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स्वामी विवेकानंद ने पहले ही बता दिया था उनके जीवन का अंत कब और कहां होगा, जानिये पूरी कहानी

स्वामी विवेकानंद हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपने काम और ज्ञान के लिए पहचाने जाते हैं। स्वामी विवेकानंद की याद में ही 12 जनवरी को भारत में युवा दिवस मनाया जाता है। इनका बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था, जो बड़े होकर स्वामी विवेकानंद बने। 12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को हुआ था। उस समय के दौरान उनकी आयु 39 वर्ष 5 माह और 24 दिन के करीब थी।

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद अपने निधन से पहले कई बार अपने शिष्यों और परिचितों को यह बता चुके थे कि वह 40 वर्ष की आयु से अधिक जीवित नहीं रहने वाले। उन्होंने पहले ही यह बता दिया था कि उनकी आयु इससे आगे नहीं जाने वाली है। अब यह सवाल आता है कि क्या उन्हें पहले से ही यह पता था कि उनकी जिंदगी का अंत और कब कहा होगा? चलिए इसे जानने की कोशिश करते हैं।

 

आपको यह बता दें कि भारत की युवा शक्ति पर स्वामी विवेकानंद को सबसे अधिक उम्मीदें थीं। उन्होंने कहा था कि भारत 21वीं सदी में विश्व के मानचित्र पर अपना नाम रोशन करेगा, जो आज हो भी रहा है। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन और दुनिया को लेकर बहुत सी भविष्यवाणियाँ की थी, जो सच साबित हुईं। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने कम समय में बहुत से कार्य किए। वह अपनी शर्तों पर ही जिये और अपनी तरह से मृत्यु के लिए तैयार थे।

जिस तरह स्वामी विवेकानंद का जीवन एक यात्रा थी। उसी तरह उनकी मृत्यु भी इस यात्रा का एक हिस्सा ही थी। ऐसा बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने मृत्यु को बहुत शांत तरीके से वरण किया। ऐसा मालूम होता है कि वह पृथ्वी पर एक उद्देश्य लेकर आए थे और जब उन्हें ऐसा एहसास हुआ कि यह उद्देश्य पूरा हो चुका है, तो उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

स्वामी विवेकानंद ने मार्च 1900 में अपनी सिस्टर निवेदिता को एक पत्र लिखा था, जो उनकी मृत्यु के बाद काफी चर्चा में है। इस पत्र में स्वामी विवेकानंद ने सिस्टर को कहा था कि “मैं अब काम नहीं करना चाहता बल्कि विश्राम करने की इच्छा है। मैं इसका समय भी जानता हूं। हालांकि कर्म मुझको लगातार अपनी ओर खींचता रहा है।” जब उन्होंने यह लिखा कि मैं अपना आखिरी समय और जगह जानता हूं तो वाकई यह जानते थे। जब उन्होंने इस पत्र को लिखा तो उसके 2 साल के बाद ही वह दुनिया छोड़कर चले गए।

स्वामी विवेकानंद ने साल 1902 की शुरुआत में ही खुद को सांसारिक मामलों से अलग करना शुरू कर दिया था। वह बहुत कम सवालों के जवाब दिया करते थे। वह अक्सर यही कहा करते थे कि “मैं अब बाहरी दुनिया के मामले में दखल नहीं देना चाहता।” उन्होंने रोमां रोलां से यह कहा था कि “मैं 40 वर्ष से अधिक नहीं जीवित रहूंगा।”

27 अगस्त 1901 को स्वामी विवेकानंद ने अपनी एक परिचित मेरी हेल को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने यह लिखा कि “एक तरह से मैं एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति हूं। आंदोलन कैसा चल रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं रखना चाहता। खाने-पीने, सोने और बाकी समय शरीर की शुश्रुषा करने के सिवा मैं और कुछ नहीं करता। विदा मेरी। आशा है इस जीवन में कहीं ना कहीं हम दोनों अवश्य मिलेंगे और अगर नहीं भी मिले तो भी तुम्हारे इस भाई का प्यार तो सदा तुम्हे रहेगा ही।”

स्वामी विवेकानंद ने अपनी मौत से 2 महीने पहले अपने सभी सन्यासी शिष्यों को देखने की इच्छा जाहिर की थी। सभी को पत्र लिखकर कम समय के लिए बेलूर मठ आने के लिए कहा था। लोग आधी पृथ्वी की यात्रा करके भी उनसे मिलने आने लगे। उन्होंने इसी बीच कई बार कहा ‘मैं मृत्यु के मुंह में जा रहा हूं।” देश दुनिया के समाचारों पर अब वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे। हालांकि वह इन दिनों बीमारी का शिकार भी हो गए थे।

4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ के इसी शांत कमरे में स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि ली। देहत्याग से 1 सप्ताह पहले उन्होंने अपने एक शिष्य को पंचांग लाने का आदेश दिया था। उन्होंने पंचांग को ध्यान से देखा, मानो किसी चीज के बारे में ठोस निर्णय नहीं ले पा रहे हों। उनके देहावसान के पश्चात उनके गुरु भाइयों और शिष्यों को यह अंदाजा हुआ कि वह अपनी देव को त्यागने की तिथि के बारे में विचार कर रहे थे। श्री रामकृष्ण परमहंस ने भी अपने देह त्याग से पहले ऐसे ही पंचांग को देखा था।

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद ने अपनी महासमाधि से 3 दिन पहले ही प्रेमानंदजी को मठ भूमि में एक विशेष स्थल की तरफ इशारा करते हुए कहा- वहीं पर उनके शरीर दाह हो। अब उस स्थान पर विवेकानंद मंदिर बना हुआ है। जहां पर स्वामी जी के पार्थिव शरीर को अग्निशिखा पर रखा गया था, इसकी वेदी ठीक उसी स्थान पर बनी हुई है।

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