छराज का अपने बेटे से मोह नहीं टूटा और उन्होंने तमाम कोशिशों के बाद जमनालाल को ढूंढ निकाला। फिर घर आने के लिए उनको मना लिया। परंतु वह संपत्ति का त्याग कर चुके थे। इसके बाद जब उनको विरासत में संपत्ति मिली, तो दान के रुप में उन्होंने उस संपत्ति को खर्च कर दिया।
स्वतंत्रता आंदोलन में हुए शामिल
जमनालाल बजाज ने समाज सेवा के साथ-साथ स्वाधीनता आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर योगदान दिया। हालांकि, अपने धन के दम पर उन्होंने शुरुआत में अंग्रेजी सरकार की आर्थिक सहायता की। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार को आर्थिक सहयोग दिया था, जिसके पश्चात उन्हें मानद मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया। जब उन्होंने युद्ध कोष में धन दिया तो उन्हें “राय बहादुर” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था। परंतु जब वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए तो उन्होंने अंग्रेजों को आर्थिक सहयोग देना बंद कर दिया था।
वहीं उन्होंने राय बहादुर की उपाधि अंग्रेजी सरकार को तब लौट दी, जब वह 1921 में असहयोग आंदोलन से जुड़े। जब जमनालाल बजाज स्वतंत्रता संग्राम में जुड़े तो इसके साथ ही उनकी पहली मुलाकात पंडित मदन मोहन मालवीय से हुई। जब 1906 में बाल गंगाधर तिलक ने अपनी मराठी का हिंदी संस्करण निकाला तो जमनालाल बजाज ने ₹100 अपनी जेब खर्च से दिया।
गांधीजी के बने पांचवे पुत्र
आपको बता दें कि सेठ जमनालाल बजाज महात्मा गांधी जी से बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे। जब गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से वापस लौटे, तो साबरमती में आश्रम बनवाया और सेठ जमनालाल बजाज भी इसी में उनके साथ रहे थे। वहीं जब 1920 में नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो जमनालाल ने उसमें अजीब सा प्रस्ताव रख दिया था।
दरअसल, जमनालाल गांधीजी को एक पिता के रूप में अपनाना चाहते थे। इसी वजह से उन्होंने प्रस्ताव में कहा कि वह गांधी जी को अपने पिता के रूप में गोद लेकर उनके पांचवे बेटे बनना चाहते हैं। शुरुआत में तो गांधीजी के लिए यह प्रस्ताव काफी आश्चर्य पर देने वाला रहा था परंतु धीरे-धीरे उन्होंने जमुनालाल को अपना पांचवां पुत्र मान ही लिया।
गांधी जी ने साबरमती जेल से 16 मार्च 1922 को जमनालाल को एक पत्र भेजा था, जिसमें लिखा- “तुम पांचवे पुत्र तो बने ही हो, लेकिन मैं योग्य पिता बनने की कोशिश कर रहा हूं।” सेठ जमनालाल के मन में गांधी जी का बेटा बनने की ऐसी बेचैनी थी कि वह उनके मुंह से किसी और रिश्ते का संबोधन सुनकर चिढ़ जाया करते थे।
एक बार गांधी जी ने जमनालाल को एक पत्र लिखा और उसमें चिरंजीवी जमनालाल की जगह भाई जमनानाम लिख दिया था। भाई के संबोधन से जमनालाल बहुत नाराज हो गए थे। आपको बता दें कि सेठ जमनालाल बजाज एक उद्योगपति और स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि समाज सेवक भी थे। उन्होंने निर्धन परिवार के बच्चों की शादियां करवाई। इस वजह से गांधीजी स्नेह से उन्हें “शादी काका” भी कहते थे। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल से रिहाई के बाद जमनालाल वर्धा लौट आए।
बजाज ग्रुप की स्थापना
आपको बता दें कि सेठ जमनालाल बजाज ने 1920 के दशक में व्यापार की भूमि पर एक ऐसा बीज बोया जो आज व्यापार जगत का एक सघन वृक्ष बन चुका है। बजाज ग्रुप की शुरुआत उन्होंने अपने शुगर मिल के जरिए की थी। इस ग्रुप की आज 25 से ज्यादा कंपनियां हैं, जिनका सालाना टर्नओवर 280 अरब रुपए से अधिक है।
बता दें कि 11 फरवरी 1942 को मस्तिष्क की नस फटने की वजह से सेठ जमनालाल का निधन हो गया था। उनकी स्मृति में सामाजिक क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने के लिए “जमनालाल बजाज पुरस्कार” की स्थापना की गई।